लद्दाख की गालवन वैली में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच सोमवार रात हिंसक झड़प हुई। भारत के एक कर्नल और दो जवान शहीद हो गए। गालवन वैली कानाम लद्दाख के रहने वालेगुलाम रसूल गालवन के नाम पर रखा गया था। गुलाम ने 1899में लेह से ट्रैकिंग शुरू की थी और लद्दाख के कई भौगोलिक क्षेत्रों की खोज की।इसमें गालवन वैली और गालवन नदी भी शामिल थी। यह एक ऐतिहासिक घटना थीजब किसी नदी का किसी शख्स के नाम पर रखा गया। तस्वीरों में देखिए कैसे गालवनवैली अपनी खुद की कहानी बयां कर रही है।
'फॉरसेकिंग पैराडाइज' किताब के मुताबिक, एक्सप्लोरर गुलाम रसूल एक साल और तीन महीने की सेंट्रल एशिया और तिब्बत की कठिन यात्रा के बाद 1895 में लेह पहुंचे थे। उनके गांव का नाम था थिकसे। इनके पूर्वज कश्मीर कबीले से ताल्लुक रखते थे।
गुलाम रसूल ने अपनी यात्रा की पूरी कहानी और अनुभव को एक किताब की शक्ल दी। जिसका नाम था 'सर्वेंट ऑफ साहिब्स'। इस किताब की चर्चा इसलिए भी हुईथी क्योंकि गुलाम पढ़े-लिखे नहीं थे। इसके बाद वह यूरोप से आने वाले खोजकर्ताओं के लिए गुलाम सबसे विश्वसनीय सहायक बन गए।
गुलाम बेहद कम उम्र में एडवेंचर ट्रेवलर कहे जाने वाले सर फ्रांसिस यंगहसबैंड की कम्पनी में शामिल हुए। सर फ्रांसिस ने तिब्बत के पठार, सेंट्रल एशिया के पामिर पर्वत और रेगिस्तान की खोज की थी। इस तरह गुलाम की चीनी, अंग्रेजी और दूसरी भाषा पर पकड़ बननी शुरू हुई। इस दौरान उन्होंने टूट-फूटी अंग्रेजी के शब्दों में 'सर्वेंट ऑफ साहिब्स' किताब लिखी।इस किताब का शुरुआती हिस्सा ब्रिटिश एक्सप्लोरर सर फ्रांसिस यंगहसबैंड ने लिखा।
जम्मू-कश्मीर के पहले कमिश्नर सर वॉल्टर एस लॉरेंस अपनी किताब 'द वैली ऑफ कश्मीर' में लिखते हैं कि कश्मीरी भाषा में गालवन का मतलब है घोड़ों की देख-रेख करने वाला। माना जाता है कि इनके शरीर का रंग काला होता है और इनका कश्मीरी वंशजों से कोई ताल्लुक नहीं है। ये साक जनजाति से होते हैं। मुझे मालूम है, इस बात को साबित करने का मेरे पास कोई प्रमाण नहीं है।
गुलाम में मां की सुनाई कहानी किताब में लिखी : गुलाम अपनी किताब में लिखते हैं कि कई साल पहले, कश्मीर की वादियों में महाराजाओं का राज था। वहां का एक शख्स कुछ समय बाद डाकू बन गया। उसका नाम कारा गालवन था। कारा का मतलब होता है काला और गालवन का अर्थ है डाकू। कारा काफी चालाक था, वह सिर्फ अमीरों के घरों को लूटता था और पैसा गरीबों में बांट देता था। कश्मीर में अमीर लोगों ने गरीबों को कभी पैसे नहीं दिए। कुछ समय बाद कारा की गिरफ्तारी हुई। उसके घर वाले बाल्टिस्तान चले गए। जिसे अब गिलगित-बाल्टिस्तान कहा जाता है। बाद में कई गालवन चीन के शिंजियांग प्रांत वाले जिले यारकन्द में आ गए।
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