Tuesday, June 30, 2020

चीनी वैज्ञानिकों ने सुअर में फ्लू के वायरस का वो स्ट्रेन खोजा जो इंसानों में पहुंचकर महामारी ला सकता है

चीनी वैज्ञानिकों ने फ्लू के वायरस का वो स्ट्रेन खोजा है जो महामारी ला सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि फ्लू वायरस का एक ऐसास्ट्रेन हाल ही में सुअर में पाया गया है, जो इंसानों को संक्रमित कर सकता है। यह अपना रूप बदल (म्यूटेट) कर एक इंसान से दूसरे इंसान में पहुंचकर वैश्विक महामारी ला सकता है।

सुअरों पर नजर रखने की जरूरत

वायरस का नाम G4 EA H1N1 है। इस पर रिसर्च करने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि यह इमरजेंसी जैसी समस्या नहीं है लेकिन इसमें ऐसे कई लक्षण दिखे है जो बताते हैं कि यह इंसानों को संक्रमित कर सकता है, इसलिए इस पर लगातार नजर बनाए रखने की जरूरत है। प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस के मुताबिक, यह नया स्ट्रेन है इसलिए हो सकता है लोगों में इससे लड़ने की क्षमता कम हो या हो ही न। इसलिए इससे बचने के लिए सुअरों पर नजर रखना जरूरी है।

यह फैला तो रोकना मुश्किल होगा

कोरोना वायरस से पहले दुनिया में अंतिम बार फ्लू महामारी वर्ष 2009 में आई थी और उस समय इसे स्‍वाइन फ्लू कहा गया था। मेक्सिको से शुरू हुआ स्‍वाइन फ्लू उतना घातक नहीं था जितना कि अनुमान लगाया गया था। इस बार कोरोना वायरस के कारण 1 करोड़ से ज्यादा लोग संक्रमित हैं। ऐसी स्थिति में अगर नया वायरस फैलता है तो इसे रोकना बहुत मुश्किल होगा।

इसमें इंसानोंमें पहुंचकर अपनी संख्या बढ़ाने की पर्याप्त क्षमता

वैक्सीन के जरिए फ्लू के वायरस A/H1N1pdm09 को लोगों से दूर रखा गया लेकिन चीन में जो इसका नया स्ट्रेन देखा गया है वो 2009 में महामारी फैलाने वाले स्वाइन फ्लू से मिलता-जुलता है। शोधकर्ता किन-चो चैंग के मुताबिक, नया स्ट्रेन G4 EA H1N1 इंसान की सांस नली में पहुुंचकर अपनी कोशिकाओं की संख्या को बढ़ा सकता है। इसके अंदर ऐसा करने की पर्याप्त क्षमता है।



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China Coronavirus | Chinese Scientists Have Found Strain Of Swine Flu Virus That Could Cause An Epidemic


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देश में बनी कोरोना की पहली वैक्सीन, हैदराबाद की कम्पनी भारत बायोटेक ने तैयार की ; इंसानों पर ट्रायल अगले माह से

देशमें कोरोना की पहली वैक्सीन ‘कोवैक्सीन’ को हैदराबाद की फार्मा कम्पनी भारत बायोटेक तैयार किया है। इसे इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, पुणे के साथ मिलकर बनाया गया है। ‘कोवैक्सीन’ का ट्रायल इंसानों पर करने के लिए ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया की तरफ से अनुमति मिल गई है। प्री-क्लीनिकल ट्रायल सफल होने के बाद वैक्सीन को अप्रूवल मिला है। देश में इंसानों पर इसका का ट्रायल जुलाईसे शुरू होगा।

हैदराबाद की जीनोम वैली में तैयार हुई वैक्सीन

फार्मा कम्पनी भारत बायोटेक की ओर से जारी बयान के मुताबिक, वैक्सीन को हैदराबाद के जीनोम वैली के बीएसएल-3 (बायो-सेफ्टी लेवल 3) हाई कंटेनमेंट फैसिलिटी में विकसित किया गया है।ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया, सेंट्रल सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (सीडीएससीओ), स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने पहले और दूसरे चरण का ह्यूमन ट्रायल शुरू करने की अनुमति दे दी है।

वैक्सीन की घोषणा करना गौरव की बात

कम्पनी के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ.कृष्णा एल्ला के मुताबिक, हमकोरोना की वैक्सीन के बारे में घोषणा करते हुए गौरवांवित महसूस कर रहे हैं। यह देश में तैयार होने वाली कोरोना की पहली वैक्सीन है। जिसे आईसीएमआर और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के साथ मिलकर तैयार किया गया है।

डॉ. कृष्णा एल्ला के मुताबिक, सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन के सपोर्ट और गाइडेंस के कारण इस प्रोजेक्ट को अप्रूवल मिला। हमारी रिसर्च और दवा तैयार करने वाली टीम बिना थकेलगातार काम कर रही है। इसे तैयार करने के लिए हर जरूरी तकनीक की मदद ली जा रही है।



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मौत का खतरा डॉक्टरों को कम, सिक्योरिटी गार्ड को ज्यादा, ब्रिटेन में 4700 मरीजों पर हुई रिसर्च का नतीजा

कोरोना से मौत का खतरा डॉक्टरों से दोगुना फैक्ट्री के मजदूरों और सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर रहे लोगों को है। यह आंकड़ा ब्रिटेन के विशेषज्ञों ने अलग-अलग क्षेत्र में काम कर रहे 4700 कोविड-19 के मरीजों के डेटाका एनालिसिस करने के बाद जारी किया हैं। रिपोर्ट में 9 मार्च से 25 मई के बीच 20 से 64 साल के कोरोना पीड़ितों को शामिल किया था।

सिक्योरिटी गार्ड बनाम स्वास्थ्यकर्मी
रिसर्च में सामने आया कि एक लाख लोगों पर 74 पुरुष सिक्योरिटी गार्ड और 73 फैक्ट्री वर्कर की कोरोना से मौत हुई। वहीं स्वास्थ्य कर्मियों में यही आंकड़ा अलग रहा है। इनमें 1 लाख लोगों पर 30 स्वास्थ्यकर्मियों की मौत हुई। विशेषज्ञों के मुताबिक, एम्बुलेंस स्टाफ में संक्रमण का खतरा 82.4 फीसदी रहा, जो सबसे ज्यादा था। विशेषज्ञों के मुताबिक, हमारा मकसद यह बताना नहीं है कि डॉक्टरी पेशे के मुकाबले ये नौकरियांखतरनाक हैं बल्कि, लोगों कोअलर्ट रखना है।

गार्ड और मजदूर सबसे ज्यादा सम्पर्क में आए
विशेषज्ञों के मुताबिक, लॉकडाउन के दौरान भी फैक्ट्री वर्करों ने लगातार काम किया। जब कोरोना के मामले तेजी से फैल रहे थे तो वो लोगों के सम्पर्क में भी आए। वहीं, सुपर मार्केट में तैनात सिक्योरिटी गार्ड्स लाइन में लगे कस्टमर को सोशल डिस्टेंसिंग से बचाते हुए सैकड़ों लोगों सम्पर्क में आए।

सबसे अधिक खतरा अश्वेत-एशियाई लोगों को

विशेषज्ञों के मुताबिक, पुरुषों के लिए 17 अलग-अलग क्षेत्रों में मौत का खतरा अधिक रहा। इनमें टैक्सी ड्राइवर (65.3), शेफ (56.8), बस एंड कोच ड्राइवर्स (44.2), सेल्स-रिटेलअसिस्टेंट (34.2) शामिल हैं। जबकि ब्रिटेन में कोविड-19 मौत की दर 19.1 रही है। कोविड-19 से मौत के आंकड़े 1 लाख आबादी के आधार पर है।इनमें भी सबसे अधिक खतरा अश्वेत और एशियाई मूल के लोगों को है।

महिलाओंमें मौत का सर्वाधिक खतरा ग्रूमिंग इंडस्ट्री से
विशेषज्ञों के मुताबिक, महिलाओं में मौत का सबसे अधिक खतरा ग्रूमिंग इंडस्ट्री में काम करने वालीमहिलाओं को है। इनमें एक लाख में 31 महिलाओं की मौत हुई। हेल्थ एनालिस्ट बेन हम्बरस्टोन के मुताबिक, सिर्फ किसी क्षेत्र में मौत का खतरा अंतिम नतीजा नहीं है, इसके लिए यह भी निर्भर करता है कि आप किसउम्र औरकिस मूल के हैं।



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Monday, June 29, 2020

कोरोना के नए लक्षण ; नाक का बहना, उल्टी लगना और डायरिया, ये नजरअंदाज न करें और डायबिटीज के मरीज अलर्ट रहें

कोरोना की जो दहशत लोगों में है उसे कंट्रोल करने की जरूरत है क्योंकि ये डर ब्लड प्रेशर और शुगर बढ़ाने के साथ रातों की नींद उड़ा रहा है। इससे डरने की जगह समझने और संक्रमण से बचाव करने की जरूरत है, खासकर डायबिटीज से जूझ रहे मरीजों को। यह कहना है कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व सचिव डॉ. नरेंद्र सैनी का। जिन्होंने कोरोना से जुड़े कई सवालों के जवाब आकाशवाणी को दिए। जानिए कोरोना से जुड़े सवाल और एक्सपर्ट के जवाब...

#1) अमेरिका की सबसे बड़ी संस्था सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल ने कोरोना के नए लक्षणों के बारे में बताया है, वो क्या हैं?
यह एक नई बीमारी है। धीरे-धीरे हमें इसके बारे में पता चल रहा है। पांच महीनों में हमें नए-नए लक्षणों के बारे में पता चला है। अब जो नए लक्षण जो लोगों में पाए जा रहे हैं वो हैं, नाक का बहना, जी मचलाना-उल्टी लगना और डायरिया। ये नए लक्षण लोगों में पाए गए हैं। कुल मिलाकर कॉमन लक्षण बुखारी, खांसी, सांस में तकलीफ और थकान हैं। 70 फीसदी में यही लक्षण दिख रहे हैं। इसके बाद गले में इंफेक्शन, आंखों में कंजेक्टिवाइटिस, सिरदर्द, स्वाद और सुगंध का पता न चलना और स्किन पर रैशेज के लक्षण भी मिले हैं।

#2) डायबिटीज वाले मरीजों को क्या सावधानी बरतने की जरूरत है?
दुनिया में सबसे ज्यादा डायबिटीज के मरीज भारत में हैं। अगर डायबिटीज के मरीज को कोरोना हो गया है तो उनके शरीर में संक्रमण गंभीर रूप से फैलता है। डायबिटीज से जूझ रहे मरीजों को अपना शुगर लेवल कंट्रोल करके रखना है क्योंकि इन दिनों फिजिकल एक्टिविटी नहीं हो पा रही है। ऐसे मरीज जो 60 से अधिक के हैं उनको सबसे ज्यादा अलर्ट रहना है। दूसरों से करीब 3 फीट की दूरी बनाकर रखें। मास्क लगाएं और हैंड सैनेटाइज करें। घर का कोई इंसान बाहर से आता है तो डायबिटीज के मरीज उनसे सीधे सम्पर्क में आने से बचें।

#3) शरीर में जकड़न रहती है, हाथ-पैरों में दर्द होता है, कहीं ये कोरोना तो नहीं?
नहीं, अगर बुखार नहीं आया है, छींक नहीं आ रही है और सांस में दिक्कत नहीं है तब तक कोरोना के बारे में सोचने की जरूरत नहीं है। अगर उम्र ज्यादा है तो आप अपना ब्लड प्रेशर और शुगर चेक कराएं। अगर कोई इलाज चल रहा है तो डॉक्टर को दिखाएं। घबराकर परेशान होने की जरूरत है नहीं।

#4) कोरोना को लेकर लोग दहशत में हैं, उनके लिए क्या कहंगे?
हाल ही में कोरोना के कुछ नए लक्षण सामने आए, उसकी वजह से लोगों को कुछ भी होता है तो सोचते हैं, कहीं कोरोना से संक्रमित तो नहीं हुए। इसे ऐसे समझें, दहशत से एंजाइटी और डिप्रेशन पैदा होता है। इससे शुगर और ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है। दहशत में आपको नींद नहीं आएगी तो आप स्वस्थ महसूस नहीं करेंगे। एक बात को समझने की जरूरत है कि अब तक जितने लोगों को कोरोना हुआ, उनमें से 60 फीसदी को तो दवा देने की जरूरत भी नहीं पड़ी और वो ठीक हो गए।

#5) सैनेटाइजर का प्रयोग कितना जरूरी है?
कोरोना वायरस से बचने के लिए पहले मास्क व सोशल डिस्टेसिंग और तीसरा बचाव हैंड हाइजीन यानी हाथों को साफ रखना है। हाथों की सफाई के लिए सैनेटाइजर जरूरी नहीं है। अगर पानी-साबुन से भी हाथ धोते हैं तो सबसे अच्छा है। पानी नहीं मिल रहा है तब सैनेटाइजर का इस्तेमाल करना है। इसका प्रयोग ऑप्शनल रखना है जैसे बाहर गए हैं या यात्रा कर रहे हैं तब।

#6) मास्क को लेकर अभी भी कई लोग उलझन में हैं, उनसे क्या कहेंगे?
अब सभी को पता है कि मास्क पहनना है और 80 फीसदी लोग मास्क पहन रहे हैं। लेकिन उनमें से ज्यादातर वे लोग इसलिए मास्क पहन रहे हैं क्योंकि सरकार ने कहा है। उनका मास्क नाक के नीचे रहता है। अगर नाक या मुंह खुला रहता है तो वायरस शरीर में पहुंचगा। ऐसे में इंसान को लगेगा कि मास्क लगाने के बाद भी संक्रमण कैसे हो गया। मास्क को सही तरीके से लगाना जरूरी है। अगर किसी ने गलत तरीके से मास्क लगाया है तो उसे टोकें भी। मास्क को रोज बदलें। कपड़े का है और धोकर पहनें।



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New symptoms of corona; Runny nose, vomiting and diarrhea, do not ignore them and be alert for diabetes patients


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WHO ने कहा- अल्कोहल युक्त सैनेटाइजर से हाथों में जलन तक की कोई रिपोर्ट नहीं मिली

क्या वायरल : जले हुए हांथ की एक वीभत्स फोटो। दावा किया जा रहा है कि हथेली का ये हाल सैनेटाइजर का अधिक उपयोग करने से हुआ है।

सोशल मीडिया पर इस दावे से जुड़े मैसेज

https://twitter.com/SnehaYogbharti/status/1276732457149059072

फैक्ट चेक पड़ताल

  • फोटो को गूगल और यैंडेक्स पर रिवर्स इमेज सर्च करने पर भी हमें इससे मिलती जुलती या यह फोटो इंटरनेट पर नहीं मिली। इसके बाद हमने उस दावे की पड़ताल शुरू की, जिसके साथ फोटो वायरल हो रही है।
  • भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय, आयुष मंत्रालय या देश की शीर्ष रिसर्च संस्था आईसीएमआर ने ऐसी कोई गाइडलाइन जारी नहीं की है। जिसमें सैनेटाइजर के अधिक उपयोग से हाथ जलने का खतरा बताया गया हो।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की वेबसाइट पर हमने हैंड सैनेटाइजर के नुकसानों से जुड़ी जानकारी खोजना शुरू की। WHO की वेबसाइट पर सवाल-जवाब का एक सेक्शन है। यहां उन कॉमन सवालों के जवाब एक्सपर्ट टीम द्वारा दिए गए हैं, जो कोरोना काल में पूछे जा रहे हैं। हैंड सैनेटाइजर उपयोग करने के नुकसान से जुड़े सवाल और उनके जवाब भी हैं। इन जवाबों से ही वायरल हो रहे दावे की सच्चाई पता चलती है।

सैनिटाइजर से हाथ को होने वाले नुकसान से जुड़े 3 सवाल और WHO के जवाब

पहला सवाल : क्या अल्कोहल युक्त हैंड सैनेटाइजर के अधिक उपयोग का हाथों पर कोई विपरीत असर होगा ?

जवाब - एंटीसेप्टिक और एंटीबायोटिक्स में ऐसा संभव हो सकता है। लेकिन, हैंड सैनेटाइजर से जुड़ी न तो ऐसी कोई रिपोर्ट आई है। न ही ऐसा संभव है। बल्कि जितना ज्यादा इसका इस्तेमाल किया जाएगा, वायरस और बैक्टीरिया का खतरा उतना कम होगा।

दूसरा सवाल : क्या अल्काहल हाथों को सुखाता या जलन पैदा करता है ?

जवाब - इस दौर में बन रहे अल्कोहल युक्त सैनेटाइजर में स्किन को सॉफ्ट करने वाले तत्व होते हैं। ये तत्व स्किन को रूखा होने से बचाते हैं। यहां तक की कई रिपोर्ट्स में ये बात सामने आई है कि जो नर्स अल्कोहल युक्त सैनेटाइजर का नियमित उपयोग करती हैं, उनकी त्वचा का रूखापन पहले की तुलना में कम हुआ है। हैंड सैनेटाइजर उस सूरत में ही जलन पैदा करेगा, अगर आपका हांथ जख्मी हो। ऐसे में जख्मी हिस्से को पट्‌टी से कवर करना चाहिए। सैनेटाइजर से होने वाली एनर्जी के मामले भी दुनिया में बहुत कम (रेयर) हैं।

तीसरा सवाल : अल्कोहल युक्त हैंड सैनेटाइजर का अधिकतर कितनी बार उपयोग किया जा सकता है ?

ऐसी कोई सीमा नहीं है। यह सिर्फ एक भ्रांति है कि सैनेटाइजर के अधिक उपयोग के बाद हर 4 घंटे में हाथ धोने चाहिए। इसका कोई लॉजिकल कारण नहीं है।

WHO की वेबसाइट पर दिए गए यह सवाल और इनके जवाब यहां पढ़ें


निष्कर्ष : अल्कोहल युक्त सैनेटाइजर के अधिक उपयोग से हाथ जलने वाली बात भ्रामक है। दुनिया की शीर्ष स्वास्थ्य संस्था WHO ने ही इसका खंडन किया है।



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False claims of burning hands due to excessive use of sanitizer on social media


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ब्रिटेन की महिला में दो कोख, दोनों में पल रहे दो-दो बच्चे, यूट्रस के दो छोटी-छोटी ट्यूब में बंटने पर बनती है ऐसी स्थिति

ब्रिटेन की 12 सप्ताह की गर्भवती महिला के शरीर में दो गर्भाशय का पता चला है। दोनों गर्भाशय में दो-दो बच्चे हैं। 28 वर्षीय केली फेयरहर्स्ट को यह तब पता चला, जब वह सोनोग्राफी के लिए डॉक्टर के पास गई थी। डॉक्टरों के मुताबिक, 5 करोड़ में से 1 महिला के हर गर्भाशय में जुड़वा बच्चे होते हैं। ये ट्विन्स एक जैसे हो सकते हैं। महिला को दो बार प्रसव पीड़ा से भी गुजरना पड़ सकता है। केली की पहले से दो बेटियां हैं, एक की उम्र तीन और दूसरी चार साल की है।

शायद विरासत में मिला जीन
केली कहती हैं कि डॉक्टर्स का कहना है कि बच्चे की प्री-मैच्योर डिलीवरी हो सकती है। इससे पहले मेरी एक बेटी 8 हफ्ते और दूसरी की 6 हफ्ते पहले ही प्री-मैच्योर डिलीवरी हुई थी। अब हमारे परिवार में दो जुड़वा बच्चे होंगे। मेरे नाना भी ट्रिपलेट थे यानी उनके जीन जुड़ावा भाई-बहन थे। मैंने कभी नहीं सोचा था मेरे पास दो कोख होंगी।

कब बनती हैं शरीर में दो कोख
लंदन के सेंट जॉर्ज हॉस्पिटल की स्त्री रोग विशेषज्ञ प्रो. असमा खलील के मुताबिक, दोहरी कोख की स्थिति को यूट्रस डाईडेल्फिस कहते हैं। यह एबनॉर्मेलिटी जन्मजात होती है। ऐसी महिलाओं में दो कोख होती हैं, कई बार दो वैजाइना भी हो सकती हैं। ऐसे मामले दुर्लभ होते हैं। ये कॉम्प्लिकेशन पैदा कर सकते हैं। ऐसा ही दो मामले सामने आए थे जब एक महिला ने 25वें हफ्ते में जुड़वा बच्चों को जन्म दिया, वहीं दूसरे मामले में डिलीवरी काफी लेट हुई थी।

डबल यूट्रस की स्थिति तब बनती है जब महिला में यूट्रस दो छोटी-छोटी ट्यूब में बंट जाता है। दोनों ही ट्यूब अंदर से खोखली होती हैं। कई बार ये जुड़ी हुई भी हो सकती हैं। दोनों ही ट्यूब सर्विक्स से जुड़ी रहती हैं। यूट्रस के औसत आकार के मुकाबले ये दो गर्भाशय थोड़े छोटे होते हैं। ऐसी स्थिति क्यों बनती हैं इसका अब पता नहीं चला सका है। इसका कोई स्थायी इलाज नहीं है।

अपने पति और दोनों बच्चियों के साथ केली।

गर्भपात का बड़ा खतरा
ऐसी महिलाओ में गर्भपात और प्री-मैच्योर डिलीवरी होने की आशंका अधिक रहती है। इसके अलावा प्रेग्नेंसी के दौरान अधिक ब्लीडिंग होने का भी खतरा रहता है। ऐसी स्थिति में सिजेरियन डिलीवरी कराई जाती है ताकि जान के जोखिम को कम किया जा सके।

डबल यूट्रसवाली स्थिति की पहचान
ज्यादातर महिलाओं को इस बारे में जानकारी नहीं होती है। लेकिन कुछ लक्षण अगर महसूस होते हैं तो डबल यूट्रस की आशंका रहती है। जैसे अगर महिला को बार-बार गर्भपात हो रहा है, अक्सर ब्लीडिंग होती है, पीरियड्स के दौरान बहुत अधिक दर्द रहता है तो स्त्री रोग विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। विशेषज्ञ कुछ जांचों जैसे पेल्विक टेस्ट, गर्भाशय का एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड और एमआरआई की मदद से पता लगाते हैं।



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British woman has two wombs, two children born in each, utrus is formed when two small tubes are divided


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Sunday, June 28, 2020

वुहान से वॉशिंगटन और न्यूयॉर्क से नई दिल्ली तक हर जुबां में डर समाया, सांसें आइसाेलेट - जिंदगी क्वारैंटाइन हुई

दुनियाभर में कोरोना के लगभग 1 करोड़ मामले पार होने को हैं,यानी वायरस अपने उस रौद्र रूप में जिसे देखइंसानी जाति की सांसें सचमुच अटक रही हैं। चीन के वुहान से निकलीकोरोना महामारी जब यूरोप और अमेरिका पहुंची तो उसके साथ नई शब्दावली भी सामने आई।

ये ऐसे शब्द थे जो वैज्ञानिक और प्रशासनिक जगत में तो प्रचलित थे, लेकिन पहली बार आम लोगों का वास्ता इनसे पड़ा और फिर लगातारऐसा पड़ा कि अब इनके बिना कोरोना की चर्चा ही अधूरी लगती है। ये दुनिया की तमाम भाषाओं के सबसे जरूरी शब्दबन गए हैं।

कोरोनाकाल में चर्चित हुए 10 सबसे महत्वपूर्णशब्दों को आज भी समझने और उन पर लगातार अमल की जरूरत है, आजइन्हीं शब्दों में गुंथीकहानी, तस्वीरों की जुबानी...

मित्रो! लक्ष्मण रेखा न लांघें : यह तस्वीर 24 मार्च की है, जब पीएम नरेंद्र मोदी ने पहली बार देश में 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा की थी। रात के 8 बजे हमेशा की तरह मित्रो वाला संदेश लेकर आएपीएम ने इस बार देशवासियों से घर की लक्ष्मण न पार करने की अपील की थी। अपनी बात को सबको समझाने के लिए उन्होंने एक प्लेकार्ड का इस्तेमाल भी किया जिस परसंदेशलिखा था-कोई रोड पर न निकले, जिसके पहले तीन अक्षरों को जोड़करसांकेतिक अर्थ 'कोरोना' भी बन रहा था।

दूर की नमस्ते ही भली:यह तस्वीर 12 मार्च की है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प आयरलैंड के प्रधानमंत्री लियो से मिले थे। यह मुलाकात थोड़ी अलग थी क्योंकि इस बाद ट्रम्प ने किसी का स्वागत वेस्टर्न तरीके सेहाथ मिलाकर या गले लगाकर नहीं बल्कि भारतीय अभिवादन के तरीके को अपनाया औरनमस्कार करके उनका स्वागतकिया था। यह दुनिया के लिएसोशल डिस्टेंसिंग के पुरातन भारतीय तरीकेएक परिचय था, और यह तस्वीर खूब चर्चा में रही।

उफ! ये बेरहमी की फुहार:यह तस्वीर उत्तर प्रदेश के बरेली जिले की है, जो 30 मार्च को जारी हुई थी। जिले में बाहर से आने वाले लोगों को वायरसमुक्त यानी सैनेटाइज करने के लिए उन परसोडियम हाइपोक्लोराइटके घोल का स्प्रे किया गया। दमकल विभाग की गाड़ी ने एक साथ लोगों पर केमिकल छिड़का तो थके-मांदेलोग सिहर उठे,शरीर और आंखों में खूबजलनहुईं। बच्चे बुरी तरह घबरा गए औररोते हुए नजर आए। सोशल मीडिया पर दर्द की येतस्वीर वायरल हुई और यूपी प्रशासन के इस कदम की दुनियाभर में आलोचनाहुई।

सबसे अमीर आदमी के लिए भी घर ही ऑफिस : यह तस्वीर बदलते वक्त की गवाही दे रहीहै जिसे अमेरिकी कम्पनी माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स ने 18 मार्च को पोस्ट की और लोगों को वर्क फ्रॉम होम यानी घर से ही ऑफिस का काम करने की अपील की। अमेरिका में 26 जून को 40 हजार 870 कोरोना के नए मामले सामने आए। देश के 50 में 16 राज्यों में हालात ज्यादा खराब हैं। पूरी दुनिया को आंख दिखाने वालासबसे शक्तिमान और संपन्नदेश भीये एक अदृश्य जीव के सामने सरेंडर करने पर मजबूर हुआ।

पास रहते हुए भी दूर-दूर : क्वारैंटाइन महामारी की शुरुआत का सबसे चर्चित और जटिल शब्द रहा, जिसे सबने अपने-अपने अंदाज में पढ़ा, समझा और अमल किया। यह शब्द इटली के क्वारंटा जिओनी से जन्मा है, जिसका अर्थ है 40 दिन का। 600 साल पहले प्लेग से बचने के लिए इटली ने इसे शुरू किया। खास बात यह है कि भारत में यह तरीका सदियों से चला आ रहा है। जैसे नवजात और मां को 10 दिन अलग रखना। सभ्य दुनिया में इसे सी-पोर्ट और एयरपोर्ट पर इस्तेमाल किया जाता था, पर अब ये घर-घर की कहानी है।

घर में कैदखाने जैसी फीलिंग्स: क्वारैंटाइन से ही मिलता-जुलता एक और शब्द है होम आइसोलेशन, लेकिन दोनों में फर्क है। सेल्फ क्वारैंटाइन कर रहे लोग संक्रमित नहीं होते। वे कोविड-19 जैसे लक्षण दिखने पर सावधानी के लिए खुद को अलग करते हैं। वहीं, सेल्फ आइसोलेटेड लोग कोरोना पॉजिटिव होते हैं, जो वायरस की रोकथाम और ट्रीटमेंट के लिए अलग हो जाते हैं।

कोरोना कर्मवीरों का सम्मान : जनता कर्फ्यू, यह शब्द मार्च के तीसरे हफ्ते में चर्चा में आया, जब पीएम मोदी ने 22 मार्च को एक दिन का लॉकडाउन जनता का, जनता के लिए, जनता के हित में लागू किया। शाम को पांच बजते ही पूरा देश तालियों और थालियों की आवाज से गूंज उठा। जो जहां था वो वहीं ठहर गया। झोपड़ी से लेकर महलों तक के लोगों ने कोरोना वॉरियर्स के सम्मान में गजब एकता दिखाई। उसदिन की यह तस्वीर सबसे चर्चा में रही, जिसमें पीएम मोदी की मां ने थाली बजाकर कोरोना कर्मवीरों का उत्साह बढ़ाया।

अब रंगों में हुआ देश का नया बंटवारा:लॉकडाउन के तीसरे चरण में देश के अलग-अलग इलाकों को रेड, ग्रीन और ऑरेंज जोन में बांटा गया। इनके अलावा एक कैटेगरी और बनाई गई कंटेनमेंट जोन की। रेड, ऑरेंज या ग्रीन जोन जिलों के हिसाब से तय किया गया था जबकि कंटेनमेंट जोन इलाकों के हिसाब से तय होता है। अगर किसी इलाके में कोरोना का एक पॉजिटिव केस आता है तो क्षेत्र में कॉलोनी, मोहल्ले या वार्ड की सीमा के अंदर कम से कम 400 मीटर के दायरे को कंटेनमेंट घोषित किया जा सकता है। रोजबदलते नियमों के साथ अब ये भी बदल गया है।

वो शब्द जिसे लोग जानकर भी अंजान थे :महामारी से पहले लोग इम्युनिटी शब्द से वाकिफ थे लेकिन फरवरी से हर्ड इम्युनिटी शब्द की चर्चा शुरू हुई। हर्ड इम्युनिटी में हर्ड शब्द का मतलब झुंड से है और इम्युनिटी यानी बीमारियों से लड़ने की क्षमता। इस तरह हर्ड इम्युनिटी का मतलब हुआ कि एक पूरे झुंड या आबादी की बीमारियों से लड़ने की सामूहिक रोग प्रतिरोधकता पैदा हो जाना। जैसे चेचक, खसरा और पोलियो के खिलाफ लोगों में हर्ड इम्युनिटी विकसित हुई थी। इसे अमूमन किसी वैक्सीन की क्षमता परखने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

अपनों का साथ, अपना-अपनादायरा :अप्रैल के अंत में 'सोशल बबल' शब्द की चर्चा शुरू तो हुई लेकिन ज्यादातर लोग इसे समझ ही नहीं पाए। चर्चा की वजह रहा न्यूजीलैंड, जिसमें सोशल बबल का ऐसा मॉडल विकसित किया जिसे ब्रिटेन और दूसरे देशों ने अपनाया। परिवार के सदस्य, दोस्त या कलीग जो अक्सर मिलते रहते हैं उनके समूह को सोशल बबल कहते हैं। लॉकडाउन के दौरान इन्हें मिलने की इजाजत देने की बात कही गई। मिलने के दौरान दूरी बरकरार रखना जरूरी है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की रिसर्च कहती है कि अगर लोग छोटे-छोटे ग्रुप में एक-दूसरे से मिलें तो वायरस के संक्रमण को फैलने से रोका जा सकता है।



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Saturday, June 27, 2020

शोधकर्ताओं का दावा- बच्चों में कोरोना से मौत का खतरा काफी कम, संक्रमण के बाद ज्यादातर बच्चों में हल्के लक्षण दिखते हैं

बच्चों में कोरोना का संक्रमण होता है तो मौत का खतरा बेहद कम है। ज्यादातर बच्चों में संक्रमण के बाद हल्के लक्षण दिखते हैं। यह दावा ब्रिटेन, यूरोप, स्पेन और ऑस्ट्रिया के शोधकर्ताओं ने अपनी रिसर्च में किया है। शोधकर्ताओं ने 3 से 18 साल के 585 कोरोना पीड़ितों पर रिसर्च की। रिसर्च 82 अस्पतालों में 1 से 24 अप्रैल के बीच की गई, जब यूरोप में महामारी अपने चरम पर थी। रिसर्च में सामने आया कि 62 फीसदी मरीजों को ही हॉस्पिटल में भर्ती करने की नौबत आई। वहीं, मात्र 8 फीसदी को आईसीयू की जरूरत पड़ी।

बच्चे मामूली तौर पर बीमार पड़ रहे हैं

रिसर्च द लैंसेट चाइल्ड एंड एडोलेसेंट हेल्थ जर्नल में प्रकाशित हुई है। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के शोधकर्ता मार्क टेब्रूगेका कहना है कि हमारी रिसर्च कोविड-19 का बच्चों और किशोरों से कितना कनेक्शन है, यह बताती है। इनमें कोरोना से मौत का खबरा सबसे कम है।ज्यादातर बच्चे मामूली तौर पर बीमार पड़ते हैं।

50 फीसदी कोरेस्पिरेट्री ट्रैक्ट का संक्रमण हुआ

शोधकर्ताओं के मुताबिक,अब तक इतनी ज्यादा संख्या में बच्चों में कोरोना के मामले नहीं आए कि उन्हें आईसीयू की जरूरत पडे। रिसर्च में शामिल कोरोना से पीड़ित 582 बच्चों में 25 फीसदी तो ऐसे थे जो पहले से ही किसी न किसी समस्या से जूझ रहे थे।

  • 379 मरीजों में बुखार जैसे लक्षण दिखे। करीब 50 फीसदी मरीजों के रेस्पिरेट्री ट्रैक्ट में संक्रमण हुआ। इनमें मात्र 25 फीसदी ही निमोनिया से जूझे।
  • 22 फीसदी मरीजों को पेट से जुड़ी दिक्कत थीं। 582 में से 40 मरीज को सांसों से जुड़ी कोई समस्या नहीं हुई।
  • 92 बच्चों में को कोरोना के कोई लक्षण नहीं दिखाई दिए और87 फीसदी को ऑक्सीजन लेने की जरूरत नहीं पड़ी।

4 मरीजों की मौत हुई
जिन 25 बच्चों को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ी उन्हें एक हफ्ते या इससे अधिक समय तक ऑक्सीजन दी गई। रिसर्च के दौरान 4 मरीजों की मौत हुई। इनमें से 2 पहले की किसी बीमारी से परेशान थे। मरने वालेमरीजों की उम्र 10 से अधिक थी।

अलग-अलग देशों में कोरोना की स्थिति भी अलग
स्पेन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल के शोधकर्ता बेगोना सेंटियागो-गार्सिया के मुताबिक, शोध के नतीजे सर्दियों में कोल्ड और फ्लू इंफेक्शन के समय बेहद काम के साबित होंगे। शोध के दौरान यूरोपीय देशों में जांच बड़े स्तर पर नहीं हो पा रही थीइसलिए हल्के लक्षण वाले कोरोना पीड़ित बच्चों की टेस्टिंग नहीं हो पाई थी। अलग-अलग देशों में कोरोना को समझने का तरीका भी अलग है। कोई स्टैंडर्ड तरीका न होने के कारण इतनीबड़ी जनसंख्या पर रिसर्च के नतीजे सामने लाना मुश्किल होता है।



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Most children have mild form of Covid-19, face minute risk of death, Lancet study finds


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एक्सपर्ट्स ने भास्कर को बताया - फटा दूध ताकत का अच्छा सोर्स, लेकिन इसका कोरोना से सीधे कोई कनेक्शन नहीं

क्या वायरल : दावा किया जा रहा है कि फटा दूध पीने से इम्युनिटी बढ़ती है।

  • कोविड -19 से दुनिया भर में संक्रमित लोगों की संख्या का आंकड़ा 1 करोड़ होने वाला है। लोग वायरस से डरे हुए हैं। डॉक्टरों, वैज्ञानिकों से लेकर डब्ल्यूएचओ ने स्पष्ट कर दिया है कि इस समय दुनिया के पास कोविड-19 वायरल को ठीक करने का कोई सटीक इलाज नहीं है।
  • कोविड-19 से लड़ने के दो प्रमुख औजार हैं। सोशल डिस्टेंसिंग और इम्युनिटी। सोशल डिस्टेंसिंग से संक्रमण फैलने से रोका जा सकता है। और इम्युनिटी से शरीर को संक्रमण से लड़ने लायक बनाया जा सकता है। यही वजह है कि हर व्यक्ति इस समय अपनी इम्युनिटी बढ़ाने के प्रयास में है। हालांकि, इसका फायदा उठाकर कई तत्व इम्युनिटी और कोरोना के इलाज से जुड़े भ्रामक दावे करने में लगे हुए हैं।
  • इंटरनेट पर कुछ वेबसाइट्स के साथ सोशल मीडिया के जरिए इन दिनों ये दावा किया जा रहा है कि फटे दूध का पानी पीने से इतनी इम्युनिटी बढ़ाई जा सकती है। जो कोरोना से लड़ने के लिए काफी है। इस दावे को लोग सही मानकर अन्य लोगों को शेयर कर रहे हैं। दावे की सत्यता जांचने के लिए दैनिक भास्कर की फैक्ट चेक टीम ने तीन एक्सपर्ट्स से बात की।

फटे दूध से इम्युनिटी बढ़ने से जुड़े दावे

https://twitter.com/looknewsindia/status/1276597739762020352

https://www.thehealthsite.com/hindi/diet/sour-milk-water-benefits-and-how-to-use-it-in-hindi-phate-hue-doodh-aur-pani-ke-fayde-in-hindi-754208/

फैक्ट चेक पड़ताल

  • healthsite.com वेबसाइट पर फटे दूध से इम्युनिटी बढ़ने वाली जो खबर सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही है। उसकी हैडिंग है - इम्यूनिटी बूस्ट करे फटे हुए दूध का पानी, पढ़ें इसके उपयोग और फायदे। यहां हैडिंग में तो फटे दूध से इम्युनिटी बढ़ने का दावा किया गया है। लेकिन, खबर के अंदर किसी भी साइंटिफिक रिपोर्ट या फिर एक्सपर्ट का हवाला नहीं दिया गया है। कुल मिलाकर एक मिथ के आधार पर ही खबर पब्लिश की गई है।
  • आयुष मंत्रालय ने कोविड-19 के दौर में इम्युनिटी बढ़ाने को लेकर गाइडलाइन जारी की है। दावे की सत्याता जांचने के लिए हमने सबसे पहली इन गाइडलाइंस को पढ़ा। इसमें अधिकतर वही तरीके बताए गए हैं। जिन्हें लोग घर पर ही अपना सकते हैं। यहां इम्युनिटी बढ़ाने के लिए दिन में एक से दो बार हल्दी वाला दूध पीने की सलाह दी गई है। लेकिन, फटा दूध पीने से जुड़ी कोई सलाह नहीं है। (यहां पढ़ें गाइडलाइन)
  • न्यूट्रीशनिस्ट निधि शुक्ला पांडे के अनुसार, फटा हुआ दूध एक बेहतर प्रोटीन सोर्स है। ये एक अच्छा प्री और पोस्ट वर्कआउट ड्रिंक भी होता है। कई और भी फायदे हैं। इससे मिलने वाले तत्व इनडायरेक्टली इम्युनिटी बढ़ाने में मदद करते हैं। लेकिन, फटा दूध पीने से सीधे इम्युनिटी बढ़ती है, ये पूरी तरह सिद्ध नहीं है।

  • नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद के डॉक्टर हरीष भाकुनी कहते हैं - दूध इम्यून सिस्टम बढ़ाने में अहम भूमिका निभाता है। लेकिन, फटे हुआ दूध पीने से इम्युनिटी बढ़ने जैसी बात अब तक सिद्ध नहीं हुई है।

  • आयुर्वेद चिकित्सक डॉक्टर किरण गुप्ता के अनुसार, फटे हुए दूध का पानी डाइजेशन को ठीक करने और लीवर के लिए अच्छा होता है। इम्युनिटी बढ़ाने से इसका सीधे तौर पर कोई कनेक्शन नहीं है।

निष्कर्ष : फटा दूध पीने के कई फायदे हैं। यह एक बेहतर प्रोटीन सोर्स है। लेकिन, इसे पीने से इम्युनिटी बढ़ने वाला दावा भ्रामक है।



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Claims that increase immunity from cracked milk are misleading


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कोरोनावायरस 2013 से दुनिया में था लेकिन जिसने वर्तमान में महामारी फैलाई उसका जीनोम पुराने वायरस से अलग है

कनाडा के शोधकर्ताओं ने कोरोना की उत्पत्ति पर अपनी रिसर्च जारी की है। उनका कहना है कि कोरोनावायरस 2013 से ही दुनिया में मौजूद था लेकिन उसका जीनोम आज के कोरोना से अलग है। रिसर्च करने वाले कनाडा की कैलगरी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक, 30 दिसम्बर 2019 से लेकर 20 मार्च 2020 तक कोरोनावायरस के 479 जीनोम सिक्वेंस का अध्ययन किया गया। अध्ययन से यह समझने की कोशिश की गई कि समय के साथ कोरोनाकितना बदलाऔर वर्तमान में महामारी फैला रहे वायरस से इनका क्या सम्बंध है।

  • रिसर्च जुड़ी5 बड़ी बातें

होस्ट बदलने पर वायरस खतरनाक हो जाता है
शोधकर्ताओं के मुताबिक, एक नया वायरस तब खतरनाक होता है जब वह जानवर से इंसान से पहुंचता है। हो सकता है कि जब यह जानवर में हो तो उसमें हल्के लक्षण दिख रहे हैं। ऐसा भी हो सकता है कि वायरस जानवर को संक्रमित न कर रहा हो। लेकिन जब ये अपना होस्ट बदलता है तो बेहद खतरनाक साबित हो जाता है।

समय के साथ चमगादड़ का इम्यून सिस्टम मजबूत हुआ
शोधकर्ताओं के मुताबिक, लम्बे तक रहने के कारण चमगादड़ का इम्यून सिस्टम इतना विकसित हो गया हो कि वायरस का असर ही न हो रहा हो लेकिन इंसानों में ऐसा नहीं है। इंसानों का इम्यून सिस्टम इस वायरस को झेलने के लिए इतना तैयार नहीं, इसलिए वे बीमार हो रहे हैं।

96 फीसदी जीनोम बैट कोरोनावायरस का
शोधकर्ताओं के मुताबिक, कोरोनावायरस का चमगादड़ और पैंगोलिन से कनेक्शन मिला है। 96 फीसदी जीनोम बैट कोरोनावायरस (RaTG13) से मिलता है। बैट कोरोना का मतलब वो कोरोना वायरस जिसने संक्रमण चमगादड़ के जरिए फैलाया। वहीं 90 फीसदी जीनोम पैंगोलिन कोरोनावायस (Pangolin-CoV) से मिला है।

कोरोना के 16 रूप दिखे
शोधकर्ताओं ने 479 जीनोम सीक्वेंस में कोरोना के 16 अलग-अलग रूप दिखे हैं। इनमें 11 ऐसे थे जिनसे 5 फीसदी से अधिक संक्रमण फैला था। हर वायरस में अलग-अलग समय में बदलाव हो रहा है।

नए कोरोना के पूर्वज का कनेक्शन जानवरों से
शोधकर्ताओं को वर्तमान में महामरी फैलाने वाले कोरोनावायरस के स्पाइक प्रोटीन का विश्लेषण करके इसे पूर्वज वायरस को समझने की कोशिश की है। नए कोरोना पूर्वज वायरस का सीक्वेंस तैयार किया गया है जिसे N1 नाम दिया गया है। रिसर्च में सामने आया कि इसके पूर्वजों का कनेक्शन जानवरों से था। ये जानवरों में मौजूद थे।



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COVID-19 origin : University of Calgary research shows SARS-CoV-2 may have been evolving slowly since 2013


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आईसीयू में मरीज का इलाज कर रहे डॉक्टर पहले वायरस लोड से जूझे फिर संक्रमण से उबरने के बाद लॉन्ग कोविड से परेशान

अस्पताल का आईसीयू यानी वो जगह जहां मरीज को तभी लाया जाता है जब उसकी हालत नाजुक होती है। कोरोना महामारी के दौर में इसकी तस्वीर थोड़ी बदली है। अब आईसीयू में मरीजों की जान बचाने डॉक्टर खुद को भी वायरस से दूर रखने की जद्दोजहद में फंसे हैं।

आईसीयू में इलाज के दौरान मरीजों से फैले कोरोना के कण उनके चारों ओर बढ़ रहे हैं। वैज्ञानिक भाषा में इसे 'वायरस लोड' का नाम दिया गया है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, वायरस लोड सबसे ज्यादा आईसीयू में होता है, इसके बाद दूसरे वार्ड में।

ब्रिटेन के रॉयल कॉलेज ऑफ फिजिशियंस में हुई हालिया शोध कहती है कि अस्पताल के एक चौथाई से अधिक डॉक्टर बीमार हैं या कोविड-19 के कारण क्वारेंटाइन में हैं। चिकित्सा जगत की विश्वसनीय वेबसाइट मेडस्केप के मुताबिक, ब्रिटेन में कोविड-19 से मरने वाले हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स का आंकड़ा 630 की संख्या को पार कर गया है।

डॉक्टर्स के लिए वायरस लोड का संकट बढ़ रहा है क्योंकि ये मरीजों के सैम्पल ले रहे हैं, ऑक्सीजन दे रहे हैं, चेकअप कर रहे हैं। इस दौरान वायरस के कण मरीज से डॉक्टर्स तक पहुंच रहे हैं। एक रिसर्च के मुताबिक, मेडिकल प्रोफेशनल्स 7 से 8 घंटे की नींद नहीं पूरी कर पा रहे हैं। यह स्थिति संक्रमण का खतरा बढ़ती है और हार्ट डिसीज, डायबिटीज और स्ट्रोक की आशंका बढ़ती है।

  • आईसीयू वार्ड में वायरस लोड से जूझने वाले डॉ. जेक ने बताई आपबीती

1. लॉन्ग कोविड का पहला मामला : ड्यूटी के एक हफ्ते बाद ही दिखने लगे लक्षण
डॉ. जेक स्यूट की उम्र 31 साल है और इनकी तैनाती आईसीयू वार्ड में हुई थी। 3 मार्च को इनकी ड्यूटी कोरोना से जूझ रहे लोगों को बचाने में लगाई गई थी। 20 मार्च को पहली बार कोरोना के लक्षण दिखे। संक्रमण खत्म होने के बाद भी जेक इसके साइडइफेक्ट से जूझ रहे हैं। हफ्ते में 4 से 5 बार जिम जाने वाले जेक 3 महीने बाद भी सीने में दर्द, सांस लेने में तकलीफ, मेमोरी लॉस, आंखों की घटनी रोशनी से परेशान हैं। हालत ऐसी है कि वह अब तक काम पर नहीं लौट सके हैं।

वह कहते हैं कि जब मैंने पहले तीन दिन बेड पर गुजारे तो ऐसा लगा कि मैं मरने वाला हूं, सब कुछ काफी परेशान करने वाला था। अभी भी मेरे पैरों और हाथों में काफी दर्द रहता है। तब से हालत में सुधार तो हुआ है लेकिन बेहद धीमी गति से।
डॉ. जेक फेसबुक के उस ग्रुप से जुड़े हैं जिसमें डॉक्टर समेत 5000 ऐसे लोग हैं जो लम्बे समय से कोरोना से जूझ रहे हैं। 14 हफ्तों से अधिक समय तक रहने वाले संक्रमण को 'लॉन्ग कोविड' का नाम दिया गया है। डॉ. जेक कहते हैं कि मैं चाहता हूं वैज्ञानिक इस पोस्ट कोविड सिंड्रोम कपर रिसर्च करें और पता लगाएं कि क्यों हजारों लोग इतनी बुरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं।

2. लॉन्ग कोविड का दूसरा मामला : संक्रमण खत्म होने के 9 हफ्ते बीते लेकिन 2 घंटे से ज्यादा कम नहीं कर पातीं
लुसी बेली की उम्र 32 साल है। पहली बार कोरोना के लक्षण 27 अप्रैल को दिखे थे लेकिन अब भी वह घर पर दो घंटे ज्यादा देर तक काम नहीं कर पाती हैं। बीमारी के 9वें हफ्ते से गुजर रहीं लुसी कहती हैं कि लोग सोचते हैं अगर आपकी मौत कोरोना से नहीं हुई और 2 हफ्ते निकाल ले गए तो आप बच जाएंगे लेकिन आप लॉन्ग कोविड से भी गुजर सकते हैं।
लुसी ट्विटर पर लिखती हैं कि हर 20 में से एक इंसान संक्रमण के एक महीने बाद भी रिकवर नहीं कर पा रहा है। मैं 8 हफ्तों के बाद भी इससे उबर नहीं पाई हूं। संक्रमण से पहले मैं स्वस्थ थी मुझे कोई बीमारी नहीं थी। लॉकडाउन हट गया है, सावधान रहें, ऐसा आपके साथ भी हो सकता है।

  • लॉन्ग कोविड का असर हेल्थ वर्करों और मरीजों पर पड़ सकता है

इम्पीरियल कॉलेज लंदन में इम्युनोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डैने अल्तमेन कहते हैं, कोरोना के लम्बे समय तक दिखने वाले साइडइफेक्ट पर स्टडी हो रही है। डॉ जेक को भी इसमें शामिल करने के लिए बुलाया गया है। इसे समझना बेहद जरूरी है क्योंकि डॉक्टर्स को मरीज देखने जाना ही पड़ता है। इसका असर नेशनल हेल्थ सर्विस के लिए काम करने वाले हेल्थ वर्कर और मरीजों पर पड़ सकता है।



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now virus load is big problem ICU health worker and doctor which could be turned into long covid


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कोलकाता में 30 साल की महिला को पेट दर्द हुआ, जांच में साबित हुई 'मर्द'; डॉक्टर बोले- वीर्यकोष पूरी तरह विकसित नहीं हो पाए

कोलकाता के बीरभम में एक दुर्लभ मामला सामने आया है। पेट दर्द की शिकायत की बाद 30 साल की एक महिला को अचानक पता चला कि वह 'मर्द' है और टेस्टिकुलर कैंसर (अंडकोश में कैंसर) से जूझ रही है। महिला का इलाज कोलकाता के सुभाष चंद्र बोस कैंसर हॉस्पिटल में चल रहा है। जांच करने वाले डॉ. अनुपम दत्ता का कहना है कि बाहरी शारीरिक बनावट जैसे ब्रेस्ट, आवाज और गुप्तांग से वह महिला है लेकिन उसके शरीर में गर्भाशय और अंडाशय नहीं है। यह एक दुर्लभ मामला है, जिसे वैज्ञानिक भाषा में एंड्रोजन इनसेंसटिविटी सिंड्रोम कहते हैं।

क्या होता है एंड्रोजन इनसेंसटिविटी सिंड्रोम
यह दुर्लभ स्थिति होती है जो तब बनती है जब गर्भ में भ्रूण के जननांग विकसित हो रहे होते हैं। जन्मजात एंड्रोजन इनसेंसटिविटी सिंड्रोम के साथ पैदा होनेवाले बच्चे अंदरूनी तौर पर पुरुष होते हैं और बाहर से दिखने पर लड़की जैसे दिखते हैं। कुछ मामलों में ये बाहरी तौर पर महिला और पुरुष दोनों की तरह मिलते-जुलते दिखते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, 22 हजार लोगों में से किसी 1 में ऐसा मामला सामने आता है।

9 साल पहले हुई थी शादी
9 साल पहले महिला की शादी हुई थी। एंड्रोजन इनसेंसटिविटी सिंड्रोम के बावजूद उसे कोई परेशानी नहीं हुई।कुछ महीने पहले वह पेट के निचले हिस्से में तेज दर्द होने पर सुभाष चंद्र बोस कैंसर हॉस्पिटल पहुंची। जांच करने वाले डॉ. अनुपम दत्ता के मुताबिक, महिला को आज तक पीरियड्स (माहवारी) नहीं आए। इस मामले के बाद महिला की बहन की जांच भी की गई तो वह भी एंड्रोजन इनसेंसटिविटी सिंड्रोम से जूझ रही थी।

महिला में दुर्लभ कैंसर का भी पता चला
डॉ. दत्ता के मुताबिक, पेट दर्द की शिकायत के बाद हमनें जांचें की। रिपोर्ट में सामने आया कि महिला में टेस्टिकल्स (वीर्यकोष) हैं। इसके बाद उसकी बायोप्सी से साफ हुआ कि महिला टेस्टिकुलर कैंसर से जूझ रही है जिसे सेमिनोमा कहते हैं। सेमिनोमा टेस्टिस में होने वाला दुर्लभ कैंसर है। वर्तमान में महिला की कीमोथैरेपी की जा रही है और उसकी हालत स्थिर है।

वीर्यकोष पूरी तरह विकसित नहीं हो पाए
डॉ. दत्ता के मुताबिक, महिला में टेस्टिकल्स (वीर्यकोष) पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाए हैं। मेल हार्मोन टेस्टोस्टेरॉन नहीं रिलीज हुआ। उसमें फीमेल हार्मोन रिलीज हुआ इसलिए वह महिला जैसी दिखती है। वह एक औरत की तरह पली-बढ़ी है। करीब एक दशक पहले शादी हुई है, इसलिए हम अभी महिला और उसके पति की काउंसलिंग कर रहे हैं।

जीन्स की वजह से ऐसा हो सकता है
हॉस्पिटल के कैंसर एक्सपर्ट का कहना है कि दम्पति ने कई बार फैमिली प्लानिंग की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो पाई। हमें यह पता चला है कि महिला के ननिहाल की दो महिलाओं में भी एंड्रोजन इनसेंसटिविटी सिंड्रोम की पुष्टि हुई थी।



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Woman in Kolkata, suffering from rare syndrome called Androgen Insensitivity Syndrome doctor Discovers She's A "Man" due to Rare Condition


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Friday, June 26, 2020

हमारे पास कोरोना की वैक्सीन कभी नहीं रही, उम्मीद है यह अगले एक साल में यह तैयार हो जाएगी

वैक्सीन पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अपना बयान जारी किया है। डब्ल्यूएचओ के प्रमुख टेड्रोस अधेनॉम गेब्रेसियस ने कहा, यह निश्चित नहीं किया जा सकता है कि वैज्ञानिक कोरोना के खिलाफ प्रभावी वैक्सीन विकसित कर पाएंगे। हमें उम्मीद है कोविड-19 की वैक्सीन आएगी। यह अगले एक साल में अंदर तैयार हो सकती है।

डब्ल्यूएचओ के प्रमुख टेड्रोस ने यह बात यूरोप की संसदीय स्वास्थ्य कमेटी से ऑनलाइन कॉफ्रेंसिंग के दौरान कही।

वैक्सीन तैयार करने के प्रयास जारी
टेड्रोस के मुताबिक, हमारे पास कोरोना की वैक्सीन कभी नहीं थी। इसलिए जब यह तैयार होगी तो सामने आएगी। इसे तेजी से तैयार करने के प्रयास जारी हैं। ऐसे में हो सकता है कि यह एक साल के अंदर या कुछ महीने में भी तैयार हो सकती है। वैज्ञानिक भी यही बात कर रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय को आगाह किया
टेड्रोस अधेनॉम ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान अंतरराष्ट्रीय समुदाय को आगाह किया। उन्होंने कहा, दुनियाभर में कोरोनावायरस अभी भी फैल रहा है। यह समय हमें खुद को सुरक्षित रखने का है, इसलिए बचाव की हर सावधानी बरतें। डॉ. टेड्रोस ने इस बात को खारिज किया कि जिसमें कहा गया था कि चीन ने महामारी के बारे में अन्य देशों को समय से आगाह नहीं किया। उन्होंने कहा कि किसी चीज को लेकर रिस्पॉन्स करने की तुलना करना संभव नहीं थी।



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 World Health Organization (WHO) Chief Latest Updates On Coronavirus Vaccine


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बुखार आने पर ये न सोचें कि कोरोना हुआ है, डॉक्टर को तय करने दें वायरस की जांच होगी या नहीं; इस दौरान भी बचाव की हर सावधानी बरतें

बाहर से खाना मंगाना कितना सही है, 10 दिन से बुखार आ रहा है क्या यह कोरोना का लक्षण है और फेमिली मेम्बर्स बाहर आते-जाते हैं तो गर्भवती महिलाएं क्या सावधानी बरतें... ऐसे कई सवालोंके जवाब नई दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल की विशेषज्ञ डॉ. माला श्रीवास्तव ने आकाशवाणी को दिए। एक्सपर्ट से जानिए कोरोना से जुड़े सवालों के जवाब...

#1) क्या कोरोना मरीजों पर फेविपिराविर दवा का अच्छा असर हो रहा है?
कोरोना के मरीजों के इलाज में कई दवाइयों को प्रयोग करते हैं लेकिन किस मरीज को दवाई का फायदा हुआ और कौन इम्युनिटी से ठीक हुआ यह बताना मुश्किल है। लेकिन इलाज के बाद देखा गया है कि किसी मरीजमें एंटीवायरल दवाएं काम कर रही हैं तो कइयों में प्लाज्मा थैरेपी। इस तरह अलग-अलग मरीजों पर कौन सी दवा ज्यादा असर कर रही है, यह कहना अभी सम्भव नहीं है।

#2) गर्भवती महिला के फैमिली मेम्बर्स बाहर जाते हैं, वो क्या सावधानी बरतें?
गर्भवती होने पर इम्युनिटी थोड़ी कम हो जाती है और सभी को पता है कि कोरोना वायरस कोई सटीक इलाज नहीं है। इसलिए,गर्भवती को संक्रमण का खतरा अधिक है। बेहतर होगा कि घर में भी सोशल डिस्टेंसिंग बनाकर रखें। अगर पति ऑफिस जाते हैं तो घर आने पर तुरंत उनके सम्पर्क में न आएं। वो कपड़े बदलें, नहाएं उसके बाद ही बाकी काम करें। ऐसी महिलाओं को कोशिश करनी चाहिए कि किसी के सामने जाएं तो मास्क लगाकर जाएं क्योंकि सामने वाला इंसान एसिम्प्टोमैटिक हो सकता है।

#3) अगर 10 दिन से बुखार आ रहा है तो क्या करें?
अगर तेज बुखार है, सांस लेने में परेशानी है या कोई और दिक्कत है तो डॉक्टर को दिखाएं। डॉक्टर तय करेंगे कि कोरोना की जांच होगी या नहीं। केवल बुखार आने से यह न सोचे की की कोरोनावायरस का संक्रमणहुआ है।

#4) विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि आबादी के लिहाज से भारत में कोरोना के मामले काफी कम हैं, इस पर आप क्या कहेंगी?
इस पर से बहुत खुश न हों क्योंकि वायरस का प्रकोप अभी खत्म नहीं हुआ है। अभी भी बीमारी फैलने का खतरा है। संक्रमण फैला तो कहां तक जाएगा पता नहीं। हां, हमारे देश में घनी आबादी है उसके हिसाब से संक्रमण कम है। ऐसे में सिर्फ वायरस से बचने के लिए नियमों का पालन करें।

#5) ऑनलाइन डिलीवरी में क्या सावधानी रखें?
डिलीवरी लेते वक्त सामान घर के बाहर ही रखवा दें। सामान को तुरंत न उठाएं बल्कि सैनेटाइज करने के बाद ही छुएं। अगर धोने लायक सामान है तो पानी से धो लें। अगर धो नहीं सकते तो कम से कम उस 3-4 घंटे मत छुएं। उसके बाद भी प्रयोग करते वक्त सावधानी रखनी है।

#6) कोरोना के समय बाहर से खाना मंगाना कितना सही है?
ये कहना मुश्किल है कि बाहर का खाना सुरक्षित है या नहीं। क्योंकि खाना लाने वाला संक्रमित है या नहीं, यह किसी को नहीं मालूम। या जो बना रहा है वो एसिम्प्टोमैटिक हो तो उसे खुद भी नहीं पता चल पाता। इसलिए अगर बाहर से खाना मंगा रहे हैं तो थोड़ी सावधानी बरतें। जैसे अगर पिज्जा मंगा रहे हैं तो ग्लव्स पहनकर डिब्बे को खोलें। ग्लव्स हटाकर हैंडवॉश करके पिज्जा निकालें। खाना जब तेज आंच में पकाया जाता है तब उसमें संक्रमण का खतरा कम हो जा जाता है। लेकिन फिर भी खाने से पहले सावधानी से पैकिंग को खोलें।



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Do not think that a corona has occurred after the fever comes, let the doctor decide whether the virus will be tested or not.


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कोरोना के मरीजों को ब्रेन स्ट्रोक का खतरा, बेहोशी के अलावा मसल इंजरी भी हो सकती है; कोविड-19 के लक्षण दिखते ही डॉक्टरी सलाह लें

कोविड-19 के बारे में किए गए कई अध्ययनों के अनुसार यह बीमारी व्यक्ति के फेफड़ों और सांस की नली को बुरी तरह प्रभावित करती है। लेकिन एक तथ्य से लोग अब भी वाकिफ नहीं हैं कि यह बीमारी नर्वस सिस्टम को भी गहरा नुकसान पहुंचा सकती है। कई मरीज स्ट्रोक के भी शिकार हो रहे हैं। कुछ हालिया अध्ययन बताते हैं कि कोविड के कुछ मरीजों में मस्तिष्क संबंधी समस्या होने का भी खतरा है।
कोरोना से ग्रस्त जिन मरीजों को पहले से ही मस्तिष्क संबंधी समस्या है, उनमें से अधिकतर मरीजों को स्ट्रोक जैसी गंभीर समस्या से भी गुज़रना पड़ा है। वहीं कुछ मरीजों को बेहोशी की समस्या हुई तो कई मरीजों ने मसल इंजरी की शिकायत भी की। ये सभी समस्याएं सीधे-सीधे नर्वस सिस्टम से जुड़ी हुई हैं। डॉ. विपुल गुप्ता, डायरेक्टर, इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंस अर्टमिस हॉस्पिटल बता रहे हैं कब अलर्ट हो जाएं....

कब नज़र आते हैं लक्षण‌?
कुछ मरीजों में स्ट्रोक के लक्षण कोविड के लक्षणों से पहले नज़र आ सकते हैं तो वहीं कुछ मरीजों में स्ट्रोक के लक्षण कोविड के निदान के 7-10 दिनों के बाद नज़र आते हैं।

क्यों हो रही है स्ट्रोक की समस्या?
इसको लेकर अब तक कई रिसर्च की जा चुकी हैं। इन रिसर्च से इसका एक कारण यह सामने आया है कि कोरोना से पीड़ित मरीजों के शरीर में डी-डाइमर नाम के केमिकल की मात्रा ज्यादा हो जाती है, जो खून के थक्कों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। तो अगर मरीज पहले से किसी मस्तिष्क संबंधी समस्या से जूझ रहा है तो उसमें स्ट्रोक की आशंका बहुत बढ़ जाती है।

युवा भी हो रहे हैं शिकार
स्ट्रोक की समस्या आमतौर पर बुज़ुर्गों में ज्यादा देखने को मिलती है खासकर वे बुजुर्ग जो हाइपरटेंशन, डायबिटीज या कोलेस्ट्रॉल जैसी समस्याओं से पहले से ग्रस्त होते हैं। इसके अलावा यह समस्या उन बुजुर्गों में भी ज्यादा होती है जो धूम्रपान के आदी होते हैं। लेकिन कोविड से ग्रस्त युवा मरीजों में भी स्ट्रोक के केस पाए गए। वैसे ये केस ज्यादातर इंग्लैंड, अमेरिका और चाइना में पाए गए, लेकिन भारत में भी ऐसे मामलों से इनकार नहीं किया जा सकता।

सबसे जरूरी है- लक्षणों की पहचान
स्ट्रोक के मामले में समय पर इसके लक्षणों की पहचान और उसका निदान जरूरी है। जबसे लॉकडाउन लगा है, तबसे अस्पतालों में निदान के लिए सही समय पर पहुंचने वाले मरीजों की संख्या बेहद कम हो गई है। आजकल यदि किसी परिवार में किसी सदस्य में स्ट्रोक के लक्षण नज़र आते हैं तो वे कोरोना के डर से मरीज को अस्पताल ले ही नहीं जाते हैं। ऐसे में मरीज का निदान देर से होने के कारण गोल्डन टाइम निकल जाता है।



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Corona patients may be at risk of brain stroke, fainting and also have muscle injury; Get medical advice as soon as symptoms of Kovid-19 appear.


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