Saturday, October 31, 2020

10 साल में ब्रेस्ट कैंसर के मामले 30% तक बढ़े, ब्रेस्ट में ये बदलाव दिखें तो अलर्ट हो जाएं; शुरुआती स्टेज में इलाज आसान है

देश में पिछले 10 साल में कैंसर के मामले 30 फीसदी तक बढ़े हैं। हर साल अक्टूबर माह को ब्रेस्ट कैंसर अवेयरनेस मंथ के तौर पर मनाया जाता है। बावजूद इसके देश में 80 फीसदी महिलाएं डॉक्टर्स के पास कैंसर की तीसरी या चौथी स्टेज में पहुंचती हैं।

मेदांता की ब्रेस्ट कैंसर सविसेज की डायरेक्टर डॉ. कंचन कौर कहती हैं, भारत में ज्यादातर महिलाएं मानती हैं कि परिवार में ब्रेस्ट कैंसर कभी किसी को नहीं हुआ, इसलिए मुझे भी नहीं हो सकता। यह गलत धारणा है। ब्रेस्ट कैंसर के 90 फीसदी मामले ऐसी महिलाओं में सामने आते हैं, जिनके घर में कभी किसी को कैंसर नहीं हुआ। ब्रेस्ट कैंसर से कैसे बचें और किन बातों का ध्यान रखें, बता रही हैं डॉ. कंचन कौर...

ब्रेस्ट में ये बदलाव दिखने पर अलर्ट हो जाएं?

स्तन में गांठ, स्तन के निप्पल के आकार या स्किन में बदलाव, स्तन का सख्त होना, यहां पर किसी घाव का लम्बे समय ठीक न होना और निप्पल से रक्त या लिक्विड निकलना इसके लक्षण हैं। इसके अलावा स्तन में दर्द, बाहों के नीचे भी गांठ होना भी स्तन कैंसर के संकेत हैं। हालांकि स्तन में हर गांठ कैंसर नहीं होती, लेकिन इसकी जांच करवाना बेहद जरूरी है, ताकि आगे चलकर कैंसर का रूप ना ले। इस रोग से डरे नहीं क्योंकि इसका इलाज संभव है। पहली स्टेज में ही अगर इस रोग की पहचान हो जाती है तो इसे जड़ से खत्म किया जा सकता है।

क्यों होता है यह कैंसर

बढ़ती उम्र के अलावा हार्मोनल थैरेपी में दी जाने वाली दवाएं, अधिक उम्र में शादी करने के साथ ही अधिक उम्र में बेबी प्लान करना, खराब जीवनशैली और अल्कोहल लेने से यह कैंसर हो सकता है। स्तन कैंसर का कारण आनुवांशिक भी हो सकता है, लेकिन ऐसा सिर्फ 5-10 प्रतिशत महिलाओं में ही पाया जाता है।

किस उम्र में यह कैंसर होने का खतरा ज्यादा?

आमतौर पर 40 की उम्र के बाद इसकी आशंका बढ़ जाती है। इसके अलावा फैमिली हिस्ट्री है तो भी ब्रेस्ट कैंसर हो सकता है।

कैसे पता लगाएं कैंसर हुआ है या नहीं?

इसके लक्षण शुरुआत में दिखाई नहीं देते। लेकिन सेल्फ एग्जामिनेशन और मैमोग्राम जांच करवाकर इसका पता लगा सकते हैं। अलग-अलग महिलाओं में स्तन कैंसर के लक्षण भी अलग पाए जाते हैं। इसलिए कोई भी लक्षण दिखने पर डॉक्टरी सलाह जरूर लें।

7 गलतियां जो बढ़ाती हैं ब्रेस्ट कैंसर का खतरा

1. बढ़ता मोटापा

महिलाओं का बढ़ता मोटापा ब्रेस्ट कैंसर का कारण बनता है। खासतौर पर मेनोपॉज के बाद महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर होने का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ने लगता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बॉडी में ज्यादा हार्मोन्स फैट टिशु से निकलते हैं। बहुत अधिक फैट जब बॉडी पर जमा होने लगता है तो एस्ट्रोजेन का लेवल कम होता है और कैंसर का खतरा बढ़ता है।

2. ब्रेस्ट फीडिंग न कराने पर

अधिकांश महिलाओं का मानना है कि ब्रेस्टफीडिंग कराने से उनका फिगर खराब हो जाता है। इसलिए वे इसे अवॉयड करती हैं। ऐसी महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर का खतरा अधिक रहता है। दरअसल ब्रेस्टफीडिंग कराने से हार्मोंस बैलेंस में रहते हैं, जबकि जो महिलाएं ब्रेस्टफीडिंग नहीं कराती उनमें हार्मोंस का संतुलन बिगड़ता है और ब्रेस्ट कैंसर की आशंका बढ़ती है।

3.खानपान का ध्यान न रखने पर

जो महिलाएं अपने खानपान का ध्यान नहीं रखती हैं, उनमें ब्रेस्ट ट्यूमर का खतरा अधिक होता है। ज्यादा मीठा, केचअप, स्पोर्टस ड्रिंक, चॉकलेट मिल्क सहित शुगर युक्त फूड ब्रेस्ट कैंसर की कोशिकाओं को बढ़ाने में मदद करते हैं। इसी तरह प्रोसेस्ड फूड में मिलने वाला फैट ब्रेस्ट कैंसर की वजह बन सकता है। इसलिए इस तरह की डाइट अवॉयड करें। फास्ट फूड जैसे बर्गर, फ्रेंच फ्राइज, चाट, रेड मीट ब्रेस्ट कैंसर के खतरे को बढ़ाते हैं।

4. लम्बे समय से गर्भनिरोधक दवाएं लेने पर

अगर आप लंबे समय तक गर्भनिरोधक दवाएं खाती हैं तो इससे भी ब्रेस्ट कैंसर का खतरा 50 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। इन दवाओं में एस्ट्रोजन की मात्रा अधिक होती है जो शरीर में जरूरत से ज्यादा हो जाए तो ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ता है। इतना ही नहीं बल्कि बर्थ कंट्रोल इंजेक्शन व अन्य तरीके भी ब्रेस्ट कैंसर के खतरे को बढ़ातेहैं। इसलिए इनके लंबे समय तक उपयोग से बचें।

5. प्लास्टिक की चीजों का अधिक इस्तेमाल

घर में, सफर के दौरान या मीटिंग में प्लास्टिक की बोतल में पानी पीना या इससे बने बर्तनों में खाना खाने से ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ता है। दरअसल प्लास्टिक कंटेनर्स में इंडोक्राइन डिसरप्टिंग कैमिकल जैसा रसायन होता है जो शरीर के हार्मोनल सिस्टम को नुकसान पहुंचाता है।

6. एक्सरसाइज से दूरी बनाना

जो महिलाएं एक्सरसाइज करने से बचती हैं, उनमें ब्रेस्ट कैंसर का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। मेनोपॉज के बाद तो महिलाओं के लिए एक्सरसाइज करना बहुत जरूरी होता है। अगर आपको हेवी एक्सरसाइज पसंद न हो तो रोज आधे घंटे की सैर कर सकती हैं। आप चाहें तो बागवानी या तैराकी जैसे विकल्प चुनकर भी अपनी फिटनेस को मेंटेन कर सकती हैं। इससे पेट और कमर की चर्बी कम करने में भी मदद मिलती है।

7. शराब और स्मोकिंग की लत

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार शराब पीने, स्मोकिंग से स्तन के कैंसर का खतरा 8% तक बढ़ता है। शराब महिलाओं के सेक्स हार्मोन का स्तर बढ़ाती है। जर्नल ऑफ दी अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन की रिपोर्ट के मुताबिक शराब से ब्रेस्ट ट्यूमर की ग्रोथ बढ़ती है।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Breast cancer cases increased by 30% in 10 years, if you see these changes in the breast, then be alert because the treatment is easy in the stage.


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/35NZddq
via

असम में 75 हजार रु. किलो बिकने वाली गोल्ड चायपत्ती की कहानी, जानिए हर साल यह क्यों रिकॉर्ड बनाती है

असम में खास तरह की दुर्लभ प्रजाति वाली चायपत्ती ने फिर रिकॉर्ड बनाया है। मनोहारी गोल्ड टी खास तरह की चायपत्ती है, जिसे गुवाहाटी चाय नीलामी केंद्र पर 75 हजार रुपए प्रति किलो की कीमत पर बेचा गया है। यह असम में इस साल दर्ज चाय की सबसे ऊंची कीमत है।

इस चायपत्ती की पैदावार करने वाले मनोहारी टी स्टेट का कहना है, इस साल इसकी केवल 2.5 किलो पैदावार हुई। इसमें से 1.2 किलो की नीलामी हुई है। महामारी के बीच चाय की इतनी कीमत मिलना इंडस्ट्री के लिए राहत की बात है।

ये तो हुई नीलामी की बात अब ये भी समझ लीजिए कि यह चायपत्ती इतनी खास क्यों है...

चाय को तोड़ने का तरीका भी है अलग
मनोहारी टी स्टेट के डायरेक्टर राजन लोहिया कहते हैं, ये खास तरह की चायपत्ती होती है जिसे सुबह 4 से 6 बजे के बीच सूरज की किरणें जमीन पर पड़ने से पहले तोड़ा जाता है। इसका रंग हल्का मटमैला पीला होता है। यह चायपत्ती अपनी खास तरह की खुशबू के लिए जानी जाती है। इसमें कई तरह के एंटीऑक्सीडेंट्स भी पाए जाते हैं।

ऐसे तैयार होती है
पिछले 63 साल से असम की टी-इंडस्ट्री से जुड़े चंद्रकांत पराशर कहते हैं, इस खास तरह की चायपत्ती की पैदावार 30 एकड़ में की जाती है। पौधों से पत्तियों के साथ कलियों को तोड़ा जाता है। फिर इन्हें फर्मेंटेशन की प्रोसेस से गुजारा जाता है। फर्मेंटेशन के दौरान इनका रंग ग्रीन से बदलकर ब्राउन हो जाता है। बाद में सुखाने पर इसका रंग गोल्डन हो जाता है। इसके बाद इसे पत्तियों से अलग किया जाता है।

1 हजार करोड़ के घाटे से जूझ रहा चाय का कारोबार
डेक्कन हेराल्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, लॉकडाउन, मानसून और बाढ़ का सीधा असर असम की चायपत्ती की पैदावार पर हुआ है। टी-इंडस्ट्री इस साल 1 हजार करोड़ के घाटे से जूझ रही है। लेकिन हाल ही में नीलामी ने कुछ राहत पहुंचाई है।

2018 में मनोहारी गोल्ड टी की बोली 39,001 रुपए प्रति किलो थी। वहीं, 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 50 हजार रुपए प्रति किलो तक पहुंचा। इस साल यह 75 हजार रुपए प्रति किलो में बिकी।

राजन लोहिया कहते हैं, ढाई किलो में से 1.2 किलो की नीलामी हुई है। बची हुई चायपत्ती यहां के नीलामी केंद्र पर मिलेगी। इसे गुवाहाटी की विष्णु टी कम्पनी ने खरीदा है। यह कम्पनी ई-कॉमर्स वेबसाइट के जरिए दुनियाभर तक पहुंचाते हैं।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Why manohari gold tea is so speical this Rare Assam tea sells for Rs 75000 a kg know what's special


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/37W7Y83
via

Friday, October 30, 2020

वर्कआउट के बाद चक्कर, उबकाई, पेट और सीने के दर्द से बचना है तो पानी कब-कितना पिएं एक्सपर्ट से समझें

फिट रहना जितना जरूरी है उतना ही जरूरी है, वर्कआउट के दौरान पानी पीने का ध्यान रखना। वर्कआउट से पहले, उस दौरान और बाद में कितना पानी पिएं, इसे समझना जरूरी है वरना इसका बुरा असर शरीर पर पड़ेगा। अधिक पानी पीने पर पेट दर्द और उबकाई हो सकती है और पानी कम लेते हैं तो चक्कर आ सकते हैं। साओल हार्ट सेंटर, नई दिल्ली के डायरेक्टर डॉ. बिमल छाजेड़ बता रहे हैं वर्कआउट से पहले, एक्सरसाइज के दौरान और वर्कआउट के बाद कब-कितना पानी पिएं।

वर्कआउट से पहले : पानी उतना पिएं कि गला तर हो जाए
कुछ लोग वर्कआउट शुरू करने से तुरंत पहले पानी पीते हैं ताकि वर्कआउट के दौरान पानी की ज़रूरत न महसूस हो। वर्कआउट के लिए बॉडी का हाइड्रेटेड रहना बेशक ज़रूरी है लेकिन ध्यान रहे कि इसके तुरंत पहले पानी पीने से स्वास्थ्य बिगड़ सकता है। सही मायनों में पानी वर्कआउट से आधा घंटा पहले पीना चाहिए। एक साथ अधिक पानी न पिएं क्योंकि वर्कआउट करने में परेशानी आ सकती है। केवल गला तर करने लायक़ ही पानी लें।

वर्कआउट के बाद : 25 मिनट बाद ही पानी पिएं
वर्कआउट से पसीना बहता है और सांस फूलती है, जिसके कारण गला भी सूखता है। शरीर गर्म हो जाता है। ऐसे में उसके तुरंत बाद पानी पीने से मांसपेशियों को झटका लग सकता है जिससे सीने में दर्द, पेट दर्द, उल्टी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए व्यायाम के 20-25 मिनट बाद ही पानी पिएं। तब तक शरीर का तापमान सामान्य हो चुका होता है।

वर्कआउट के दौरान : कुछ-कुछ देर में 2 से 3 चम्मच के बराबर पानी पिएं
अगर आप वर्कआउट (घर या जिम कहीं भी) कर रहे हैं तो उस दौरान शरीर से पसीना बहुत ज़्यादा निकलेगा, जिसके कारण शरीर में डिहाइड्रेशन होने का डर रहता है। पसीना निकलने के कारण शरीर पानी की मांग करता है और गला सूखने लगता है। ऐसे में कुछ-कुछ देर में केवल 2-3 चम्मच के बराबर पानी पिएं जिससे गले का सूखापन, चक्कर और डिहाइड्रेशन की समस्या न हो।

बस इस बात का ध्यान रखें कि वर्कआउट करते-करते पानी बिल्कुल नहीं पीना है। इससे तबियत बिगड़ सकती है और उल्टी हो सकती है। इसलिए पहले आराम से बैठ जाएं, लंबी सांसें भरें, फिर पानी पिएं और 2-3 मिनट रुककर ही वर्कआउट दोबारा शुरू करें।

वहीं, अगर आप योग करते हैं या दौड़ते-टहलते हैं तो इस दौरान पानी बिल्कुल न पिएं। अगर वर्कआउट से आधा घंटा पहले पानी पिया है तो हल्की एक्सरसाइज या योग में पानी पीने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अगर दौड़ने या टहलने के दौरान पानी पीते हैं तो पेट दर्द, जी मिचलाना और उल्टी की समस्या हो सकती है। इसके अलावा पानी पीकर ज़्यादा देर दौड़ और चल नहीं पाएंगे क्योंकि पेट भरा होने के कारण थकान जल्दी महसूस होती है।

एक्सरसाइज से पहले खाना है या नहीं, इसे समझें
वर्कआउट के दौरान बॉडी पॉश्चर बार-बार बदलता है जिससे शरीर के पुर्ज़े पूरी तरह से हिल जाते हैं। अगर कुछ खाकर तुरंत एक्सरसाइज करते हैं, तो इससे पेट दर्द, उबकाई, आलस और आंतों की अकड़न की शिक़ायत हो सकती है। यहां तक कि उल्टी भी हो सकती है। खाना खाने के 3-4 घंटे बाद ही व्यायाम करना चाहिए। हालांकि व्यायाम सुबह के समय ख़ाली पेट ही करें, वही सही है।

एक्सरसाइज के आधे घंटे बाद नारियल पानी ले सकते हैं
वर्कआउट के आधे घंटे बाद जूस या नारियल पानी पी सकते हैं। इसके आधा घंटा बाद ही कुछ खाएं। एक्सरसाइज के तुरंत बाद कुछ खाने से पेट में गैस और एसिडिटी हो सकती है।

वर्कआउट के बाद नहाना कब है, यह भी जानना जरूरी
एक्सरसाइज के बाद शरीर गर्म हो जाता है। इसके तुरंत बाद नहाने से बुख़ार, ज़ुकाम, सिर दर्द, कमज़ोरी होने का ख़तरा रहता है। इसलिए वर्कआउट के बाद 15-20 स्ट्रेचिंग करें और फिर रिलैक्स करें ताकि बॉडी टेम्प्रेचर और ब्लड प्रेशर सामान्य हो जाएं।

ये भी पढ़ें

75% भारतीय मांसपेशियों के दर्द से जूझ रहे, हर 40 मिनट में काम के दौरान 30 सेकंड का ब्रेक लें; इन 3 एक्सरसाइज से रहें फिट

कंधों का दर्द दूर करने वाले वर्कआउट, पेंडुलम और बैंड स्ट्रेचिंग से अकड़न और दर्द से मिलेगी राहत

एक मिनट के बर्पी वर्कआउट का शरीर के हर हिस्से पर पड़ता है असर, रोजाना करें 5 रिपीटिशन; घटेगी चर्बी



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
know when to drink water before workout during workout and after workout


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3mIafYJ
via

डॉक्टर्स ने मरीज की आंख से निकाला 20 जिंदा कीड़ों का एक गुच्छा, एक साल से परेशान था मरीज

चीन में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। 60 साल के एक मरीज की आंखों में कीड़ों का गुच्छा मिला है। ये सभी जिंदा थे। डॉक्टर्स ने आंख की पलक से 20 जिंदा कीड़े निकाले। कुछ महीने पहले आंखों में अजीब सी हरकत महसूस होने पर मरीज डॉक्टर्स से सलाह लेने पहुंचा था। यहां सर्जरी के दौरान चौंकाने वाली बात सामने आई।

मरीज को थकान महसूस हो रही थी

चीनी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये जिंदा कीड़े मरीज की आंख में करीब सालभर से थे। मरीज को आंखों में अजीब सा महसूस होता था। उसे लगता था कि थकान के कारण ऐसा हो रहा है। डॉक्टर्स ने आंखों की जांच की तो सामने आया कि दाईं पलक के नीचे छोटे-छोटे कीड़ों का एक गुच्छा मिला।

आउटडोर वर्कआउट के दौरान पहुंचे कीड़े
कीड़ों को निकालने वाले डॉक्टर्स का मानना है कि जो कीड़े पलकों में मिले हैं उनमें लार्वा भी थे। मरीज का नाम वैन है और उसे स्पोर्ट्स एक्टविटी का काफी शौक है। ये कीड़े मरीज की आंखों में तब पहुंचे जब वह आउटडोर वर्कआउट करता था। धीरे-धीरे मरीज की हालत बिगड़ती गई और बर्दाश्त से बाहर होने पर वह पूर्वी चीन के सूझोयू म्यूनिसिपल हॉस्पिटल पहुंचा।

मरीज ने डॉक्टर से कहा, वह पिछले एक साल से आंखें में कुछ अटका हुआ सा महसूस कर रहा है।

मक्खियों के जरिए कीड़े आंखों तक पहुंचे
इलाज करने वाले डॉ. शी टिंग का कहना है, मरीज को मक्खियों ने काटा होगा। मक्खियों के जरिए कीड़े आंखों में पहुंचे। सर्जरी सफल रही है और कीड़े निकलने के बाद मरीज रिकवर हो रहा है।

ये कीड़े थेलेजिया कैलीपेडा प्रजाति के हैं। जो आंखों में संक्रमण फैलाने के लिए जाने जाते हैं। आमतौर पर ये परजीवी कीड़े कुत्ते और बिल्लियों में पाए जाते हैं।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Chinese man has nearly 20 live worms pulled out from his EYE after the parasites lived inside him for a year 


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3mCZLcV
via

एक साल में 33 हजार किमी. का चक्कर लगाकर लौटी चिड़िया, अब इन्हें रेडियो टैग से बचाने की तैयारी; जानिए कैसे

एक साल में 33 हजार किलोमीटर का चक्कर लगाकर एक चिड़िया मणिपुर वापस लौटी है। इस चिड़िया का नाम चियूलान है। नवम्बर 2019 में ऐसी पांच चिड़िया मणिपुर के तमेंगलोंग जिले से छोड़ी गई थीं। इनमें से तीन की मौत हो गई।

लोकेशन की मॉनिटरिंग करने के लिए इनमें रेडियो-टैग लगाया गया था। चियूलान के अलावा एक और चिड़िया इरांग भी हाल ही में वापस लौटी। इरांग ने 29 हजार किलोमीटर की दूरी पूरी की है। पिछले साल इनके उड़ान भरने से पहले मणिपुर के वन विभाग ने भारतीय वन्यजीव संस्थान के साथ मिलकर पांच चिड़ियों में रेडियो टैग लगाया था।

4 महीने भारत में रहते हैं

कबूतर के आकार की आमूर फॉल्कंस एक प्रवासी पक्षी है। यह साइबेरिया का रहने वाली है। यह चिड़िया सर्दियों से पहले भारत के लिए उड़ान भरती है और उत्तर-पूर्व भारत में ये करीब दो महीने तक रहती है। इसके बाद ये दक्षिण अफ्रीका के लिए उड़ान भरती है। वहां, ये करीब 4 महीने रहती है।

क्यों शुरू हुई महिम और कैसे काम करता है रेडियो टैग
प्रवासी पक्षियों की घटती संख्या को रोकने के लिए पर्यावरण मंत्रालय ने यह मुहिम शुरू की थी। इसमें आमूर फॉल्कंस को खासतौर पर शामिल किया गया है। पक्षियों में लगा रेडियो टैग यह बताता है कि किस रास्ते से उसने सफर तय किया। वह कहां पर रुका। ये सभी बातें पक्षियों को संरक्षित करने में मदद करती हैं।

ये चिड़िया क्यों होती है माइग्रेट
तमेंगलोंग के डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर केएच हिटलर के मुताबिक, हमें इस बात की खुशी है कि दो चिड़िया चियूलॉन और इरांग 361 दिन बाद पूरा एक चक्कर लगाकर लौट आई हैं। चियूलॉन 26 अक्टूबर को लौटी थी और इयांग 28 अक्टूबर को वापस आई।

हिटलर कहते हैं, इनके वापस लौटने पर हमें कई नई जानकारियां मिल रही हैं। जैसे, इन्हें सर्दियों से दिक्कत है, इसलिए ये सर्दियों से पहले साइबेरिया से उड़कर भारत आती हैं।

खाने के लिए इनका शिकार हुआ और संख्या घटती गई

हिटलर कहते हैं, इरांग जब तमेंगलोंग से 200 किलोमीटर दूर चंदेल में लौटी थी तो हमारा उससे कनेक्शन टूट गया था लेकिन बाद में यह तमेंगलोंग के पूचिंग में पहुंची। इन्हें नवम्बर 2019 को छोड़ा गया था।

आमूर फॉल्कंस का शिकार खाने के लिए किया जाता था लेकिन अब इन्हें संरक्षित किया जा रहा है। मणिपुर और नगालैंड में इसका खासा रखा जा रहा है।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
चिड़िया की पीठ पर लगा रेडियो टैग इनके सफर से जुड़ी कई जानकारियां देता है और संरक्षित करने में मदद करता है।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3kHq3u3
via

कैसे बनती है चांदनी और चंद्रमा की रोशनी में आज क्यों खीर रखकर खाते है, एक्सपर्ट से समझें इसका विज्ञान

आज शरद पूर्णिमा है। चंद्रमा बच्चे के लिए चंदा मामा, विज्ञान के लिए धरती का एकमात्र उपग्रह और मान्यताओं में अमृत वर्षा करने वाला देवता कहा गया है। ग्रंथों के मुताबिक, शरद पूर्णिमा की रात में आकाश से अमृत बरसता है। सूरज की झुलसाने वाली गर्मी के बाद पूर्णिमा की रात में पूर्ण चंद्र की किरणें शीतलता बरसाती हैं, जो तन-मन की गर्मी कम हो जाती है।

शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी संपूर्ण 16 कलाओं से परिपूर्ण रहता है। पूर्णिमा तिथि का स्वामी भी स्वयं चंद्रमा ही है, इसलिए उसकी किरणों से इस रात अमृत की वर्षा होने की मान्यता है। आयुर्वेद के अनुसार रातभर इसकी रोशनी में रखी खीर खाने से रोग दूर होते हैं।

चांद की रोशनी से हमारी सेहत कैसे प्रभावित होती है, यही समझने के लिए दैनिक भास्कर ऐप ने विशेषज्ञों से बात की। इंटर-यूनिवर्सिटी ऑफ एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स के प्रोफेसर्स और आयुर्वेद विशेषज्ञ से जानिए इसकी पूरी कहानी...

कैसे बनती है चांदनी

एस्ट्रोनॉमी विशेषज्ञ प्रो. श्याम टंडन के मुताबिक, बारिश के बाद पहली पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के पर्व के रूप में मनाया जाता है। बारिश का दौर खत्म होने के कारण हवा साफ होती है यही सबसे बड़ा कारण है। इसके बाद से मौसम में ठंडक आती है और ओस के साथ कोहरा पड़ना शुरू हो जाता है।

एसोसिएट प्रोफेसर श्रुद मोरे के मुताबिक, चांद अंधेरे में चमकता है, लेकिन चांद की अपनी कोई चमक नहीं होती। सूर्य की किरणें जब चांद पर पड़ती हैं, तो ये परावर्तित होती हैं और चांद चमकता हुआ नजर आता है। इसकी रोशनी जमीन पर चांदनी के रूप में गिरती है।

एस्ट्रोनॉमी विशेषज्ञ प्रो. समीर धुर्डे कहते हैं कि धरती पर इन किरणों की तीव्रता बेहद कम होने के कारण यह किसी तरह से कोई नुकसान नहीं पहुंचातीं। प्राचीनकाल से ही पूर्णिमा का लोगों के जीवन में काफी महत्व रहा है, क्योंकि दूसरी रातों के मुकाबले इस दिन चंद्रमा, आम दिनों की तुलना में ज्यादा चांदनी बिखेरता है। इसलिए पूर्णिमा की चांदनी का विशेष महत्व होता है।

शरद पूर्णिमा को कोजागर पूर्णिमा और रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन रखे जाने वाले व्रत को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। इस दिन खीर का महत्व इसलिए भी है कि यह दूध से बनी होती है और दूध को चंद्रमा का प्रतीक माना गया है। चंद्रमा मन का प्रतिनिधित्व करता है।

प्रो. धुर्डे कहते हैं, शरद पूर्णिमा को चांद की रोशनी में दूध रखने की परंपरा है। लोग व्रत के अंत में रोशनी में रखा दूध या खीर लेते हैं, लेकिन विज्ञान के मुताबिक, रोशनी से दूध पर कोई असर नहीं देखा गया है। धरती पर दिन-रात की स्थिति अलग-अलग होने से चांद का स्वरूप भी अलग-अलग दिख सकता है। कई बार चांद के चारों ओर इंद्रधनुष की तरह रिंग भी दिखती हैं, इसे 'हेलो रिंग' कहते हैं लेकिन यह किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचातीं।

चांद की रोशनी अधिक होने के कारण असर ज्यादा

नेचुरोपैथी और आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. किरण गुप्ता कहती हैं कि शरद पूर्णिमा की शुरुआत ही वर्षा ऋतु के अंत में होती है। इस दिन चांद धरती के सबसे करीब होता है, रोशनी सबसे ज्यादा होने के कारण इनका असर भी अधिक होता है। इस दौरान चांद की किरणें जब खीर पर पड़ती हैं तो उस पर भी इसका असर होता है।

रातभर चांदनी में रखी हुई खीर शरीर और मन को ठंडा रखती है। ग्रीष्म ऋतु की गर्मी को शांत करती और शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाती है। यह पेट को ठंडक पहुंचाती है। श्वांस के रोगियों को इससे फायदा होता है साथ ही आंखों रोशनी भी बेहतर होती है।

डॉ. किरण यह भी कहती हैं कि चांद की रोशनी में कई रोगों का इलाज करने की खासियत होती है। चंद्रमा की रोशनी इंसान के पित्त दोष को कम करती है। एक्जिमा, गुस्सा, हाई बीपी, सूजन और शरीर से दुर्गंध जैसी समस्या होने पर चांद की रोशनी का सकारात्मक असर होता है। सुबह की सूरज की किरणें और चांद की रोशनी शरीर पर सकारात्मक असर छोड़ती हैं।

खीर में ड्राय फ्रूट डालें, ये इम्युनिटी बढ़ाते हैं

डॉ. किरण कहती हैं कि शरद पूर्णिमा को खीर को रात भर चांद की रोशनी में रखने के बाद ही खाना चाहिए। इसे चलनी से ढंक भी सकते हैं। खीर में कुछ चीजों का होना जरूरी है। जैसे दालचीनी, काली मिर्च, घिसा हुआ नारियल, किशमिश, छुहारा। रातभर इसे चांदनी में रखने से इसकी तासीर बदलती है और रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है।

मान्यतों के अनुसार खीर को संभव हो तो चांदी के बर्तन में बनाना चाहिए। चांदी में रोग प्रतिरोधकता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं। हल्दी का उपयोग निषिद्ध है। प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए। रात्रि 10 से 12 बजे तक का समय उपयुक्त रहता है।

दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व चंद्रमा की किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया गया है।

  • मान्यता है कि इस दिन आसमान से अमृत बरसता है क्योंकि चांद की रोशनी में औषधीय गुण होते हैं जिसमें कई असाध्य रोगों को दूर करने की क्षमता होती है।

  • एक मान्यता यह भी है कि इस दिन ही मां लक्ष्‍मी का जन्‍म हुआ था। इस वजह से देश के कई हिस्‍सों में इस दिन मां लक्ष्‍मी की पूजा की जाती है, जिसे कोजागरी लक्ष्‍मी पूजा के नाम से जाना जाता है।

  • ऐसा मानते हैं कि इस दिन देवी लक्ष्मी अपनी सवारी उल्लू पर बैठकर भगवान विष्णु के साथ पृथ्वी का भ्रमण करने आती हैं। इसलिए आसमान में चंद्रमा भी सोलह कलाओं से चमकता है।

  • शरद पूर्णिमा की चांदनी रात में जो भगवान विष्णु सहित देवी लक्ष्मी और उनके वाहन की पूजा करते हैं, उनकी मनोकामना पूरी होती है।

  • शरद पूर्णिमा की रात्रि में जागने की परंपरा भी है। यह पूर्णिमा जागृति पूर्णिमा के नाम से भी जानी जाती है।

  • भारत के कुछ हिस्सों में शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन कुंवारी लड़कियां सुयोग्‍य वर के लिए भगवान कार्तिकेय की पूजा करती हैं। इस दिन लड़कियां सुबह उठकर स्‍नान करने के बाद सूर्य को भोग लगाती हैं और दिन भर व्रत रखती हैं। शाम के समय चंद्रमा की पूजा करने के बाद अपना व्रत खोलती हैं।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
sharad purnima 2020 why kheer puts in moonlight significant Purnimas or Full Moon nights


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3jHbbdJ
via

Thursday, October 29, 2020

WHO ने कहा- कोरोना महामारी नहीं, संक्रमितों को आइसोलेशन और क्वारेंटाइन होने की जरूरत भी नहीं? जानें सच

क्या हो रहा है वायरल : दावा किया जा रहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ( WHO) ने पहले कोरोना वायरस को महामारी बताकर अब अपनी ही बात से यू-टर्न ले लिया है।

वायरल मैसेज के साथ एक ही कार्यक्रम के अलग-अलग वीडियो भी वायरल हो रहे हैं। देखने पर ये एक कॉन्फ्रेंस लगती है, जिसमें वक्ता दावा कर रहे हैं कि कोरोना वायरस महामारी नहीं है। सोशल मीडिया पर दावा किया जा रहा है कि ये लोग WHO के पदाधिकारी हैं।

##

वीडियो के साथ मैसेज वायरल हो रहा है - Breaking news: WHO has completely taken a U-turn and now says that Corona patient neither needs to be isolated, nor quarantined, nor needs social Distancing, and it cannot even transmit from one patient to another। मैसेज का हिंदी अनुवाद है - WHO ने पूरी तरह से यू-टर्न ले लिया है। अब WHO का कहना है कि कोरोना रोगी को आईसोलेट या क्वारेंटाइन होने की जरूरत नहीं है। सोशल डिस्टेंसिंग की भी अब कोई जरूरत नहीं है। कोरोना एक मरीज से दूसरे मरीज को संक्रमित भी नहीं करता।

##

और सच क्या है ?

  • इंटरनेट पर हमें ऐसी कोई हालिया खबर नहीं मिली। जिससे पुष्टि होती हो कि WHO ने कोरोना को अब महामारी मानने से इंकार कर दिया है। संगठन की ऑफिशियल वेबसाइट के होमपेज पर अभी भी कोविड-19 के नीचे Pandemic (महामारी) लिखा हुआ है।
  • WHO की वेबसाइट पर अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के लिए गाइडलाइन है। यहां आइसोलेशन और क्वारेंटाइन होने पर भी जोर दिया गया है। इस तरह वायरल मैसेज का ये दावा भी झूठा साबित होता है कि WHO ने अब आईसोलेशन, क्वारेंटाइन को गैर जरूरी बताया है।
  • वायरल वीडियो के स्क्रीनशॉट को गूगल पर रिवर्स सर्च करने पर सर्च रिजल्ट में हमारे सामने World Doctor Alliance की वेबसाइट आई। वेबसाइट पर संगठन के सदस्य डॉक्टरों के नाम और फोटो भी हैं। वायरल वीडियो में से एक वक्ता की फोटो हमें यहां मिली, जिनका नाम Prof. Dolores Cahil है।
  • World Doctor Alliance की वेबसाइट पर हमें वह वीडियो भी मिल गया। जिसमें दावा किया जा रहा है कि कोरोना महामारी नहीं है। इसी वीडियो को WHO का बताया जा रहा है।
  • वेबसाइट पर दिए गए संगठन के परिचय से ही पता चल रहा है कि world doctor alliance एक स्वतंत्र संगठन है। ये WHO से मान्यता प्राप्त नहीं है। इसी संगठन के सदस्य डॉक्टरों के बयान को WHO का बयान बताकर लोगों को भ्रमित किया जा रहा है।


Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Fact Check: WHO said- not corona epidemic, the infected do not even need to be isolated and quarantine? Know the truth of the viral message


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3oBs798
via

घर में लगाएं पिप्पली, अश्वगंधा और गिलोय जैसे पौधे ये डेंगू-मलेरिया से बचाएंगे और हृदय रोगों का खतरा घटाएंगे

आयुर्वेद में ऐसे कई पौधे बताए गए हैं जिनकी पत्तियों और जड़ों से कई तरह की बीमारियों का इलाज किया जाता है। इनमें से कुछ पौधों को घर के गार्डन में उगा सकते हैं। इन्हें लगाना भी आसान है और अधिक देखभाल की जरूरत भी नहीं होती। बागवानी विशेषज्ञ आशीष कुमार बता रहे हैं, घर के बगीचे में औषधीय पौधे कैसे लगाएं, इन्हें कैसे इस्तेमाल करें और ये कितनी तरह से फायदा पहुंचाते हैं...

ब्राह्मी

ब्राह्मी : दिमाग तेज करती है और बच्चों में एकाग्रता बढ़ाती है

  • कैसे लगाएं : इसका पौधा जमीन पर फैलकर बड़ा होता है, यह आसानी से किसी भी मिट्टी में लग जाता है।
  • कैसे मिलेगा फायदा : इसकी 4-5 पत्तियों को सुबह खाली पेट चबाकर, पानी पिएं। रस निकालकर भी ले सकते हैं। इसकी तासीर ठंडी होती है इसलिए सर्दी में पत्तियों के रस को काली मिर्च के साथ लें।
  • फायदे : ब्राह्मी दिमाग के लिए अधिक फायदेमंद है। बच्चों में एकाग्रता की कमी और बड़ी उम्र में भूलने की बीमारी में इसकी पत्तियों को चबाकर खाते हैं तो फायदा होता है।
गिलोय

गिलोय : डेंगू-चिकनगुनिया के मरीजों के लिए फायदेमंद

  • कैसे लगाएं : गिलोय बेल है.जो कटिंग से हर तरह की मिट्टी में लग जाती है।
  • कैसे मिलेगा फायदा : गिलोय बेल की डालियां कूटकर पानी में उबालकर पी सकते हैं। जिन्हें डायबिटीज नहीं है, वे इसमें थोड़ा शहद डालकर भी पी सकते हैं।
  • फायदे : गिलोय रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाने वाली औषधि है। ऐसे लोग जिन्हें बार-बार जुकाम होता है, उनके लिए फायदेमंद है। सांस के रोग, आर्थराइटिस, डेंगू या चिकनगुनिया, मधुमेह में फायदा मिलता है।
कालमेघ

कालमेघ : यह कैंसर और संक्रमण से बचाता है
कैसे लगाएं : यह आसानी से बीज या कटिंग से गमले या क्यारी में लग जाता है।
कैसे मिलेगा फायदा : बुखार और खराश होने पर इसकी पत्तियों की चाय या जूस बनाकर पी सकते हैं लेकिन ध्यान रहे कि यह नीम से सौ गुना अधिक कड़वा होता है, इसलिए इसे 'किंग ऑफ बिटर' के नाम से भी जानते हैं।
फायदे : यह संक्रमण, बैक्टीरिया, कैंसर और सूजन से बचाता है। डायबिटीज के रोगियों के लिए भी यह फायदेमंद है। इसीलिए इसको कोविड-19 संक्रमण से लड़ने में मददगार भी कहा जा रहा है। दवाइयों में इसके प्रयोग भी किए जा रहे हैं। यह हैजा, दमा, ज्वर, मधुमेह, हाई ब्लड प्रेशर, खांसी, गले में छाले और पाइल्स में फायदेमंद है।

पिप्पली

पिप्पली : यह हृदय रोगियों और पेट की समस्याओं में फायदेमंद

  • कैसे लगाएं : पिप्पली का पौधा कटिंग या बीज रोप करके लगा सकते हैं।
  • कैसे मिलेगा फायदा : पिप्पली को लॉन्ग पेपर भी कहते हैं। इसमें लम्बे फल लगते हैं, जिनका चूर्ण बनाकर सेवन किया जाता है। उसी तरह जड़ को सुखाकर भी इसका चूर्ण लिया जा सकता है।
  • फायदे : यह दिल के रोगों में फायदेमंद है। इसके फल के एक ग्राम चूर्ण को शहद के साथ खाली पेट लेने पर दिल के रोगों में राहत मिलती है। इसी तरह पेट के रोगों के लिए भी यह चूर्ण फायदेमंद है।
अश्वगंधा

अश्वगंधा : खांसी और अस्थमा में राहत देता है, इम्युनिटी बढ़ाता है
कैसे लगाएं : इसका पौधा बीज की मदद से गमले या क्यारी में लगाया जाता है।
कैसे मिलेगा फायदा : इसकी जड़ों का पाउडर खांसी और अस्थमा से राहत दिलाता है। पत्तियों की चाय बनाकर पी सकते हैं। दूध में एक चम्मच अश्वगंधा की जड़ का पाउडर मिलाकर पीने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
फायदे : अश्वगंधा शरीर की काम करने की क्षमता को बढ़ाता है। इसके पत्तों को रेग्युलर खाते हैं और प्राणायाम करते हैं तो मोटापा कम किया जा सकता है।

वन तुलसी

वन तुलसी : सिरदर्द, गले की खराश और बुखार में फायदा करती है

  • कैसे लगाएं : इसको बीज या कलम से बड़े गमले में लगा सकते हैं लेकिन क्यारी में बेहतर उगती है।
  • कैसे मिलेगा फायदा : इसकी पत्तियों से मसाला चाय बना सकते हैं। चाय बनाते वक्त इसकी कुछ पत्तियां साथ में डालने से चाय भी कड़क बनेगी। रसोई में मौजूद मसालों की तरह वन तुलसी का उपयोग कर सकते हैं। इसकी दो-तीन पत्तियां मसालों के साथ पीसकर उपयोग कर सकते हैं।
  • फायदे : वन तुलसी की पत्तियां इन्फ्लुएंजा के इलाज, सिरदर्द, गले की खराश, खांसी और बुखार में फायदा पहुंचाती हैं।
लेमनग्रास

लेमनग्रास : इसकी चाय पिएं, संक्रमण से बचे रहेंगे

  • कैसे लगाएं : इसे नींबूघास भी कहते हैं। इसे छोटे गमले या क्यारी में लगा सकते हैं।
  • कैसे मिलेगा फायदा: इसकी पत्तियां लेमन टी बनाने में इस्तेमाल कर सकते हैं। गर्म पानी में अजवाइन और लेमनग्रास की कुछ पत्तियां डालकर उबाल लें। इसे दो मिनट तक रखें और फिर हल्दी डालकर अच्छी तरह से मिलाकर पिएं।
  • फायदे: इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स और बैक्टीरिया को खत्म करने वाली खूबियां हैं जो कई प्रकार के इंफेक्शन से बचाता है। इस घास में विटामिन-ए और सी, फोलेट, फोलिक एसिड, मैग्नीशियम, जिंक, कॉपर, आयरन, पोटेशियम, फॉस्फोरस, कैल्शियम और मैगनीज़ होते हैं।


Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Ayurvedic plant at home like Pippali, Ashwagandha and Giloy, they will protect against dengue and malaria and reduce the risk of heart diseases


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2Tz5Qup
via

पहले हफ्ते में कोरोना के 5 या इससे अधिक लक्षण दिखे तो मरीज में लम्बे समय तक वायरस का असर दिख सकता है

कोरोना का संक्रमण होने के बाद पहले हफ्ते में पांच या इससे अधिक तरह के लक्षण दिखते हैं तो यह इशारा है कि मरीज में लम्बे समय कोरोना का असर रह सकता है। यह दावा किंग्स कॉलेज लंदन की रिसर्च में किया गया है।

रिसर्च कहती है, संक्रमण के बाद अगर पहले हफ्ते में थकान, सिरदर्द, सांस लेने में तकलीफ, आवाज भारी होना, मांसपेशियों और शरीर में दर्द जैसे लक्षण दिखते हैं तो मरीज लम्बे समय के कोरोना से परेशान रह सकता है। इसे लॉन्ग कोविड भी कहते हैं।

लम्बे समय कोविड का साइडइफेक्ट
रिसर्च कहती है, ऐसे मरीज जो कोरोना का संक्रमण होने के 4 से 8 हफ्ते बाद तक रिकवर नहीं कर पाते उनमें पोस्ट कोविड का खतरा बढ़ता है। पोस्ट कोविड यानी लम्बे समय तक कोरोना के साइडइफेक्ट से जूझना। रिकवरी के बाद ऐसे मरीजों में खांसी, सांस लेने में तकलीफ, मांसपेशियों में दर्द और अधिक थकान जैसे लक्षण दिखते हैं।

40 हजार मरीजों पर हुई रिसर्च
ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने कोरोना के 40 हजार मरीजों पर रिसर्च की। इसमें ब्रिटेन और स्वीडन के मरीज शामिल किए गए। इनमें से 20 फीसदी ने कहा, संक्रमण के 1 माह बाद भी पूरी तरह से रिकवर नहीं हो पाए। 190 मरीजों में कोरोना के लक्षण लगातार 8 से 10 हफ्ते तक दिखे। वहीं, 100 मरीजों ने बताया, संक्रमण के 10 हफ्ते बाद तक परेशान हुए। रिसर्च कहती है, ये मामले बताते हैं कि लम्बे समय तक कोविड का असर रहता है।

रिकवरी के बाद एक्टिविटी कंट्रोल में रखें
रिसर्चर कहते हैं, कोरोना से उबरने के बाद अगले कुछ हफ्तों तक अपनी एक्टिविटीज को कंट्रोल में रखें। यह थकावट की वजह बनती है और आने वाले समय में इसका बुरा देखने को मिल सकता है। खानपान में हेल्दी फूड लें। योगासन करें। दवाओं को समय पर लेना न भूलें।

64 फीसदी मरीजों कई महीनों तक असर दिख रहा

कोरोना से रिकवर होने वाले 64% मरीजों में कई महीनों तक वायरस का असर दिख रहा है। इलाज के बाद भी मरीज सांस लेने की दिक्कत, थकान, बेचैनी और डिप्रेशन से जूझ रहे हैं। यह रिसर्च करने वाली ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स का कहना है- कोरोना का संक्रमण होने के 2 से 3 महीने बाद ये असर दिखना शुरू हो रहा है। रिसर्च के दौरान पाया गया कि 64% मरीज सांस लेने की तकलीफ से जूझ रहे थे। वहीं, 55% थकान से परेशान थे।

यह आंकड़े ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च में जारी किए गए हैं।

क्या है लॉन्ग कोविड, ऐसे समझें

  • लॉन्ग कोविड की कोई वैज्ञानिक परिभाषा नहीं है। जो मरीज कोविड-19 निगेटिव हो गए, उन्हें महीनों बाद भी कोरोना का असर दिख रहा है और समस्याएं हो रही हैं। कोविड-19 से उबरने के बाद भी लक्षणों का लॉन्ग-टर्म अनुभव ही लॉन्ग कोविड है।
  • लॉन्ग कोविड से जूझ रहे दो लोगों के लक्षण बिल्कुल अलग-अलग हो सकते हैं। लेकिन, कॉमन लक्षण है थकान। सांस लेने में दिक्कत, खांसी, जोड़ों का दर्द, मांसपेशियों का दर्द, सुनने और देखने की समस्याएं और सिरदर्द।
  • ऐसे मरीजों में आंतों, किडनी, फेफड़ों और दिल को नुकसान हो सकता है। इनमें रिकवरी के बाद डिप्रेशन, बेचैनी के मामले भी दिख रहे हैं।
  • लॉन्ग कोविड शब्द का इस्तेमाल पहली बार एलिसा पेरेगो (यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की रिसर्च एसोसिएट) ने मई 2020 में अपने कोविड-19 अनुभवों को शेयर करते हुए किया था। तब से कई मरीज इस तरह के अनुभव सुना चुके हैं।


Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Having more than 5 coronavirus symptoms is a sign of long covid ; Latest Updates From British Researchers kings college london


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/37KGqT0
via

Wednesday, October 28, 2020

फ्लू की वैक्सीन कोरोना से संक्रमण का खतरा 39% तक घटा सकती है, अलर्ट रहें क्योंकि सर्दी में फ्लू और कोरोना दोनों का खतरा

फ्लू की वैक्सीन कोरोना के संक्रमण को घटाने में मदद कर सकती है। कोरोना के मरीजों में यह कैसे काम करेगी, वैज्ञानिकों ने इसे भी समझाया है। रिसर्च करने वाली नीदरलैंड्स की रेडबाउंड यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के इम्यूनोलॉजिस्ट मिहाई नेटी कहते हैं, 2019-2020 की सर्दियों में जिन लोगों को फ्लू की वैक्सीन लगी थी उन पर कोरोना के असर को जाना गया। रिसर्च में सामने आया कि जिन लोगों को फ्लू की वैक्सीन दी गई उनमें कोरोना से संक्रमित होने का खतरा 39 फीसदी तक कम था।

यह है रिसर्च का साइंस
वैज्ञानिकों का कहना है, फ्लू की वैक्सीन शरीर में इम्युनिटी यानी वायरस से लड़ने की क्षमता बढ़ाती है। यह खास तरह के साइटोकाइन स्टॉर्म को भी रोकने की कोशिश करती है। साइटोकाइन स्टॉर्म ऐसी स्थिति को कहते हैं, जब कोरोना का संक्रमण होने के बाद बीमारी से लड़ने वाला इम्यून सिस्टम बेकाबू होने लगता है। यह शरीर को नुकसान पहुंचाने लगता है।

सर्दियों में फ्लू की वैक्सीन क्यों जरूरी
अमेरिकी वैज्ञानिकों का कहना है, सर्दियों में कोरोना और फ्लू दोनों तरह के वायरस के संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। वैज्ञानिकों ने इस स्थिति को 'ट्विनडेमिक' नाम दिया है। इनका मानना है कि सर्दी में संक्रमण के खतरे को कम करने के लिए सभी अमेरिकी लोगों को फ्लू की वैक्सीन जरूर लगवानी चाहिए।

समझें कोरोना और फ्लू के बीच का अंतर

कोरोनावायरस और सीजनल फ्लू के लक्षणों में मामूली अंतर होता है। कोरोना के लक्षण ज्यादातर गले ओर सीने से जुड़े होते हैं। इसमें डायरिया भी हो सकता है। फ्लू में ज्यादातर लक्षण नाक से जुड़े होते हैं। फ्लू में गले में दर्द होना जरूरी नहीं। बलगम आ सकता है।

कोविड-19, फ्लू की तुलना में ज्यादा आसानी और तेज गति से फैलता है
1- दोनों बीमारियों के आंकड़े चौंकाते हैं। अमेरिका की सबसे बड़ी हेल्थ एजेंसी सीडीसी के मुताबिक, कोविड-19 और फ्लू दोनों रेस्पिरेटरी (सांस से जुड़ी) बीमारियां हैं। लेकिन कोविड-19 फ्लू नहीं है। रिसर्च के मुताबिक कोविड-19 फ्लू की तुलना में ज्यादा आसानी और तेज गति से फैलता है।
2- कोरोना की मृत्युदर भी फ्लू से ज्यादा है। अमेरिका में फ्लू से मृत्युदर 0.1% है, जबकि कोविड-19 की मृत्युदर 6% है। वैज्ञानिक अभी यह खोजने में लगे हैं कि कैसे कोविड-19 और फ्लू के लक्षण में अंतर बताया जा सके।
3- WHO के मुताबिक दुनिया में फ्लू से हर साल 2.90 लाख से 6.50 लाख लोगों की जान जाती है जबकि कोरोनावायरस से अब तक दुनिया में 4 लाख लोगों की जान जा चुकी है।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Coronavirus Flu Vaccine | Flu Vaccine May Help Reduce Coronavirus Disease (COVID-19) Infection


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2HEWHhd
via

हार्ट अटैक से मौत का खतरा कम करना है तो मछली, अखरोट, सोयाबीन और बादाम खाएं

हृदय रोगों को रोकना चाहते हैं या हार्ट अटैक के बाद मौत का खतरा घटाना चाहते हैं तो मछली, अखरोट, सोयाबीन और बादाम खाएं। ऐसा खानपान दिल को दुरुस्त रखता है। इस पर वैज्ञानिकों ने भी मुहर लगाई है। अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी में पब्लिश रिसर्च कहती है, रोजाना डाइट में ओमेगा-3 आइकोसा-पेंटानोइक एसिड और अल्फा-लिनोलिक एसिड की अधिक मात्रा वाले फूड खाते हैं तो दिल की बीमारियों का खतरा कम हो जाता है।

हार्ट अटैक से जूझ रहे 944 मरीजों पर हुई रिसर्च

रिसर्च करने वाले अमेरिकी वैज्ञानिकों के मुताबिक, ओमेगा-3 आइकोसा-पेंटानोइक एसिड और अल्फा-लिनोलिक एसिड में ऐसी खूबियां जो दिल को सुरक्षित रखने में मदद करती हैं। यह रिसर्च 944 हार्ट अटैक के सीरियस मरीजों पर कई गई। ये ऐसे मरीज थे जिनमें हार्ट की मेजर आर्टरी ब्लॉक थी।

ब्लड सैम्पल में ओमेगा-3 का लेवल देखा गया
रिसर्चर डॉ. एलेक्स साला-विला के मुताबिक, रिसर्च के दौरान 78 फीसदी पुरुषों हॉस्पिटल में भर्ती करने के दौरान ब्लड सैम्पल लिया गया। ब्लड में ओमेगा-3 का स्तर देखा गया। वैज्ञानिकों ने पाया कि जिन मरीजों में हार्ट अटैक के समय ओमेगा-3 का लेवल ज्यादा था उनकी हालत कम नाजुक हुई। जिन मरीजों में ओमेगा-3 आइकोसा-पेंटानोइक एसिड और अल्फा-लिनोलिक एसिड की मात्रा पर्याप्त रही उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती करवाने की आशंका कम हो गई।

हेल्दी हार्ट के लिए ये चीजें खाएं
रिसर्च कहती है, हार्ट को हेल्दी रखने के लिए साल्मन मछली, अलसी, अखरोट, सोयाबीन और बादाम खा सकते हैं। अमेरिका में मरने वाले लोगों के मौत की सबसे बड़ी वजह हार्ट अटैक है। हर 40 सेकंड में एक इंसान की मौत हार्ट अटैक से हो रही है। 45 साल से अधिक लोगों में से 36 फीसदी पुरुष और 47 फीसदी महिलाएं एक बार हार्ट अटैक का सामना कर चुकी हैं। अगर अगले पांच सालों में दूसरी बार ऐसा हुआ तो इनकी मौत हो जाएगी।

3 रिसर्च बताती हैं कि कोरोना के निशाने पर हार्ट भी है

हृदय रोगी पहले से कोरोना के रिस्क जोन में हैं लेकिन रिकवरी के बाद भी इसका असर हार्ट पर बरकरार रहता है। ऐसे समझें...

  • वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट कहती है, कोरोना से रिकवर हो चुके मरीजों के हार्ट पर गहरा असर पड़ा है। संक्रमण के इलाज के बाद इनमें सांस लेने में दिक्कत, सीने में दर्द जैसे लक्षण दिख रहे हैं। हार्ट के काम करने की क्षमता पर बुरा असर पड़ रहा है। जो लम्बे समय तक दिखेगा।
  • अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन जर्नल में प्रकाशित रिसर्च के मुताबिक, कोरोना से रिकवर होने वाले 100 में से 78 मरीजों के हार्ट डैमेज हुए और दिल में सूजन दिखी। रिसर्च कहती है, जितना ज्यादा संक्रमण बढ़ेगा भविष्य में उतने ज्यादा बुरे साइड-इफेक्ट का खतरा बढ़ेगा।
  • ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी की रिसर्च के मुताबिक, कोरोना से रिकवर होने वाला हर 7 में से 1 इंसान हार्ट डैमेज से जूझ रहा है। यह सीधेतौर पर उनकी फिटनेस पर असर डाल रहा है।

हार्ट को हेल्दी कैसे रखें, 5 बातों से समझें

खानपान : मोटा अनाज और कम मीठे फल लें

गेहूं की रोटी की जगह बाजरा, ज्वार या रागी अथवा इनका आटा मिलाकर बनाई रोटी खाएं। आम, केला, चीकू जैसे ज्यादा मीठे फल कम खाएं। इनके बजाय पपीता, कीवी, संतरा जैसे कम मीठे फल खाएं। तली और मीठी चीजें जितना कम कर दें, उतना बेहतर है। जितनी भूख से उससे 20 फीसदी कम खाएं और हर 15 दिन में वजन चेक करते रहें।

वर्कआउट : 45 मिनट की एक्सरसाइज या वॉक जरूरी

सप्ताह में पांच दिन 45 मिनट तक कसरत करें। वॉकिंग भी करते हैं तो असर दिखता है। दिल की बीमारियों की एक बड़ी वजह मोटापा है। वजन जितना बढ़ेगा और हृदय रोगों का खतरा उतना ज्यादा रहेगा। फिटनेस को इस स्तर पर लाने का प्रयास करें कि सीधे खड़े होने पर जब आप नीचे नजरें करें तो बेल्ट का बक्कल दिखे। अगर एक से डेढ़ किलोमीटर जाना है तो पैदल जाएं।

लाइफस्टाइल : जल्दी सोने-जल्दी उठने का रुटीन बनाएं, 7 घंटे की नींद जरूरीरोजाना कम से कम 7 घंटे की नींद जरूर लें। जल्दी सोने और जल्द उठने का रूटीन बनाएं। रात 10 से सुबह 6 बजे तक सोने का आदर्श समय है। इससे शरीर नाइट साइकिल में बेहतर आराम कर सकेगा। तनाव लेने से बचें, इसका सीधा असर मस्तिष्क और हृदय पर होता है।

धूम्रपान-अल्कोहल : इससे जितना दूर रहेंगे, हार्ट उतना हेल्दी रहेगाधूम्रपान पूरी तरह छोड़ दें। लगातार धूम्रपान करने से उसका धुआं धमनियों की लाइनिंग को कमजोर करता है। इससे धमनियों में वसा के जमा होने की आशंका और भी बढ़ जाती है। इसी तरह अल्कोहल से दूरी बना लेते हैं तो हार्ट हेल्दी रहेगा।

सोशल मीडिया : हार्ट को हेल्दी रखने के लिए अफवाहों से बचना भी जरूरी

डॉ. सुशांत पाटिल कहते हैं, सोशल मीडिया और वॉट्सऐप पर आए मैसेज में कई तरह के दावे किए जाते हैं जो आपकी सेहत को बिगाड़ सकते हैं। हार्ट को लेकर भी कई अफवाह वायरल होती हैं। जैसे- दिन की शुरुआत 4 गिलास पानी से करते हैं तो हृदय रोगों का खतरा नहीं होता। ऐसे मैसेजेस से बचें और कोई भी जानकारी लेने के लिए डॉक्टर पर ही भरोसा करें, वरना ये हालत को सुधारने की बजाय और बिगाड़ सकते हैं।

दुनिया में सबसे ज्यादा मौतें हृदय रोगों से

दुनियाभर में सबसे ज्यादा मौतें हृदय रोगों से होती हैं। वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन के मुताबिक, दुनियाभर में हर 3 में से 1 मौत हृदय रोग से हो रही है। इसके 80 फीसदी मामले मध्य आय वर्ग वाले देशों में सामने आते हैं।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Heart Attacks Prevention Foods; What To Eat To Prevent Cardiac Arrest


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3kCfWGG
via

दर्द वाली जगह पर इंजेक्शन से दी दवा; चक्कर आना, पेट दर्द, उल्टी जैसे साइड इफेक्ट नहीं दिखे

भारतीय वैज्ञानिकों ने गठिया के मरीजों को दवा के साइड इफेक्ट से बचाने का नया तरीका खोजा है। दवा को सीधे दर्द और सूजन वाली जगह इंजेक्ट करने पर मरीजों में उल्टी, सिरदर्द जैसे साइड इफेक्ट नजर नहीं आए। साथ ही इसका असर भी लंबे समय तक रहा।

पंजाब की लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर भूपिंदर कपूर ने इस पर रिसर्च की है। वो कहते हैं कि गठिया में आमतौर पर मरीजों को सल्फापायरीडाइन दवा दी जाती है। इसके कई साइडइफेक्ट होते हैं। दवा इंजेक्ट करने से वो सीधे दर्द वाले हिस्से तक पहुंचती है और यह तरीका सुरक्षित है।

उन्होंने बताया," सल्फापायरीडाइन गठिया की तीसरी सबसे पुरानी दवा है। लंबे समय तक इस दवा को लेने से चक्कर आना, पेट में दर्द, उल्टी होना, जी मिचलाना और स्किन पर चकत्ते पड़ने जैसे साइडइफेक्ट नजर आते हैं। दर्द वाली जगह पर दवा इंजेक्ट करने से यह शरीर में फैले बिना प्रभावित हिस्से को फायदा पहुंचाती है।इस नए तरीके का ट्रायल भी किया जा चुका है।"

असर नजर आया,सूजन कम हुई
रिसर्च के दौरान आर्थराइटिस से जूझ रहे चूहे को जब यह दवा नए तरीके से दी गई तो उसमें सूजन कम हुई। पता चला कि पुराने तरीके से दवा दिए जाने पर मेटाबॉलिज्म पर भी असर पड़ता है। मैटेरियल साइंस एंड इंजीनियरिंग-सी जर्नल में पब्लिश रिसर्च कहती है कि सल्फापायरीडाइन के मॉलीक्यूल शरीर में घुलने में काफी समय लेते हैं। इसलिए वैज्ञानिकों ने इस दवा को इंजेक्शन की फॉर्म में तैयार किया। चूहे पर इसके इस्तेमाल से पता चला कि दवा का असर भी ज्यादा वक्त तक रहा और साइड इफेक्ट भी नजर नहीं आए।

रिसर्च टीम के मुताबिक, टीम ने इसका पेटेंट फाइल किया है। दवा का प्री-क्लीनिकल ट्रायल पूरा हो चुका है। ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया से मंजूरी मिलने पर यह दवा लोगों के लिए उपलब्ध कराई जा सकेगी। यह रिसर्च लुधियाना के फॉर्टिस हॉस्पिटल और जेएसएस कॉलेज ऑफ फार्मेसी, तमिलनाडु के साथ मिलकर की गई।

क्या होता है गठिया

हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. आदित्य पटेल के मुताबिक, गठिया दो तरह का होता है। पहला, ऑस्टियो आर्थराइटिस और दूसरा, रुमेटॉयड आर्थराइटिस। ऑस्टियो आर्थराइटिस बढ़ती उम्र वालों में ज्यादा होता है, जबकि रुमेटॉयड आर्थराइटिस कम उम्र में भी हो जाता है, यह अनुवांशिक होता है। करीब 20% यंगस्टर्स भी इससे परेशान हैं। घंटों एक ही स्थिति में बैठकर काम करना, बढ़ती धूम्रपान की आदत और तनाव इसकी बड़ी वजह हैं।

जोड़ों में अकड़न व सूजन, तेज दर्द, जोड़ों से तेज आवाज आना, उंगलियों या दूसरे हिस्से का मुड़ने लगना जैसे लक्षण दिखने पर अलर्ट हो जाएं। बीमारी की शुरुआत में जोड़ों में अकड़न के साथ दर्द होना शुरू होता है। कुछ समय बाद जोड़ों में तेज दर्द होने लगता है और सूजन आने लगती है।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Rheumatoid Arthritis Medicine Side Effects; Research Updates From Lovely Professional University (LPU)


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3e10kKu
via

Tuesday, October 27, 2020

20 से 29 साल की उम्र सबसे बेहतर है लेकिन 30 के बाद बच्चा प्लान करें तो ये बातें ध्यान रखें

मां बनने के लिए एक जरूरी फैक्टर उम्र भी होता है। मां बनने की सही उम्र को टालना भविष्य में कई तरह से मुश्किलें पैदा करता है। घटती उम्र के साथ प्रजनन क्षमता में भी कमी आती है और रिस्क बढ़ता है। कोलंबिया एशिया अस्पताल, गाज़ियाबाद की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. विनीता दिवाकर बता रही हैं, बढ़ती उम्र में मां बनें तो किन बातों का ध्यान रखें

20-29 साल की उम्र

इस उम्र में बॉडी फर्टाइल होती है। इसलिए यह उम्र प्रेग्नेंसी के लिए सबसे बेहतर मानी गई है। दरअसल, इस उम्र में अच्छी क्वालिटी वाले एग्स सबसे अधिक होते हैं। प्रेग्नेंसी के जोखिम भी बहुत कम होते हैं।

30-39 साल की उम्र

जब महिलाएं इस उम्र में प्रवेश करती हैं, तो 35 के बाद प्रजनन क्षमता में और गिरावट आती है, इस कारण एग्स की संख्या में कमी आती है। गर्भपात और आनुवांशिक असामान्यता का जोखिम 35 वर्ष की आयु के बाद और बढ़ना शुरू हो जाता है।

इस दौरान नॉर्मल डिलीवरी होने में मुश्किलें आती हैं। शिशु को स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। गर्भपात होने की संभावना भी बढ़ जाती है। ऐसे में जांच के दौरान स्त्री रोग विशेषज्ञ कभी-कभी मां और उसके बच्चे के लिए एक्स्ट्रा जांच की सलाह देते हैं। डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी दिक्कतें 35 वर्ष की आयु के बाद महिलाओं में अधिक सामान्य हैं। इससे प्रेग्नेंसी में होने वाली डायबिटीज और प्रीएक्लेम्पसिया (गर्भावस्था से संबंधित एक अतिसंवेदनशील विकार है।) का रिस्क रहता है।

40 साल की उम्र

इस उम्र में गर्भधारण की संभावना 35 प्रतिशत कम हो जाती है। साथ ही एग्स की संख्या और क्वालिटी में कमी आ सकती है जो बच्चे को जन्म देने में बाधा बन सकती है। हालांकि 40 वर्ष की उम्र की महिलाएं भी स्वस्थ गर्भावस्था के साथ बच्चे को जन्म दे सकती हैं, लेकिन जोखिम भी काफ़ी बढ़ सकता है।

अविकसित शिशु का जन्म, जन्म के समय कम वज़न, जन्मजात दोष, स्टिल बर्थ यानी जन्मते ही शिशु मृत्यु आदि का खतरा रहता है। ऐसे में इस उम्र के बाद डॉक्टर्स को रिस्क समझने के लिए एक्स्ट्रा जांच करानी पड़ती हैं।

अगर देर से मां बनना चाहती हैं फ्रीज करा सकती हैं एग

अगर कुछ साल बाद मां बनने की योजना बना रही हैं तो एग फ्रीजिंग करा सकती हैं। एक्सपर्ट के मुताबिक, 38 वर्ष से कम उम्र की महिला एग फ्रीजिंग करा सकती हैं। यह प्रोसेस फ्यूचर में प्रोग्नेंसी के रिस्क को काफी हद तक कम कर सकती है। यह पूरी प्रोसेस एक्सपर्ट की कड़ी निगरानी में ही की जाती है।

इलाज की कई तकनीक

आपकी उम्र 35 वर्ष से अधिक है और आप 6 माह के अंदर प्रेग्नेंट होना चाहती हैं तो आपको फर्टिलिटी से जुड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में एक्सपर्ट असिस्टेड प्रोड्यूसिंग टेक्नोलॉजीज़ (एआरटी) दवाओं या आईवीएफ जैसे विकल्पों से मदद कर सकते हैं।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Best Age To Become Mother 20s Vs 30s Years; All You Need To Know From Columbia Asia Hospital Gynecologist Dr. Vinita Diwakar


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3jygLPx
via

बच्चों का मोटापा बढ़ा रहा यूट्यूब, इन्हें खाने से जुड़े 400 से ज्यादा वीडियो दिखा रहा जो 90% तक नुकसान पहुंचा रहे

अमेरिकी पीडियाट्रिक्स जर्नल में बेहद चौंकाने वाली रिपोर्ट पब्लिश हुई है। यहां यू-ट्यूब बच्चों को खाने से जुड़े 400 से ज्यादा ऐसे वीडियो दिखा रहा है, जिसमें उनके पसंदीदा शक्कर वाले पेय पदार्थ और जंक फूड के विज्ञापन हैं। इन विज्ञापन को देखकर बच्चे ऐसी चीजें खा रहे हैं जिससे उनमें तेजी से मोटापा बढ़ रहा है।

भारत में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है। दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल की क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. आरती आनंद का कहना है कि बच्चे स्क्रीन पर जंक फूड वाले वीडियो देखने के बाद पेरेंट्स से खाने-पीने के लिए वही डिमांड करते हैं। बच्चों में यह आदत उम्र बढ़ने के साथ-साथ और तेजी से बढ़ती जाती है।

नामी कम्पनियां बच्चों को बना रहीं निशाना
चौंकाने वाली बात यह भी है कि इन वीडियो में दिखाए जाने वाले 90% विज्ञापन ऐसे हैं, जो सेहत के लिए खतरनाक माने गए हैं। इनमें कई नामी कंपनियों के प्रोडक्ट और नामी ब्रांड शामिल हैं। इनमें दिखाए जाने वाले मिल्कशेक, फ्रेंच फ्राई, सॉफ्टड्रिंक्स, चीजबर्गर लाखों बच्चों की पसंद बन गए हैं। कोरोनाकाल में जब बच्चों के स्कूल्स बंद हैं और उनका स्क्रीन टाइम बढ़ गया है, तब ये नामी कंपनियां उन्हें अपना निशाना बना रही हैं।

80% पेरेंट्स ने भी माना बच्चे यूट्यूब देख रहे
स्टडी के मुताबिक, 11 साल तक की उम्र के बच्चों के 80% पैरेंट्स ने माना कि उनके बच्चे ज्यादातर यू-ट्यूब देखते हैं जबकि 35% पैरेंट्स ने माना कि उनके बच्चे केवल यू-ट्यूब ही देखते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह विज्ञापन ही नहीं बल्कि सेहत से जुड़ी एक बड़ी चिंता का भी मसला है। पिछले कुछ सालों में बच्चों में मोटापे की समस्या से तेजी से बढ़ी।

2 से 19 साल के अमेरिकी बच्चों में 20 फीसदी बच्चे मोटापे का शिकार हैं। जबकि 1970 के दशक में यह केवल 5.5% था। स्टडी में बताया गया है कि जंक फूड मार्केटिंग और बचपन में मोटापे की बीमारी के बीच बड़ा संबंध है।

सेहत पर खतरा लगातार बढ़ रहा
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के पब्लिक हेल्थ एंड न्यूट्रीशियन की असिस्टेंट प्रोफेसर मैरी ब्रैग ने कहा कि जिस तरह से ये ब्रांडेड प्रोडक्ट बच्चों की जिंदगी में शामिल हो रहे हैं, उससे उनकी सेहत पर खतरा लगातार बढ़ रहा है। वे जितनी कैलोरी ले रहे हैं, उसकी तुलना में बर्न नहीं कर पा रहे।

बच्चे इन विज्ञापनों को देखकर जो खा रहे हैं वह सब हाई फैट, शुगर व सॉल्ट कैटेगरी में आते हैं। हालांकि, ये सामान्य खपत के आइटम हैं। इसलिए ये कैसे सुनिश्चित किया जाए कि बच्चों को इन विज्ञापनों को देखने से बाहर रखा जाए, यह आने वाले दिनों में एक बड़ा मुद्दा बनेगा।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Youtube Junk Food Brands Promotion Influence Kids; Here's Update From Pediatrics Journal Report


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3moSRYI
via

वैज्ञानिकों ने खोजा नवजातों के आंखों की रोशनी लौटाने वाला आईड्रॉप, यह एंटीबायोटिक रेसिस्टेंट बैक्टीरिया का संक्रमण खत्म करेगा

वैज्ञानिकों ने ऐसे आई ड्रॉप की खोज की है जो नवजातों में अंधेपन की समस्या को दूर कर सकता है। इसकी वजह नाइसेरिया गोनोरोहिया नाम का बैक्टीरिया है जिस पर दवाओं का असर नहीं हो रहा। यह बैक्टीरिया संक्रमित मां से नवजात में पहुंचता है और अंधेपन का कारण बनता है।

आई ड्रॉप को तैयार करने वाली ब्रिटेन की किंग्सटन यूनिवर्सिटी का दावा है कि इससे आंखों में बैक्टीरिया के संक्रमण को ठीक किया जा सकता है। यह दवा नवजातों में जलन भी नहीं करती।

मां से बच्चे में फैलता है यह बैक्टीरिया
वैज्ञानिकों का कहना है, नाइसेरिया गोनोरोहिया नाम का बैक्टीरिया सेक्सुअल ट्रांसमिशन के दौरान पिता से मां में पहुंचता है और मां से यह नवजात में आता है। इस बैक्टीरिया पर एंटीबायोटिक दवाएं दिन-प्रतिदिन बेअसर साबित हो रही हैं। इसका असर नवजातों की आंखों पर पड़ रहा है। अगर इसके संक्रमण का इलाज नहीं होता है तो नवजात की रोशनी हमेशा के लिए जा सकती है।

एंटीमाइक्रोबियल एजेंट मोनोकाप्रिन सस्ता विकल्प
वैज्ञानिकों का कहना है, आई ड्रॉप में एंटी माइक्रोबियल एजेंट मोनोकाप्रिन का प्रयोग किया है। लम्बे समय से इसका अध्ययन किया जा रहा था। रिसर्च के मुताबिक, एंटीमाइक्रोबियल एजेंट मोनोकाप्रिन बैक्टीरिया से लड़ने का सस्ता विकल्प है। दुनिया के किसी भी हिस्से में यह उपलब्ध कराया जा सकता है।

नई दवा के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित करना मुश्किल
रिसर्चर डॉ. लोरी सिंडर के मुताबिक, कई तरह के बैक्टीरिया पर एंटीबायोटिक्स बेअसर साबित हो रहे हैं। इसलिए इन्हें खत्म करने के लिए नए विकल्प का ढूंढा जाना जरूरी है। इसीलिए हमनें मोनोकाप्रिन का प्रयोग किया। बैक्टीरिया के लिए इस दवा के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित करना मुश्किल होगा।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Infants Blindness; Here's Kingston University London Latest Research


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2HDPWMN
via