Friday, November 13, 2020

आंखों की रोशनी घटना, मोतियाबिंद, भेंगापन और संक्रमण का एक कारण डायबिटीज भी, ऐसा होने पर अलर्ट हो जाएं

डायबिटीज के 25 फीसदी मरीजों में 10 के अंदर ही आंखों की रोशनी कम होने लगती है। 50 फीसदी मरीजों में 20 साल के अंदर इसका असर दिखने लगता है। ज्यादातर लोग इसे ढलती उम्र की समस्या मानकर नजरअंदाज कर देते हैं, जबकि कुछ बातों का ध्यान रखकर कम होती आंखों की रोशनी को कंट्रोल किया जा सकता है।

हर साल 14 नवम्बर को वर्ल्ड डायबिटीज डे मनाया जाता है। आई एंड ग्लूकोमा एक्सपर्ट डॉ. विनीता रामनानी बता रही हैं, डायबिटीज के मरीज आंखों का कैसे रखें ख्याल

डायबिटीज के मरीज हैं तो ध्यान दें कहीं ये लक्षण आप में तो नहीं..

1. आंखों में रुखापन

डायबिटीज़ के ज़्यादातर मरीज आंखों में रुखेपन से परेशान रहते हैं। जिससे उनको आंखों में दर्द, चुभन, भारीपन और आंसू आ सकते हैं | समय पर इलाज़ होना बेहद जरूरी है।

2. आंखों में संक्रमण

ऐसे मरीजों की आंखों में संक्रमण होने का खतरा ज्यादा रहता है। जैसे कंजक्टिवाइटिस (लाल आंखें), पलकों और कॉर्निया में इन्फ़ेक्शन हो सकता है। इसलिए ब्लड शुगर कंट्रोल में रखें और आंखों से जुड़ी कोई तकलीफ होने पर डॉक्टरी सलाह लें।

3. मोतियाबिंद

यह डायबिटीज़ में होने वाली सबसे आम बीमारी है। आंखों का लेंस उम्र के साथ धुंधला हो जाता है जिसे मोतियाबिंद या कैटरेक्ट कहते हैं। मोतियाबिंद डायबिटीज़ के मरीज़ों में जल्दी हो सकता है और तेजी से बढ़ता भी है। इसका सीधा असर आंखों की रोशनी पर पड़ता हैै।

डायबिटीज़ से जूझने वाले 65 साल से कम उम्र के इंसानों में मोतियाबिंद होने का ख़तरा बाकियों के मुक़ाबले 4 गुना ज़्यादा होता है। मोतियाबिंद होने पर डायबिटीज़ को कंट्रोल करके सर्ज़री की मदद से लेंस ट्रांसप्लांट किया जाता है।

4. ग्लूकोमा

यह आंखों में दबाव से जुड़़ी बीमारी है, जिसके आमतौर पर लक्षण नहीं दिखाई देते। लंबे समय तक बढ़े हुए दबाव की वजह से आंखों की नस यानी ऑप्टिक नर्व पर बुरा असर पड़ता है और देखने में तकलीफ़ होती है। इलाज़ न करने पर मरीज़ हमेशा के लिए आंखों की रोशनी खो सकता है।

5. डायबिटिक रेटिनोपैथी

डायबिटिक रेटिनोपैथी डायबिटीज़ में होने वाली आंखों से जुड़ी सबसे गंभीर बीमारी है। इसमें भी शुरूआती लक्षण नहीं होते मरीज को इसका पता रेटिना टेस्ट से पता चलता है। रेटिनोपैथी बढ़ने पर आंखों की रोशनी कम होने लगती है। हालत बिगड़ने पर रोशनी पूरी तरह से जा सकती है।

डायबिटीज के अलावा अगर मरीज ब्लड प्रेशर, थायरॉयड, कोलेस्ट्रॉल, हार्ट या किडनी डिसीज से जूझ रहता है तो खतरा और ज्यादा बढ़ जाता है। डायबिटीज से 20% से 40% मरीजों में रेटिनोपैथी हो सकती है।

6. लगातार चश्मे का नंबर बदलना

मधुमेह के मरीजों में ब्लड शुगर कंट्रोल न होने पर चश्मे का नंबर बदलता रहता है। इसलिए समय-समय पर शुगर की जांच करते रहना चाहिए। बहुत ज्यादा या बहुत कम शुगर लेवल होने पर मरीज़ को अचानक धुंधला दिख सकता है। शुगर लेवल ठीक होने पर रोशनी वापस भी आ सकती है।

7. आंखों में तिरछापन

बढ़ी हुई शुगर के चलते होने से आंखों में भेंगापन आ सकता है जिसमें अचानक से डबल दिखने के साथ पलकें भी बंद हो सकती हैं। कई बार देखने वाली नस में सूजन के कार रोशनी काफी कम हो सकती है।

डायबिटीज के मरीज ऐसे रखें अपनी आंखों का ख्याल

  • साल में एक बार आंखों की जांच कराएं : अगर डायबिटिक रेटिनोपैथी की शुरुवात हो चुकी हो तो डॉक्टर की सलाह को नजरअंदाज न करें। साल में एक बार आंखों की जांच जरूर करवाएं।
  • शुगर लेवल कंट्रोल में रखें : ब्लड शुगर को नॉर्मल रेंज में बनाए रखें। एक बार इसका लेवल बढ़ जाने के बाद आंखों के साथ शरीर के कई अंग डैमेज होने लगते हैं। डॉक्टर से दवाइयां, डाइट प्लान, एक्सरसाइज़ और ब्लड शुगर के लेवल को कंट्रोल करने के साथ ब्लड ग्लूकोज़ मॉनिटरिंग के बारे में बात करें। एचबीए1सी लेवल साल में कम से कम 2 बार टेस्ट कराना चाहिए और इसका लक्ष्य 7 प्रतिशत से कम होना चाहिए।
  • एक्सरसाइज करें, डाइट में बदलाव करें : रेग्युलर एक्सरसाइज, बैलेंस डाइट, धूम्रपान और शराब से दूरी बनाकर इस जानलेवा बीमारी से बचा सकते हैं। खाने में हरी पत्तेदार सब्जियों को शामिल करें।
  • समय पर इलाज़ कराएं : डायबिटीज़ और इससे जुड़ी दिक्कतों का समय पर इलाज़ बेहद जरूरी है वरनाा शरीर के कई अंगों पर इसका असर दिखना शुरू हो जाता है। इस बात को हमेशा ध्यान रखें।

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बार-बार पेशाब और आंखों में धुंधलापन भी डायबिटीज का लक्षण



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बार-बार पेशाब और आंखों में धुंधलापन भी डायबिटीज का लक्षण, एक्सपर्ट से समझिए डायबिटीज कैसे कंट्रोल करें

डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है जिसमें लगभग 60 फीसदी मरीजों में लक्षण ही नहीं दिखाई पड़ते हैं। ऐसे में इसकी पहचान दो तरह से होती है। पहला, कुछ खास लक्षणों के आधार पर और दूसरा खून की जांच से।

ब्लड टेस्ट में यदि खाली पेट शुगर 126 से अधिक और खाने के दो घंटे के बाद 200 से अधिक है तो इंसान डायबिटिक है। अगर खाली पेट शुगर 100-125 है और खाने के दो घंटे के बाद 140- 199 है तो इसे प्री-डायबिटीज कहते हैं। ऐसे में सतर्क हो जाना चाहिए।

14 नवम्बर को वर्ल्ड डायबिटीज डे मनाया जाता है। इस मौके पर इंदौर के टोटल डायबिटीज हार्मोन इंस्टीट्यूट के डायबिटोलॉजिस्ट और हार्मोन एक्सपर्ट डॉ. सुनील एम जैन बता रहे हैं, डायबिटीज से जुड़ी हर जरूरी बात...

सबसे पहले डायबिटीज के कारण और टाइप को समझें
डायबिटीज के तीन कारण हैं। पहला अनुवांशिक, दूसरा शारीरिक मेहनत की कमी और तीसरा मोटापा। पेट के आसपास चर्बी खतरनाक होती है। कई बार अलग-अलग स्थितियों में डायबिटीज भी होती है। जैसे - गर्भावस्था में होने वाली डायबिटीज। यह बाद में ठीक हो जाती है।

डायबिटीज की वजह और प्रकार

डायबिटीज मुख्यत: दो प्रकार की होती है।

  • टाइप 1 : यह एक ऑटो इम्यून कंडीशन है। यानी आपका इम्यून सिस्टम गलती से पैन्क्रियाज में पाई जाने वाले बीटा सेल्स पर आक्रमण कर उन्हें नष्ट कर देता है। यही बीटा सेल इंसुलिन बनाती हैं, जिसके बाद शरीर में इंसुलिन बनना बंद हो जाता है।
  • टाइप-2 : इस स्थिति में शरीर इंसुलिन का सही ढंग से उपयोग नहीं कर पाता है। यह गड़बड़ी पैन्क्रियाज को अधिक इंसुलिन बनाने के लिए उत्तेजित करती है, इससे इंसुलिन की जरूरत तो पूरी हो जाती है, लेकिन कुछ दिनों बाद इंसुलिन का बनना घटने लगता है।

डायबिटीज के ये लक्षण दिखें तो अलर्ट हो जाएं

  • वजन घटना-बढ़ना।
  • बार-बार पेशाब आना।
  • बार-बार भूख-प्यास का लगना।
  • थकान होना और आंखों में धुंधलापन रहना
  • घाव होने के बाद जल्दी न भरना

लाइफस्टाइल ऐसी हो : डायबिटीज नहीं है तो भी हफ्ते में 5 दिन 30 मिनट एक्सरसाइज करें
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसन के अनुसार व्यक्ति जितना अधिक शारीरिक गतिविधियों को बढ़ाता है इंसुलिन की सेंसिटीविटी उतनी ही बढ़ती है। जानी-मानी विले ऑनलाइन लाइब्रेरी में व्यायाम को लेकर ये सुझाव दिए गए हैं।

  • डायबिटीज नहीं है तो : सप्ताह में 5 दिन न्यूनतम 30 मिनट एक्सरसाइज करें। इसमें हाई इंटेंसिटी एरोबिक सप्ताह मंे तीन दिन और स्ट्रेंथ एक्सरसारइज सप्ताह में दो दिन करनी चाहिए।
  • अगर डायबिटीज है तो : सप्ताह में पांच दिन न्यूनतम 30 मिनट एक्सरसारइज जरूरी है। शरीर की क्षमता के अनुसार ही एक्सरसाइज करें। एरोबिक के साथ हल्की रजिस्टेंस ट्रेनिंग करें।

एक्सरसाइज का सबसे बेहतर समय
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के मुताबिक, डायबिटीज मरीज के लिए खाने के एक से तीन घंटे बाद एक्सरसाइज करना सबसे बेहतर है। इस समय इंसुलिन बढ़ा होता है। एक्सरसाइज के पहले ब्लड शुगर चेक करना चाहिए। शुगर लेवल 100 है तो फल का एक टुकड़ा खाकर एक्सरसाइज करनी चाहिए। जिससे हाइपोग्लाइसीमिया यानी शुगर की कमी से बचा जा सके।

अच्छी नींद और डाइट बहुत असरदार होती है
ऑक्सफोर्ड के अनुसार, नींद और इंसुलिन का आपस में गहरा संबंध है। संस्थान में 16 ऐसे लोगों पर प्रयोग किया गया जो नींद पूरी नहीं ले पा रहे थे। इनके सोने के घंटों में एक घंटे की वृद्धि जब की गई तो इंसुलिन पर अच्छा असर दिखा।

डाइट ऐसी होनी चाहिए
डायबिटीज के मरीजों को अपनी जरूरत की कैलोरी की 50% पूर्ति बिना स्टार्च वाले आहार से, 25% प्रोटीन वाले और 25% पूर्ति वसा वाले आहार से करनी चाहिए। प्रोटीन युक्त आहार में सभी प्रकार की दालें, अंकुरित अनाज, अंडे का सफेद हिस्सा डायबिटीज के मरीजों के लिए फायदेमंद हैं। अधिक रेशायुक्त आहार जैसे हरी सब्जियां और सलाद भी ग्लूकोज कंट्रोल करने में मदद करते हैं।

तनाव से दूर रहें क्योंकि इसका असर ब्लड शुगर पर पड़ता है

कई रिसर्च में यह साबित हो चुका है कि तनाव से कुछ ऐसे हार्मोन्स निकलते हैं जिनसे डायबिटीज की बीमारी होने का खतरा बढ़ता है। ऐसे में योग स्ट्रेस मैनेजमेंट का सबसे सटीक तरीका है। नियमित योग करने से डायबिटीज के मरीजों में इंसुलिन सेंसिटिविटी बढ़ती है। सेंसिटिविटी बढ़ने का मतलब है कि शरीर मौजूदा इंसुलिन का इस्तेमाल बेहतर तरीके से करेगा।



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हल्दी वाले गर्म दूध से करें मेहमानों का स्वागत, ड्राय फ्रूट खिलाएं और गर्म-ताजा नाश्ता कराएं; रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ेगी

दीपपर्व पर देशभर में लाेग एक-दूसरे काे बधाई देते हैं। परिचिताें-रिश्तेदाराें के घर जाते हैं। नए व्यंजन बनाए जाते हैं और मेहमाननवाजी की जाती है। इस साल काेराेना के चलते इस परंपरा को थोड़ा बदला जा सकता है। इस दीपावली मेहमानाें का स्वागत हल्दी वाले गर्म दूध से करें। उन्हें गर्मागर्म नाश्ता पराेसें।

गुजरात में नगर निगम के अधिकारी लोगों से अपील कर रहे हैं कि त्योहार के उल्लास में कोरोना को बाधा न बनने दें। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए सभी परंपराएं निभाएं। हाथ मिलाना, बड़ाें के चरण स्पर्श हमारी परंपरा रही है। ऐसे में संक्रमण फैलने का जाेखिम रहता है। लोग नैतिक-सामाजिक जिम्मेदारी समझते हुए दाे गज दूरी, मास्क और सैनिटाइजर काे नजरअंदाज न करें।

मुलाकात ऐसे करें... ताकि सब सुरक्षित रहें

  • किसी के यहां जाएं या काेई मिलने आए, तब मास्क पहन कर रखें। मेहमानों से ऐसा करने के लिए कहें।
  • हाथ मिलाने, गले लगाने की आदत को टालें। सोशल डिस्टेंसिंग के साथ नमस्कार करके स्वागत करें।
  • घर के सदस्य, मेहमानाें और मुलाकातियाें को अनिवार्य रूप से सैनिटाइजर का उपयोग करवाएं।
  • छोटे बच्चों, गर्भवती महिलाओं, बुजुर्ग, लंबी बीमारी, लंबे समय से बीमार लाेगाें के पास जाने से बचें।
  • होम‌ आइसोलेट/होम क्वारेंटाइन व्यक्ति/ परिवार न किसी के यहां जाएं और न किसी को इन्वाइट करें।
  • शुभकामनाओं के साथ मास्क, सैनिटाइजर या पल्स ऑक्सीमीटर बतौर उपहार भी दे सकते हैं।

नाश्ता ऐसा कराएं... ताकि सब सेहतमंद रहें

  • हल्दीयुक्त गर्म दूध, ग्रीन-टी, मसालेदार चाय, नीबू शहद, नीबूयुक्त गर्म पानी सर्व कर सकते हैं।
  • रोग-प्रतिराेधक काढ़ा भी पेश कर सकते हैं।
  • काजू, बादाम, पिस्ता जैसे ड्रायफ्रूट रख सकते हैं।
  • माैसंबी, संतरा, पाइनेपल सहित अन्य फलों का ताजा जूस सर्व कर सकते हैं।
  • फलों के अलावा भिगोए/अंकुरित/उबले चने, मूंग जैसे अनाज सर्व कर सकते हैं।
  • सूखे नाश्ते के स्थान पर गर्म-ताजा नाश्ता कराएं। जैसे इडली, उपमा, ढाेकला आदि।
  • माउथफ्रेशनर के लिए लौंग, इलायची, अदरक आदि रखें।

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दीया-कैंडल जलाने से पहले सैनेटाइजर का इस्तेमाल न करें, सांस के मरीज इन्हेलर साथ रखें; दिवाली में ये 5 बातें याद रखें

दिवाली मनाने जा रहे हैं तो दो बातें पहले समझ लें। पहली, कई रिसर्च में यह साबित हुआ है कि एयर पॉल्यूशन कोरोना के खतरे को बढ़ाता है। दूसरा, इस समय हवा में पाल्यूशन का लेवल काफी अधिक बढ़ जाता है। जो सीधे तौर पर फेफड़ों पर बुरा असर छोड़ता है। इसलिए दिवाली को सेलिब्रेट करें लेकिन कोविड-19 और एयर पॉल्यूशन के बीच कुछ बातों का ध्यान जरूर रखें। एक्सपर्ट से जानिए क्या करें और क्या न करें...

5 पॉइंट्स : कोविड-19 और वायु प्रदूषण के बीच ऐसे मनाएं सुरक्षित दिवाली

1. दीया या मोमबत्ती जलाने से पहले सैनेटाइज़र का इस्तेमाल न करें
इन्द्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटलस, नई दिल्ली के सीनियर पल्मोनोलोजिस्ट डॉ. राजेश चावला कहते हैं, दीया या मोमबत्ती जलाने से पहले अल्कोहल युक्त सैनेटाइजर का प्रयोग बिल्कुल न करें। यह आग पकड़ सकता है और दुर्घटना हो सकती है। सैनेटाइजर लगाने के 15 से 20 मिनट बाद ही आग से जुड़े काम करें। बेहतर होगा कि सैनेटाइजर की जगह साबुन और पानी का इस्तेमाल करें।

2. एयर पॉल्यूशन के ये साइडइफेक्ट नजरअंदाज न करें
एयर पॉल्यूशन कई तरह से शरीर पर बुरा असर छोड़ता है। सांस के रोग जैसे सीओपीडी, ब्रॉन्कियल अस्थमा के लक्षण गंभीर होने लगते हैं। थकान, सिरदर्द के अलावा आंख, नाक और गले में जलन हो सकती है। कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम पर बुरा असर होता है। ऐसे लक्षण दिखने पर फिजिशियन की सलाह लें।

3. आंखों का विशेष ख्याल रखें

आई एक्सपर्ट डॉ. संदीप बुटन कहते हैं, एयर पॉल्यूशन और पटाखे के धुएं से आंखों से पानी आना, लाल हो जाना और खुजली जैसे लक्षण दिख सकते हैं। धुंधला दिखना या कम दिखने की तकलीफ हो सकती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि एयर पॉल्यूशन में मौजूद रसायनों का सीधा असर आंसुओं के बनने की क्षमता पर पड़ता है।

बेहतर होगा कि जिन जगहों पर पॉल्यूशन और डस्ट अधिक है वहां जाने से बचें। अगर जाना जरूरी है तो चश्मा लगाएं और वापस लौटने के बाद आंखों को सादे पानी से धोएं। कुछ आई ड्रॉप्स भी पॉल्यूशन का असर घटाते हैं, इसे एक्सपर्ट की सलाह से ले सकते हैं।

4. ये सावधानियां एयर पाल्यूशन के असर को कम करेंगी

  • घर का वेंटिलेशन न बिगड़ने दें। बीच-बीच में घर की खिड़कियां खोल दें, ताकि ताज़ी हवा आती रहे।
  • एहतियात के तौर पर मास्क जरूर पहनें। ये कोरोना के साथ प्रदूषण के असर को भी कुछ हद बचाने का काम करेगा।
  • आंखों में जलन या खुजली होने पर रगड़ें नहीं। पानी से छीटें मारकर आंखों को धोएं।
  • सुबह और शाम को पॉल्यूशन अधिक होता है इसलिए खुले में एक्सरसाइज करने की जगह कमरे ही करें तो बेहतर है।

5. इम्युनिटी बढ़ाने वाली डाइट लें
त्योहार के दौरान बनने वाले पकवानों को एंजॉय करें लेकिन डाइट में विटामिन-सी, मैग्नीशियम और ओमेगा फैटी एसिड्स से युक्त चीजों को शामिल करें। ये रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाएंगे। इसके लिए मौसमी, संतरा, ड्राय फ्रूट्स ले सकते हैं।

6. अपने साथ इन्हेलर और दवाएं लें
सांस के रोगी खासतौर पर अपने साथ इन्हेलर और जरूरी दवाएं जरूरी रखें। इसके अलावा ऐसे मरीज़ जो कोविड-19 से ठीक हुए हैं और जिन्हें सांस की समस्याएं हैं वो घर में ही दिवाली सेलिब्रेट करें तो ज्यादा बेहतर है।

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Thursday, November 12, 2020

भारतीय वैज्ञानिकों ने विकसित की 100 डिग्री तापमान पर भी खराब न होने वाली कोरोना की वैक्सीन, ह्यूमन ट्रायल की तैयारी

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के वैज्ञानिकों ने ऐसी कोविड-19 वैक्सीन तैयार की है जिस पर गर्मी का असर नहीं होगा। वैज्ञानिकों का दावा है, यह हीट-टॉलरेंट है और 100 डिग्री सेंटीग्रेट तक तापमान बढ़ने का कोई असर वैक्सीन पर नहीं पड़ेगा। इसे 37 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान पर एक महीने तक रखा जा सकता है।

रिमोट एरिया में भी पहुंचाई जा सकेगी

वैज्ञानिकों का कहना है, यह नई वैक्सीन खासतौर पर मध्यम आय वर्ग वाले देशों में भी असरदार साबित होगी जहां आमतौर पर वैक्सीन रखने के लिए महंगे कूलिंग इक्विपमेंट बड़ी चुनौती होते हैं। इसलिए इसे रिमोट एरिया में भी पहुंचाया जा सकेगा।

स्पाइक प्रोटीन से तैयार की वैक्सीन
बायोलॉजिकल केमेस्ट्री जर्नल में पब्लिश रिसर्च के मुताबिक, इस वैक्सीन को तैयार करने के लिए कोरोनावायरस के स्पाइक प्रोटीन के एक हिस्से का इस्तेमाल किया गया है। जब इसका ट्रायल किया गया तो इम्यून रिस्पॉन्स काफी बेहतर रहा।

अब ह्यूमन ट्रायल की तैयारियां हुईं तेज

वैक्सीन को तैयार करने वाली टीम के हेड राघवन वरदराजन कहते हैं, फंडिंग मिलने के बाद अब वैक्सीन के लिए क्लीनिकल डेवलपमेंट की तैयारियां तेज हो गई हैं। अब वैक्सीन की सेफ्टी और साइडइफेक्ट को समझने के लिए इसका ट्रायल इंसानों पर किया जाएगा। इंसानों पर ट्रायल के लिए वैक्सीन का पहला बैच तैयारी की फेज में है।

कोवीशील्ड वैक्सीन के 4 करोड़ डोज तैयार

देश में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच अच्छी खबर है। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) ने गुरुवार को बताया कि ऑक्सफोर्ड और एस्ट्राजेनिका की कोरोना वैक्सीन कोवीशील्ड के चार करोड़ डोज तैयार कर लिए गए हैं। तीसरे और फाइनल फेज ट्रायल के लिए 1600 लोगों का रजिस्ट्रेशन भी हो गया है। वहीं, कोविड सुरक्षा मिशन के तहत भारतीय वैक्‍सीन के विकास के लिए वित्त मंत्री ने 900 करोड़ रु. का ऐलान किया है।

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की निगरानी में कोवीशील्ड का ट्रायल हो रहा है। SII ने अमेरिकी कंपनी नोवावैक्‍स (Novavax) से भी Covavax वैक्‍सीन के लिए टाईअप किया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, Novavax ने SII के साथ 2021 में 100 करोड़ डोज सप्लाई करने का करार किया है।

देश के कुछ राज्यों में एक्टिव केस में हो रही बढ़ोतरी चिंता का सबब बन गया है। बुधवार को देश में 4 हजार 988 एक्टिव केस बढ़े, इनमें से अकेले महाराष्ट्र में ही 4 हजार 351 मरीज कम हुए। 17 राज्यों में एक्टिव केस कम हुए हैं तो 16 राज्यों में बढ़े हैं। सबसे ज्यादा 1244 मरीज दिल्ली में बढ़े हैं।

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तांबे के बर्तन पेट की बीमारियां दूर करेंगे और चांदी याद्दाश्त तेज करेगी, जानिए दिवाली में कौन से बर्तन खरीदें जो सेहतमंद रखे

स्वस्थ रखने में जितना खानपान जरूरी है उतने ही जरूरी हैं बर्तन। जिसे अक्सर नजरअंदाज किया जाता है। अलग-अलग धातुओं के बर्तनों के फायदे भी अलग हैं। जब इनमें खाना पकाया या रखकर खाया जाता है तो धातु का असर पूरे शरीर पर होता है। जैसे मिट्टी के बर्तन में रखा पानी पीने पर शरीर लंबे समय ठंडा रहता है और तांबे के बर्तन में रखा पानी पेट को फायदा पहुंचाता है। इस दिवाली खरीदारी करते समय ध्यान रखें कि किस धातु का बर्तन खरीद रहे हैं। राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान, जयपुर के आयुर्वेद विषेशज्ञ डॉ. हरीश भाकुनी बता रहे हैं अलग-अलग धातुओं के बर्तन के फायदे....

तांबा: इस बर्तन में 8 घंटे रखा पानी किडनी, लिवर और पेट के लिए फायदेमंद है

क्यों जरूरी : आयुर्वेद के मुताबिक, तांबा शरीर के वात, कफ और पित्त दोष को संतुलित करता है। यह धातु पानी को शुद्ध करती है और बैक्टीरिया को खत्म करती है। यह शरीर से फैट और विषैले तत्वों को दूर करने के साथ शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का काम करता है।

तांबे के बर्तन में रखा पानी पेट, किडनी और लिवर के लिए खास फायदेमंद है। साथ ही यह वजन नियंत्रित करने में मदद करता है। इसका पूरा उठाने के लिए कम से कम तांबे के बर्तन में 8 घंटे तक पानी रखने के बाद ही पीएं।

ध्यान रखें : तांबे के बर्तन में दूध कभी ना पिएं और न ही रखें। इसकी प्रकृति दूध को विषैला बना देती है।

चांदी : इसके बर्तन में रखा पानी रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाता है

क्यों जरूरी : इस धातु का सम्बंध दिमाग से है और शरीर के पित्त को नियंत्रित करती है। खासकर छोटे बच्चों का दिमाग तेज करने के लिए चांदी के बर्तन में भोजन या पानी दिया जाता है। इसकी प्रकृति शरीर को ठंडा रखती है। चांदी के बर्तन रखकर भोजन खाने से तन और मन शांत होता है।

ऐसे लोग जो संवाद करते हैं या किसी अध्ययन से जुड़े हैँ वे चांदी के बर्तन का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह धातु 100 फीसदी बैक्टीरिया फ्री होती है इसलिए इंफेक्शन भी बचाती है। चांदी के बर्तन इम्युनिटी बढ़ाकर मौसमी बीमारियों से भी बचाते हैं।

ध्यान रखें - चांदी के बर्तन में खाने के कोई नुकसान नहीं हैं।

लोहे : इसके बर्तनों में बना खाना आयरन की कमी को पूरा करता है

क्यों जरूरी : काफी समय से खाना बनाने में लोहे की कढ़ाही का प्रयोग किया जा जाता रहा है क्योंकि यह आसानी से उपलब्ध होता है और आयरन की कमी पूरी करता है। लोहे की कढ़ाही में बना खाना खासतौर पर महिलाओं को खाना चाहिए क्योंकि आयरन की कमी के मामले इनमें अधिक देखे जाते हैं।

हरी सब्जियां लोहे के बर्तनों में ही पकानी चाहिए। इसमें तैयार खाना शरीर का पीलापन और सूजन दूर करता है। लोहे के बर्तनों में रखकर दूध पीना फायदेमंद है।

ध्यान रखें : इसमें खाना बनाएं लेकिन खाने के लिए लोहे के बर्तनों का प्रयोग न करें।

सोना : यह आंखों की रोशनी और स्किन की चमक बढ़ाता है

क्यों जरूरी : सोने की तासीर गर्म और चांदी की प्रकृति ठंडी होती है। महंगी होने के कारण इस धातु से बर्तनों का इस्तेमाल हमेशा से ही कम लोग किया करते थे। सोने की तासीर गर्म होने के कारण सर्दियों में इसमें खाना बनाकर खाने से ज्यादा फायदा मिलता है। यह स्पर्म काउंट बढ़ाता है, शरीर के अंदरूनी और बाहरी दोनों हिस्सों में इसका असर दिखता है। सोना शरीर को मजबूत बनाने के साथ आंखों की रोशनी बढ़ाता है और स्किन पर चमक लाता है।

स्टील: इसके बर्तन न तो फायदा पहुंचाते हैं और न नुकसान

क्यों जरूरी : स्टील के बर्तन हर घर में दिख जाएंगे। सस्ते और आसानी से उपलब्ध होने के कारण इनका चलन अधिक है। लेकिन ये बर्तन न तो फायदा पहुंचाते हैं और न ही नुकसान। इनमें खाना बनाने या खाने से शरीर पर खास फर्क नहीं पड़ता। स्टील के बर्तन ना ही गर्म होने पर क्रिया करते है और ना ही अम्ल से, इसलिए यह सुरक्षित और किफायती होते हैं।

मिट्टी के बर्तन: इसमें बना खाना पेट के रोग दूर करता है

क्यों जरूरी : पेट के रोगियों के लिए मिट्टी के बर्तन में खाना और पकाना फायदेमंद होता है। मिट्टी के बर्तन में खाना पकाने से इसके पोषक तत्व खत्म नहीं होते हैं। ये भोजन को पौष्टिक बनाए रखने में मदद करते हैं। इसके फायदे लेने की सबसे जरूरी शर्त है मिट्टी में मिलावट नहीं होनी चाहिए।

कई बार मिट्टी के बर्तनों को खूबसूरत बनाने के लिए इसमें पेंट कर दिया जता है या चिकनी मिट्टी की मिलावट की जाती है। बढ़ती बीमारियों के चलते लोग एक बार फिर मिट्टी के बर्तनों की तरफ लौट रहे हैं। मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाने से रक्त प्रदर (महावारी) या नाक से खून आना जैसी समस्याओं से राहत मिलती है। गर्मियों में मिट्टी के बर्तनों रखा पानी पीने से पाचन बेहतर होता है।



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Diwali Dhanteras 2020; Buy Copper Utensils To Avoid Kidney-liver Diseases


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सिरदर्द और थूक से खून आना भी निमोनिया का लक्षण, ये कोरोना से मिलते-जुलते है; एक्सपर्ट से समझें कब अलर्ट हो जाएं

दुनियाभर में निमोनिया के जितने मामले सामने आते हैं उसमें से 23 फीसदी भारत में देखे जाते हैं। इनमें से 14 से 30 फीसदी मामलों में मौत हो जाती है। ज्यादातर लोग समझते हैं निमोनिया बच्चों में होने वाली बीमारी है जबकि ऐसा नहीं है। यह नवजात से लेकर बुजुर्गों तक में हो सकती है।

निमोनिया के ज्यादातर मामले स्टेप्टोकॉकस निमोनिया बैक्टीरिया के कारण होते हैं जो सीधे तौर पर फेफड़े पर असर डालते हैं। इसके अलावा क्लेबसेला निमोनिया बैक्टीरिया भी बीमारी की वजह है। जो हर उम्र वर्ग में संक्रमण फैला सकती है।

आज वर्ल्ड निमोनिया डे है। मुम्बई के जसलोक हॉस्पिटल के रेस्पिरेट्री मेडिसिन कंसल्टेंट डॉ. राहुल बहोत बता रहे हैं कोरोनाकाल में निमोनिया को कैसे समझें क्योंकि दोनों ही बीमारियों का असर फेफड़ों पर होता है....

कोरोनाकाल में निमोनिया के लक्षण याद रखें क्योंकि इनके लक्षण मिलते-जुलते हैं
डॉ. राहुल कहते हैं, कोरोना महामारी भी चल रही है अगर इस दौरान निमोनिया होता है तो कन्फ्यूजन की स्थिति बन सकती है। कोविड-19 और निमोनिया के कुछ लक्षण मिलते जुलते हैं। इसलिए निमोनिया के लक्षणों को याद रखना बेहद जरूरी है।

अगर सूखी खांसी, सीने में दर्द और सांस लेने में तकलीफ हो रही है तो अलर्ट होने की जरूरत है। ये भी निमोनिया के लक्षण हैं। इसके अलावा हल्का बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों में थकान, पसीना आना और ठंड लगने के लक्षण भी निमोनिया में देखे जाते हैं। निमोनिया के कुछ मामलों में मुंह से खून भी आ सकता है। ऐसा तब होता है जब संक्रमण अधिक गंभीर हो चुका होता है।

बुजुर्ग हैं तो ये जरूर ध्यान रखें
बुजुर्गों को निमोनिया होने पर 50 फीसदी मामलों में खांसी, बुखार और सांस लेने में तकलीफ जैसे लक्षण नहीं दिखाई देते। इनमें सांस लेने की रफ्तार बढ़ जाती है। बुजुर्गों में पेट दर्द और भूख न लगने के लक्षण भी दिखते हैं।

निमोनिया के ज्यादातर मामले स्टेप्टोकॉकस निमोनिया बैक्टीरिया के कारण होते हैं जो सीधे तौर पर फेफड़े पर असर डालते हैं।

किन्हें निमोनिया का खतरा जयादा
ऐसे लोग जो हार्ट डिसीज, डायबिटीज और फेफड़ों की समस्या जैसे सीओपीडी से जूझ रहे हैं, उन्हें निमोनिया होने का खतरा अधिक है। इसके अलावा जिनकी रोगों से लड़ने की क्षमता यानी इम्युनिटी कम है या कीमोथैरेपी ले रहे हैं, उन्हें भी इसका खतरा अधिक है।

एक्सपर्ट कहते हैं कार्बन मोनो ऑक्साइड और सल्फर डाई ऑक्साइड जैसे केमिकल भी फेफड़ों में सूजन बढ़ाने का काम करते हैं। इससे जूझने वाले मरीजों में भी निमोनिया होने का खतरा अधिक है।

अब इलाज का तरीका भी समझ लीजिए
लक्षण नजर आने पर मरीजों का चेस्ट-एक्सरे किया जाता है। इसके अलावा ब्लड टेस्ट, यूरिन टेस्ट और थूक की जांच करके भी पता लगाते हैं कि मरीज निमोनिया से जूझ रहा है या नहीं। इलाज के लिए मरीजों को एंटीबायोटिक्स, फ्लुइड, ऑक्सीजन और फिजियोथैरेपी दी जाती है।

वो 4 बातें जो निमोनिया से दूर रखेंगी

  • कोरोनाकाल में मास्क लगाना न छोड़ें
  • हाथों को साबुन-पानी से जरूर धोएं
  • सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें।
  • पानी को उबालें और ठंडा करके पिएं।

निमोनिया से जुड़े 3 भ्रम और उनकी सच्चाई

भ्रम : निमोनिया को रोका नहीं जा सकता
सच्चाई : ज्यादातर लोग मानते हैं कि निमोनिया का इलाज है लेकिन इसे रोका नहीं जा सकता। ये सच नहीं है। कुछ सावधानियां बरतकर निमोनिया को रोका जा सकता है। संक्रमित इंसान से 6 फीट की दूरी बनाएं, साबुन न होने पर सैनेटाइजर से हाथों की सफाई करें और मास्क लगाना न भूलें।

भ्रम : निमोनिया कोई गंभीर बीमारी नहीं है।
सच्चाई :
इसे हल्के में न लें। बॉडी में सेप्सिस, सेप्टिक शॉक की वजह भी निमोनिया ही होती है। इसके 50 फीसदी मामलों में निमोनिया की वजह सामने आती है।

भ्रम : यह बीमारी केवल बुजुर्गों में गंभीर होती है।
सच्चाई :
हां, यह बात कुछ हद तक सच है लेकिन अगर किसी में निमोनिया होता है और मरीज उसे नजरअंदाज करता है तो स्थिति गंभीर हो सकती है।

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Wednesday, November 11, 2020

अकेले रहने वाली महिलाओं में हाई ब्लड प्रेशर का 28% और विधवाओं में 33% अधिक खतरा, ऐसे कंट्रोल करें बीपी

शादीशुदा न होने का कनेक्शन हाई ब्लड प्रेशर से भी है। अमेरिका में हुई रिसर्च कहती है, ऐसी महिलाएं जिनकी शादी नहीं हुई है उनमें हाई ब्लड प्रेशर यानी हायपरटेंशन का खतरा अधिक है। हायपरटेंशन जर्नल में पब्लिश रिसर्च के मुताबिक, शादी और जेंडर का हायपरटेंशन से क्या कनेक्शन है, इसे समझने के लिए वैज्ञानिकों ने स्टडी की।

इन्हें खतरा अधिक
कनाडा में 45 से 85 साल 28,238 पुरुष-महिलाओं पर रिसर्च की गई। रिसर्च में सामने आया कि शादीशुदा के मुकाबले अकेले रहने वाली महिलाएं 28 फीसदी तक अधिक हाई ब्लड प्रेशर से परेशान रहती हैं। वहीं, तलाकशुदा महिलाओं में 21 फीसदी और विधवा महिलाओं में 33 फीसदी अधिक हाई ब्लड प्रेशर का खतरा रहता है।

कुंवारे पुरुषों में हाई बीपी के मामले कम क्यों?
रिसर्च के मुताबिक, कुंवारे पुरुषों की स्थिति इसके उलट है। अकेले रहने वाले पुरुषों में हाई बीपी का खतरा कम है क्योंकि ये अधिक तनाव नहीं लेते। मिलनसार होने के कारण इनमें ब्लड प्रेशर बढ़ने का खतरा कम रहता है। वैज्ञानिकों का कहना है, जिन महिलाओं के दोस्त बेहद कम होते हैं उनमें भी हायपरटेंशन का खतरा 15 फीसदी तक अधिक होता है।

ब्लड प्रेशर को ऐसे समझें

मेडिकल न्यूट्रीशनिस्ट डॉ बिस्वरूप राय चौधरी का कहना हैं कि ब्लड प्रेशर बीमारी नहीं, यह शरीर में होने वाले नकारात्मक बदलाव का एक लक्षण है। इसे काबू करने के दो फॉर्मूले हैं। पहला, अपनी रोज के खाने में 50 फीसदी फल और कच्ची सब्जियां खाएं। दूसरा, नमक और तेल से दूर रहें।

हाई और लो बीपी, दोनों खतरनाक

बहुत ज्यादा या कम बीपी दोनों ही खतरनाक हैं। नई परिभाषा के अनुसार, अगर ब्लड प्रेशर 160/100 से नीचे है तो इसे हाई बीपी नहीं मानेंगे। अगर इस आंकड़े के ऊपर लगातार बीपी बना रहता है तो इसे हाई बीपी मान सकते हैं। अगर यह 100/60 रहता है या इससे नीचे रहता है तो लो-बीपी मानेंगे। जब बेचैनी, सिरदर्द, कमजोरी, सुस्ती महसूस हो तो इसका मतलब है बीपी ज्यादा या कम है। ऐसा महसूस न होने पर स्थिति सामान्य है, परेशान होने की जरूरत नहीं।

सीधे तौर पर ऐसा नहीं होता और सिर्फ एक दिन में भी ऐसा नहीं होगा। लंबे समय तक मोबाइल के इस्तेमाल से ट्यूमर की आशंका रहती है। शरीर में ट्यूमर बनने से बीपी बढ़ सकता है।

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Unmarried Women At Greater Risk From Hypertension? Here's American Scientists Latest Research


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Walkaroo वापस आया है अपने नए #WalkWithWalkaroo सोशल कॉन्टेस्ट के साथ

भारत को स्वस्थ और फिट रखने के अपने इरादे के साथ Walkaroo वापस आया है अपने नए #WalkWithWalkaroo सोशल कॉन्टेस्ट के साथ। फुटवियर ब्रांड Walkaroo का मानना है कि फिटनेस की शुरुआत घर से होती है।

कोविड 19 के दौरान फिट रहना आसान काम नहीं था। अब जब हम एक बेहतर कल की तरफ बढ़ रहे हैं, Walkaroo लोगों को फिट और स्वस्थ रहने के लिए प्रेरित कर रहा है।#WalkWithWalkaroo स्वास्थ्य और फिटनेस के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए Walkaroo का एक प्रयास है और ब्रांड प्रोत्साहन के रूप में प्राइज में मुफ्त स्पोर्ट्स शूज दे रहा है। कॉन्टेस्ट 26 अक्टूबर 2020 से 13 नवंबर 2020 तक हर सोमवार से शुक्रवार चलेगा।

#WalkWithWalkaroo कॉन्टेस्ट में फिटनेस के प्रति उत्साही लोग, किसी भी ट्रैकर ऐप से अपने स्टेप-काउंट को रिकॉर्ड और अपलोड करके Walkaroo के सोशल मीडिया हैंडल को टैग करके भाग ले सकते है। कॉन्टेस्ट में रोज 10 विजेताओं का चयन किया जाएगा और उन्हें ईनाम में नए Walkaroo स्पोर्ट्स शूज दिए जाएंगे।#WalkWithWalkaroo को पूरे भारत में जबरदस्त सराहना मिली है। कांटेस्ट के शुरू होने के 1 हफ्ते में ही लोग 30 लाख से ज़्यादा स्टेप्स चल चुके हैं। यह एक तरह का कांटेस्ट है, जो न केवल लोगों को फिट और स्वस्थ होने के लिए प्रेरित कर रहा है, बल्कि उन्हें नए स्पोर्ट्स शूज जीतने का मौका भी दे रहा है।

Walkaroo 2015 में शुरू हुआ एक ब्रांड है जिसके कलेक्शन में स्पोर्ट शूज़, स्नीकर्स, लाइफस्टाइल / फैशन शूज़, सैंडल, लोफर्स और फ्लिप-फ्लॉप की रेंज उपलब्ध है। Walkaroo हाई-क्वॉलिटि फुटवियर का निर्माता है पर जो चीज उसे अलग करती है वह है उसका ट्रेंडी डिज़ाइन। Walkaroo लगातार अपने फुटवियर कलेक्शन में नए फैशन और शैलियों को डिज़ाइन शामिल करने पर ध्यान देता है जो की काफी कुछ युवाओं की तरफ केंद्रित होतेहैं।



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लहसुन, बादाम और फायबर वाले भोजन से घटेगा कोलेस्ट्रॉल और हृदय रोगों का खतरा, एक्सपर्ट की ये 5 बातें ध्यान रखें

कोलेस्ट्रॉल एक केमिकल कंपाउंड होता है, जो शरीर में कोशिकाओं के निर्माण के लिए जरूरी है। लेकिन शरीर में इसकी अधिक मात्रा दिल, दिमाग और किडनियों के लिए घातक है। कोलेस्ट्रॉल हमारी खानपान की आदतों से बढ़ता है। यानी खानपान की आदतों में सुधार करके भी कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल किया जा सकता है। डाइट एंड वेलनेस एक्सपर्ट डॉ. शिखा शर्मा से जानिए कैसे कंट्रोल में रखें कोलेस्ट्रॉल

1. सुबह की शुरुआत लहसुन से
लहसुन में ऐसे एंजाइम्स पाए जाते हैं, जो एलडीएल यानी खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मददगार साबित होते हैं। एक रिसर्च के मुताबिक, लहसुन के नियमित सेवन से एलडीएल के स्तर में 9 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है। रोजाना सुबह के समय खाली पेट लहसुन की दो कलियों को चबा-चबाकर खाना फायदेमंद होगा।

2. चाय पीने से पहले बादाम खाएं
बादाम में ओमेगा-3 फैटी एसिड होते हैं, जो बुरे कोलेस्ट्रॉल को घटाने और अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने में मददगार होते हैं। इन्हें एक रात पहले पानी में भिगोकर सुबह चाय से करीब 20 मिनट पहले खाना चाहिए। पानी में भिगोने से बादाम में फैटी तत्व कम हो जाता है।

रोजाना पांच से छह बादाम खाना भी पर्याप्त है। इसका एक माह का खर्च लगभग उतना ही होगा, जितना कोलेस्ट्रॉल होने पर उसे घटाने वाली दवाओं पर होता है। साथ ही अखरोट का सेवन भी करेंगे तो दोगुना फायदा होगा। काजू को अवॉइड करना चाहिए।

3. भोजन में अधिक से अधिक फाइबर हों
नाश्ते से लेकर डिनर तक, आप जब भी और जो भी खाएं, वह फाइबरयुक्त होना चाहिए। रोजाना अपने दोनों समय के भोजन में सलाद को जरूर शामिल करें। सलाद में शामिल तमाम तरह की सब्जियां जैसे प्याज, मूली, गाजर, चुकंदर फाइबर्स से युक्त होती हैं। ओट्स, स्प्राउट्स और शकरकंद में भी काफी मात्रा में फाइबर्स होते हैं। इन्हें नाश्ते में लें। संतरे, नाशपाती, पपीते, चीकू जैसे फल भी फाइबरके अच्छे सोर्स होते हैं।

4. बाहर की तली हुई चीजों को ना कहें
ट्रांसफैट के लगातार सेवन से एलडीएल जैसा बुरा कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है, जबकि एचडीएल जैसे अच्छे कोलेस्ट्रॉल का लेवल 20 फीसदी तक घट जाता है। ट्रांसफैट मुख्य रूप से डीप फ्राइड और क्रीम वाली चीजों में होता है। खासकर एक ही तेल को बार-बार गर्म करने से उसमें ट्रांसफैट की मात्रा बढ़ जाती है। बाहर के खाने में आमतौर पर इसी तरह के तेल का ज्यादा इस्तेमाल होता है। इसलिए बाहर की डीप फ्राइड चीजें अवॉइड करनी चाहिए।

5. वानस्पतिक प्रोटीन का सेवन बढ़ाएं
वानस्पतिक प्रोटीन से मतलब ऐसा प्रोटीन होता है जो वनस्पतियों यानी पेड़-पौधों से मिलता हो। यह प्रोटीन दालों, राजमा, चना, मूंगफली, सोयाबीन आदि के जरिए हासिल किया जा सकता है। इससे बैड कोलेस्ट्रॉल के लेवल को काफी तेजी से घटाने में मदद मिलती है और गुड कोलेस्ट्रॉल का लेवल बढ़ता है।

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कौओं में भी बढ़ता है कोलेस्ट्राॅल, शहरी क्षेत्र के कौओं में मिला 5 गुना ज्यादा कोलेस्ट्रॉल, वजह; चीज बर्गर



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Cholesterol Levels And Heart Diseases Risk; Health Tips On How To Keep Your Cholesterol Under Control


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खाने को फ्राई करने की जगह बेक और ग्रिल करें, तेल बदलते रहें; हार्ट डिसीज, कैंसर और मोटापे का खतरा घटेगा

हेल्दी बॉडी के लिए तेल को इस्तेमाल करने का तरीका बदलिए। खाने को अधिक फ्राई करने की जगह बेक्ड, ग्रिल और स्टीम करें। इससे इसमें पोषक तत्व बने रहते हैं और शरीर को नुकसान नहीं पहुंचता। यह सलाह फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) ने ट्विटर पर दी।

FSSAI का कहना है कि डाइट को हेल्दी बनाने और फैट घटाने के लिए कई तरह के तेलों का इस्तेमाल किया जा सकता है। ये हार्ट डिसीज, मोटापा और डायबिटीज का खतरा घटाते हैं और कई तरह के पोषक तत्वों की कमी पूरी करते हैं। जानिए FSSAI की 5 सलाह...

1. खाना टेस्टी बनाना है तो बेक या स्टीम करें
खाना बनाते समय चीजों को फ्राई करने की जगह उसे बेक, ग्रिल या स्टीम कर सकते हैं। इससे खाना ज्यादा टेस्टी बनता है और उसके पोषक तत्व बरकरार रहते हैं।

2. फ्राई फूड कैंसर, डायबिटीज और मोटापे का खतरा बढ़ाते हैं
FSSAI के मुताबिक, फ्राई फूड में अधिक कैलोरीज होती हैं जो वजन को बढ़ाती हैं। इसके साथ ही डायबिटीज, हार्ट डिसीज और कैंसर का खतरा भी बढ़ाती हैं।

3. खाना बनाएं तो तेल को नापकर ही डालें
जब भी खाना बनाएं तो तेल का इस्तेमाल नाप कर करें। इसके लिए टी-स्पून का प्रयोग करें। यह तरीका खाने में तेल की मात्रा को कम रखेगा। डाइट में तेल की मात्रा को कम करने का एक तरीका यह भी है कि इसे कम मात्रा में खरीदें। धीरे-धीरे इसका इस्तेमाल कम होगा। जितना कम फैट खाने में होगा, उतना ही स्वस्थ रहेंगे।

4. इसलिए अलग-अलग तरह के तेलों का इस्तेमाल करें
FSSAI के मुताबिक, खाने में कई तरह के तेलों का इस्तेमाल करें। इनमें जरूरी पोषक तत्वों के साथ शरीर को फायदा पहुंचाने वाले फैटी एसिड्स होते हैं। खाना बनाने के लिए सूरजमुखी, अलसी, तिल, मोमफली, सरसों और नारियल के तेल का इस्तेमाल करें।

5. तेल का इस्तेमाल कम करने के लिए रोस्टिंग करें
किचन में खाना बनाने के लिए स्मार्ट तरीके अप्लाय करें। जो चीजें रोस्ट करके खाई जा सकती हैं, उसे वैसे ही पकाएं। जैसे पापड़ को तलने की जगह रोस्ट करें। इससे पापड़ का फ्लेवर बरकरार रहता है।

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खुश्बूदार तेलों से इलाज, सिरदर्द-अनिद्रा के लैवेंडर ऑइल और जोड़ों में दर्द के लिए लौंग का तेल लगाएं

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पारले की लाल ऐप्पी फिज में बीयर, बच्चों के लिए हानिकारक है ये ड्रिंक? जानें वायरल वीडियो का सच

क्या हो रहा है वायरल : सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें दावा किया जा रहा है कि नई लाल रंग की ऐप्पी फिज में बीयर है। और ये बच्चों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

वायरल वीडियो में एक शख्स लोगों से अपील कर रहा है कि लाल ऐप्पी फिज बिल्कुल न पीएं। ये हमारे समाज और स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक है।

और सच क्या है?

  • दावे की पुष्टि के लिए हमने सबसे पहले हमने नई लाल एप्पी फिज से जुड़ी मीडिया रिपोर्ट्स सर्च करनी शुरू कीं।
  • पिछले महीने ही पारले एग्रो ने अपनी मॉल्ट फ्लेवर्ड एप्पी फिज लॉन्च की है। इससे जुड़ी किसी भी मीडिया रिपोर्ट में हमें ये उल्लेख नहीं मिला, कि नई एप्पी फिज में बीयर है।
  • पारले एग्रो की ऑफिशियल वेबसाइट पर नई ऐप्पी फिज जुड़ी जानकारी है। जानकारी से पता चलता है कि ये पूरी तरह एक नॉन अल्कोहोलिक ड्रिंक है। साफ है कि ऐप्पी फिज में बीयर होने का दावा झूठा है।


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Parle's red Appy Fizz contains Alcohol, harmful for children


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Tuesday, November 10, 2020

कोरोनाकाल में बच्चे का कोई टीका टालें नहीं वरना खतरा दोगुना बढ़ सकता है, टीका लगवाएं तो ये 10 बातें ध्यान रखें

विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है, वैक्सीन के जरिए हर साल 20 से 30 लाख मौतें टाली जा सकती हैं। दुनियाभर में 1.87 करोड़ बच्चों को बेसिक वैक्सीन नहीं मिल पा रही है। इस साल वैक्सीन और भी ज्यादा चर्चा में है क्योंकि कोरोना को खत्म करने के लिए अभी भी देश में वैक्सीन ट्रायल फेज में है।

मुम्बई के जसलोक हॉस्पिटल मेंं इमरजेंसी मेडिकल सर्विसेज के हेेड डॉ. सुनील जैन कहते हैं, वैक्सीनेशन प्रोग्राम चलने के बावजूद बहुत से लोग टीका नहीं लगवाते हैं। उन्हें भ्रम रहता है कि वैक्सीन लगवाने पर इसके साइडइफेक्ट दिखेंगे, जबकि सभी में ऐसे मामले सामने नहीं आते। कोरोनाकाल में भी दूसरी बीमारियों से बचने के लिए वैक्सीन को टालें नहीं। खुद को भी और बच्चों को भी इन्हें समय पर लगवाएं ताकि कोरोनाकाल में दूसरी बीमारियों का खतरा टाला जा सके।

आज वर्ल्ड इम्यूनाइजेशन डे है। इस दिन का लक्ष्य लोगों में वैक्सीन से जुड़ी भ्रांतियां खत्म करना और उन्हें टीका लगवाने के लिए प्रेरित करना है। इस मौके पर डॉ. सुनील जैन बता रहे हैं, वैक्सीन के साइड इफेक्ट को कैसे समझें और इसे लगवाना कितना जरूरी है..

वैक्सीन लगने पर कौन से साइड इफेक्ट दिख सकते हैं?
डॉ. सुनील ने बताया, जिस तरह बीमारियों का इलाज करने पर कुछ साइड इफेक्ट दिख सकते हैं उसी तरह वैक्सीन के साथ भी ऐसा हो सकता है। लेकिन ऐसा बमुश्किल ही होता है। साइड इफेक्ट होने पर जिस हिस्से में वैक्सीन लगी है वहां दिक्कत हो सकती है। कुछ मामलों बुखार भी होता है।

कोई भी वैक्सीन लोगों तक तभी पहुंचती है जब साइंटिस्ट, डॉक्टर्स की जांच में सुरक्षित और असरदार साबित होती है। वैक्सीन से बीमारी का खतरा कतई नहीं होता। अगर वैक्सीन नहीं लगती है तो संक्रमित मरीज से स्वस्थ इंसान में बीमारी फैलने का खतरा बना रहता है।

10 बातें : वैक्सीन क्यों जरूरी है और किन बातों का ध्यान रखना चाहिए
1. बच्चों में इम्युनिटी कम होती है, इसलिए मीजेंल्स, मम्प्स और काली खांसी भी बड़ा खतरा है। वैक्सीन रोगों से लड़ने वाले इम्यून सिस्टम के काम करने की क्षमता को बढ़ाती है। इसलिए इसे बिल्कुल न टालें।
2. बच्चों को वैक्सीन समय पर लगना जरूरी है ताकि पोलियो, बहरेपन, ब्रेन डैमेज और मौत का खतरा कम किया जा सके। साथ ही इनकी वजह से दूसरे अंगों पर पड़ने वाले असर को रोका जा सके।
3. पिछले कुछ सालों में वैक्सीनेशन प्रोग्राम के कारण ऐसी बीमारियों के मामलों में कमी आई है लेकिन किसी भी महामारी को तभी रोका जा सकता है जब पेरेंट्स अपने बच्चों को शुरुआती उम्र से टीका लगवाएं।
4. वैक्सीन लगवाएं तो एक्सपायरी डेट जरूर देख लें या एक्सपर्ट से इस बारे में एक बार बात जरूर करें ताकि कॉम्प्लीकेशंस का खतरा कम किया जा सके।
5. बच्चा अगर लम्बी बीमारी से जूझ रहा है तो टीका लगवाने से पहले डॉक्टर को इसके बारे में जरूर बताएं। टीका लगने के बाद अगर बुखार और सर्दी की शिकायत होती है तो डॉक्टर से तुरंत सलाह लें।
6. कई बार वैक्सीन मिस होने पर लोगों में कंफ्यूजन रहता है कि अगले टीके लगवाएं या नहीं। लेकिन डॉक्टरी सलाह से टीके पूरे लगवाएं टालें नहीं।
7. हर देश अपनी जनसंख्या और वहां मौजूद बीमारी के हिसाब से बच्चों के लिए वैक्सीन प्लान बनाता है, जो टीके भारत में लगाए जाते हैं ज़रूरी नहीं कि वो दूसरे देशों में भी दिए जाते हों।
8. समय पर टीका लगाना ज़रूरी है लेकिन फिलहाल कोरोना वायरस का भी डर है, इसलिए ऐसी जगह पर टीका लगवा सकते हैं जो सुरक्षित हो और जहां पर कोविड-19 की गाइडलाइन का पालन किया जा रहा हो।
9. बच्चे को टीका लगवाने जाएं तो घर के बुजुर्ग को साथ लेकर न जाएं। ऐसा इसलिए क्योंकि बुजुर्ग इंसान कोरोना के रिस्क जोन में हैं।
10. टीका लगवाने से पहले डॉक्टर से समय ले लें ताकि हॉस्पिटल या क्लीनिक में ज्यादातर देर रुकना न पड़े। खुद मास्क पहनें और बच्चे को मास्क की जगह शील्ड पहनाएं।

नई हेल्थ इमरजेंसी का सामना करना पड़ सकता है
यूनिसेफ की हालिया रिपोर्ट कहती है, कोविड-19 के कारण पूरे दक्षिण एशिया में करीब 40.5 लाख बच्चों को रेग्युलर लगने वाला टीका नहीं लग पाया है। कोरोना से पहले भी ऐसी स्थितियां थीं लेकिन अब और चिंताजनक हो गई हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, अगर बच्चों को समय से टीका या वैक्सीन नहीं दिया गया तो दक्षिण एशिया में हेल्थ इमरजेंसी का सामना करना पड़ सकता है।



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Monday, November 9, 2020

बच्चों को भी हो सकता है आर्थराइटिस, सुबह बच्चों के जोड़ों में दर्द-अकड़न या बुखार के बाद वजन घटना है इसका लक्षण

आर्थराइटिस सिर्फ बुजुर्गों को होने वाली बीमारी नहीं है। इसके लक्षण 6 माह से लेकर 16 साल तक के बच्चों और किशोरों में भी दिख सकते हैं। बच्चों और किशोरों में होने वाले आर्थराइटिस को जुवेनाइल आइडियोपेथिक आर्थराइटिस (जेआईए) कहा जाता है। यह ऑटोइम्यून डिसीज है, जिसमें व्हाइट ब्लड सेल्स (डब्ल्यूबीसी) अपने ही शरीर को निशाना बनाने लगते हैं।

जुवेनाइल आर्थराइटिस क्यों होता है, इसकी वजह अब तक नहीं पता लगाई जा सकी है। फिर भी इसका एक बड़ा कारण जेनेटिक माना जाता है। कंसलटेंट रूमेटोलॉजिस्ट डॉ. राहुल जैन बता रहे हैं, बच्चों में कौन से लक्षण दिखने पर पेरेंट्स अलर्ट हो जाएं...

ऐसे दिखता है बीमारी का असर
शुरुआती दिनों में जुवेनाइल आर्थराइटिस का असर जोड़ों पर ही देखने को मिलता है, लेकिन समय पर इसका इलाज न होने पर आंख, स्किन, हार्ट और लंग्स पर भी दिख सकता है। जुवेनाइल आर्थराइटिस होने पर बच्चों की हड्डियों का विकास रुक जाता है। इसलिए बच्चों में इससे जुड़े लक्षण दिखने पर अलर्ट हो जाएं और डॉक्टरी सलाह लें।

कैसे पहचानें कि बच्चे को आर्थराइटिस है?

  • अगर बच्चा सुबह उठने पर अक्सर ही जोड़ों में दर्द की शिकायत करने लगे या उसके जोड़ों में अकड़न महसूस हो।
  • बच्चे के जोड़ों के आसपास हर समय सूजन दिखाई दे और लम्बे समय तक दर्द भी होता रहे।
  • अगर बच्चे को बार-बार बुखार आए। बुखार आने के साथ ही उसके वजन में बहुत ज्यादा गिरावट महसूस हो।
  • अगर बच्चा आंखों में लगातार दर्द की शिकायत करे या आपको उसकी आंखों में हर समय लालिमा दिखाई दे।
  • इनमें से ज्यादातर लक्षण किसी अन्य सामान्य बीमारी की वजह से भी हो सकते हैं। लेकिन ये लक्षण पाए जाने पर या जेआईए का जरा भी संदेह होने पर बच्चे को तुरंत पीडियाट्रिक रूमेटोलॉजिस्ट के पास ले जाना चाहिए।

बड़ों और बच्चों के आर्थराइटिस में अंतर भी समझें
बड़ों और बच्चों में होने वाले आर्थराइटिस में एक छोटा-सा अंतर है। बड़ों में आर्थराइटिस होने पर इसके लक्षण ताउम्र देखने को मिलते हैं। लेकिन जुवेनाइल आइडियोपेथिक आर्थराइटिस में यह जरूरी नहीं है कि बच्चा हर समय इसके लक्षणों से पीड़ित ही हो। बच्चों में इसके लक्षण कभी-कभी अचानक नजर आते हैं और कभी काफी लंबे समय तक नहीं दिखते हैं।

क्या है इसका इलाज?
अमेरिकन कॉलेज ऑफ़ रूमेटोलोजी की रिसर्च कहती है, अब तक जेआईए का कोई परमानेंट इलाज नहीं है, इसलिए बच्चों में लक्षण दिखने पर पेरेंट्स को डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए। डॉक्टर्स दवाइयों के साथ लाइफस्टाइल में बदलाव करने की सलाह देते हैं। इस मामले में जितनी देरी होती है, इलाज करना उतना ही मुश्किल हो जाता है।

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कैंसर का खतरा घटाना है तो सुबह 8 से 10 बजे के बीच करें एक्सरसाइज, स्पेन में हुई स्टडी में किया दावा

एक्सरसाइज रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाने के साथ कैंसर का खतरा भी घटाती है। स्पेन में हुई रिसर्च कहती है, एक्सरसाइज से कैंसर का खतरा घटाना है तो वर्कआउट का समय ध्यान रखें। सुबह 8 से 10 बजे के बीच एक्सरसाइज करते हैं तो प्रोस्टेट, कोलोन और ब्रेस्ट के कैंसर का खतरा घट जाता है।

2,795 लोगों पर हुई स्टडी

इंटरनेशनल जर्नल ऑफ कैंसर में पब्लिश रिसर्च के मुताबिक, इसे समझने के लिए 2795 लोगों पर स्टडी की गई। स्टडी में सामने आया कि सुबह के समय एस्ट्रोजन हार्मोन का स्तर अधिक रहता है जो कैंसर की वजह बन सकता है। सुबह एक्सरसाइज करने पर इस हार्मोन का स्तर घटता है।

नींद और कैंसर का कनेक्शन
नींद और कैंसर का आपस में काफी संबंध है। नाइट शिफ्ट में काम करने वाले लोगों की सरकेडियन रिदम बिगड़ जाती है। ऐसे लोगों में कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। सरकेडियन रिदम किसी इंसान के उस बायोलॉजिकल क्लॉक को कहते हैं जिससे व्यक्ति के सोने और जागने का चक्र पूरा होता है।

इसलिए भी सुबह की एक्सरसाइज जरूरी
करंट ओपीनियन इन फिजियोलॉजी में पब्लिश रिसर्च के मुताबिक, दिन में एक्सरसाइज करने से सरकेडियन रिदम में सुधार होता है। वैज्ञानिकों का कहना है, जो लोग शाम 7 से 10 बजे के बीच एक्सरसाइज करते हैं वो अपनी बॉडी क्लॉक को धीमा कर देते हैं और शरीर पर असर पड़ता है।

5 साल में कैंसर के मामले 12% बढ़ जाएंगे

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में अगले पांच साल में कैंसर के मामले 12% बढ़ जाएंगे। अभी देश में कैंसर के 13.9 लाख केस हैं। 2025 तक बढ़कर 15.7 लाख तक पहुंचने की बात रिपोर्ट में कही गई है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 तक पुरुषों में 6.8 लाख केस और 2025 तक 7.6 लाख तक होने का अनुमान है। वहीं महिलाओं की बात करें तो 2020 में 7.1 लाख और 2025 तक 8 लाख केस होने का अनुमान है।

कैंसर से कैसे बचें

  • हरी पत्तेदार सब्जियां, चना और फल खाने में शामिल करना। सब्जियों और फलों में फाइबर मौजूद होता है जो रोगों से लड़ने में हेल्प करता है।
  • शक्कर का सेवन कम से कम करें।
  • खाने के तेल में ऑलिव ऑयल या फिर कोकोनट ऑयल का इस्तेमाल भोजन पकाने में करें।
  • कैंसर के लक्षण हो तो कोशिश करें कि इलेक्ट्रॉनिक चीजों का इस्तेमाल कम हो।
  • गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल लम्बे समय तक न करें। इससे महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर या लिवर कैंसर होने का खतरा रहता है।

कैंसर के वो लक्षण जिसकी चर्चा कम होती है

  • पेशाब में खून आना
  • कुछ निगलने में परेशानी होना
  • मीनोपॉज के बाद खून आना
  • खून की कमी की बीमारी एनीमिया
  • शौच में आने वाला खून
  • खांसी के दौरान खून का आना
  • स्तन में गांठ

(कैंसर पर रिसर्च करनेवाली कीले यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के अनुसार)

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हरियाली के बीच 30 मिनट की वॉक, 5 मिनट की दौड़ और योग से घटेगा डिप्रेशन, जानिए 5 ऐसे ही योगासन

‘योअर नेक्स्ट बिग थिंग: 10 स्माल स्टेप टू गेट मूविंग एंड गेट हैप्पी’ किताब के लेखक डॉ. बेन मिकैलिस के मुताबिक, शरीर और मस्तिष्क दोनों एक ही हैं। जब इंसान खुद की देखभाल करता है तो वह शरीर के पूरे सिस्टम को सुधारने के लिए काम कर रहा होता है। वैज्ञानिक के अनुसार, रोजाना ये तीन एक्टिविटी किसी भी इंसान में डिप्रेशन के लक्षणों को कम करती हैं।

तीन साइंटिफिक फैक्ट्स बताते हैं दौड़ना, योग और प्रकृति के करीब रहना डिप्रेशन से बाहर लाने में मददगार हैं...

1. योग : यह गुस्सा, बेचैनी और डिप्रेशन दूर करता है

एविडेंस बेस्ड कॉम्प्लीमेंट्री एंड अल्टर्नेटिव मेडिसिन जर्नल में पब्लिश रिसर्च कहती है, योग क्लास में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों के डिप्रेशन, गुस्सा और बेचैनी के लक्षणों में कमी पाई गई।

2. प्रकृति के बीच वॉक : स्ट्रेस हार्मोन कम होता है

एन्वार्यनमेंटल हेल्थ एंड प्रिवेंटिव मेडिसिन जर्नल में पब्लिश रिसर्च के मुताबिक, जापानी शोधकर्ताओं ने कुछ प्रतिभागियों को जंगल में और कुछ को शहरी क्षेत्र में भेजा। शोधकर्ताओं ने पाया कि 20 मिनट तक जंगल में भ्रमण करने वाले प्रतिभागियों में स्ट्रेस हार्मोन का लेवल काफी कम था।

3. दौड़ : 5 मिनट की दौड़ से उम्र भी बढ़ती है

वर्ष 2014 में हेल्थ मैगजीन में पब्लिश रिसर्च के मुताबिक, रोजाना केवल 5 मिनट दौड़ने वाला इंसान भी लंबे समय तक जीता है। मिकैलिस के मुताबिक, मूड अच्छा करने वाले न्यूरोट्रांसमीटर्स सेरोटोनिन और नोरेपिनेफ्रिन दोनों ही इससे एक्टिव होते हैं। दौड़ने के दोहराव से मस्तिष्क पर ध्यान लगाने जैसा असर होता है।

जयपुर के फिटनेस एक्सपर्ट विनोद सिंह बता रहे हैं डिप्रेशन, स्ट्रेस और एंग्जाइटी को दूर करने वाले 5 आसनों के बारे में...

अधोमुख श्वानासन (डाउनवर्ड फेसिंग डॉग पोज)

ऐसे करें

  • पेट के बल लेटें और सांस खींचते हुए पैरों और हाथों के बल शरीर को उठाएं और टेबल जैसा आकार बनाएं।
  • सांस को बाहर निकालते हुए धीरे-धीरे कूल्हों (हिप्स) को ऊपर की तरफ उठाएं। अपनी कोहनियों और घुटनों को सख्त बनाए रखें। ध्यान रखें कि शरीर उल्टे 'वी' के आकार में आ जाए।
  • कंधे और हाथ एक सीध में रखें और पैर कूल्हे की सीध में रहेंगे। टखने बाहर की तरफ रहेंगे।
  • अब हाथों को नीचे जमीन की तरफ दबाएं और गर्दन को लंबा खींचने की कोशिश करें। आपके कान आपके हाथों के भीतरी हिस्से को छूते रहें।
  • इसी स्थिति में कुछ सेकेंड्स तक रुकें और उसके बाद घुटने जमीन पर टिका दें और मेज जैसी स्थिति में​ फिर से वापस आ जाएं।

सेतुबंधासन (ब्रिज पोज)

ऐसे करें

  • योग मैट पर पीठ के बल लेट जाएं और सांसों की गति सामान्य रखते हुए हाथों को बगल में रख लें।
  • अब धीरे-धीरे अपने पैरों को घुटनों से मोड़कर कूल्हों के पास ले आएं। कूल्हों को जितना हो सके फर्श से ऊपर की तरफ उठाएं। हाथ जमीन पर ही रहने दें।
  • कुछ देर के लिए सांस को रोककर रखें। इसके बाद सांस छोड़ते हुए वापस जमीन पर आएं। पैरों को सीधा करें और विश्राम करें।
  • 10-15 सेकेंड तक ​आराम करने के बाद फिर से शुरू करें।

शवासन (कॉर्प्स पोज)

ऐसे करें

  • पीठ के बल लेटकर अपनी आंखें बंद कर लें। दोनों पैरों को अलग-अलग करें और शरीर को रिलैक्स छोड़ दें। हाथ शरीर से थोड़ी दूर रखें और हथेलियों को आसमान की ओर खुला छोड़ दें।
  • धीरे-धीरे शरीर के हर हिस्से की तरफ ध्यान देना शुरू करें। शुरुआत पैरों के अंगूठे से करें। ऐसा करते हुए सांस लेने की गति एकदम धीमी कर दें।
  • धीरे-धीरे आप गहरे मेडिटेशन में जाने लगेंगे। आलस या उबासी आने पर सांस लेने की गति तेज कर दें। शवासन करते हुए कभी भी सोना नहीं चाहिए।
  • सांस लेने की गति धीमी​ लेकिन गहरी रखें। आपका फोकस सिर्फ खुद और अपने शरीर पर ही रहेगा। 10-12 मिनट के बाद, आपका शरीर पूरी तरह से रिलैक्स हो जाएगा।

चक्रासन

ऐसे करें

  • पीठ के बल लेट जाएं और अपने दोनों हाथों और पैरों को सीधा रखें। अब पैरों को घुटने के यहां से मोड़ लें।
  • अब अपने हाथों को पीछे की ओर अपने सिर के पास ले जाकर जमीन से टिका लें।
  • सांस को अंदर की ओर लें और अपने पैरों पर वजन को डालते हुए कूल्हों को ऊपर उठाएं।
  • दोनों हाथों पर वजन को डालते हुए अपने कधों को ऊपर उठाएं और धीरे धीरे अपने हाथों को कोहनी के यहां से सीधे करते जाएं।
  • ध्यान रखें की दोनों पैरों के बीच की दूरी और दोनों हाथों की बीच की दूरी समान होनी चाहिए।
  • इसके बाद अपने दोनों हाथों को अपने दोनों पैरों के पास लाने की कोशिश करें और जितने पास ला सकते है लाएं।

उत्तानासन

ऐसे करें

  • सीधे खड़े हो जाएं और दोनों हाथ कूल्हों पर रख लें। सांस को भीतर खींचते हुए कमर को मोड़ते हुए आगे की तरफ झुकें।
  • धीरे-धीरे कूल्हों को ऊपर की ओर उठाएं और दबाव ऊपरी जांघों पर आने लगेगा। अपने हाथों से टखने को पीछे की ओर से पकड़ें।
  • आपके पैर एक-दूसरे के समानांतर रहेंगे। आपका सीना पैर के ऊपर छूता रहेगा। जांघों को भीतर की तरफ दबाएं और शरीर को एड़ी के बल स्थिर बनाए रखें।
  • सिर को नीचे की तरफ झुकाएं और टांगों के बीच से झांककर देखते रहें। इसी स्थिति में 15-30 सेकंड तक स्थिर बने रहें। जब आप इस स्थिति को छोड़ना चाहें तो पेट और नीचे के अंगों को सिकोड़ें।
  • सांस को भीतर की ओर खींचें और हाथों को कूल्हों पर रखें। धीरे-धीरे ऊपर की तरफ उठें और सामान्य होकर खड़े हो जाएं।


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30-minute walk amidst greenery, 5-minute run and yoga will reduce depression, know 5 similar yogasanas


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Saturday, November 7, 2020

बच्चे में पोषक तत्वों की कमी से 8 इंच तक कम हो सकती है शरीर की लंबाई

कमजोर खानपान का असर बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर पड़ता है। मेडिकल जर्नल लैंसेट में छपी एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पौष्टिक आहार न मिलने से बच्चों की औसत लंबाई पर 20 सेंटीमीटर (7.9 इंच) तक का असर पड़ सकता है।

लम्बाई बच्चों के खानपान के स्तर को बताती है

रिसर्च कहती है, किसी इलाके में खास उम्र के बच्चों की औसत लंबाई से यह पता लगाया जा सकता है कि लम्बे समय तक वहां खाने की क्वालिटी कैसी रही है। बच्चों की लंबाई और वजन में जेनेटिक्स की अहम भूमिका होती है। लेकिन, जब बात पूरी आबादी के बच्चों की लंबाई और वजन की हो तो इसमें पोषण और पर्यावरण का रोल अधिक होता है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2019 में 19 साल की उम्र के लड़कों में सबसे अधिक औसत लंबाई नीदरलैंड्स में थी। इस आयुवर्ग के लड़कों की औसत लंबाई 183.8 सेंटीमीटर (करीब 6 फीट) थी। वहीं, सबसे कम औसत लंबाई तिमोर (160.1 सेंटीमीटर या 5 फीट, 3 इंच) में थी।

ऐसे हुई रिसर्च
इस रिसर्च के लिए 5 से 19 साल तक के 6.5 करोड़ बच्चों के डेटा का विश्लेषण किया गया है। ये डेटा 1985 से लेकर साल 2019 तक हुई 2000 से ज्यादा स्टडी से लिए गए हैं। रिपोर्ट में पाया गया है कि सबसे अधिक औसत लंबाई उत्तर-पश्चिमी और सेंट्रल यूरोप के देशों में है। वहीं, सबसे कम औसत लंबाई दक्षिण, दक्षिण-पूर्व एशिया, लैटिन अमेरिका, पूर्वी अफ्रीका में है।

नीदरलैंड्स को उदाहरण बनाकर समझाया
लाओस में रहने वाले 19 साल के लड़कों की औसत लंबाई नीदरलैंड में रहने वाले 13 साल के बच्चों की औसत लंबाई के आसपास यानी 5 फीट, 4 इंच है। ग्वाटेमाला, बांग्लादेश, नेपाल और तिमोर की 19 साल की लड़कियों की औसत लंबाई नीदरलैंड्स की 11 साल की लड़कियों की औसत लंबाई (5 फीट) के बराबर है।

लंबाई में सबसे ज्यादा सुधार चीन और दक्षिण कोरिया में
रिपोर्ट के मुताबिक 1985 के बाद से यानी पिछले 35 सालों में बच्चों की औसत लंबाई के मामले में सबसे ज्यादा सुधार चीन और दक्षिण कोरिया में आया है। वहीं, कई सब-सहारा अफ्रीका के देशों की औसत लंबाई इन सालों में नहीं बदली है।

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