फ्लू की वैक्सीन कोरोना के संक्रमण को घटाने में मदद कर सकती है। कोरोना के मरीजों में यह कैसे काम करेगी, वैज्ञानिकों ने इसे भी समझाया है। रिसर्च करने वाली नीदरलैंड्स की रेडबाउंड यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के इम्यूनोलॉजिस्ट मिहाई नेटी कहते हैं, 2019-2020 की सर्दियों में जिन लोगों को फ्लू की वैक्सीन लगी थी उन पर कोरोना के असर को जाना गया। रिसर्च में सामने आया कि जिन लोगों को फ्लू की वैक्सीन दी गई उनमें कोरोना से संक्रमित होने का खतरा 39 फीसदी तक कम था।
यह है रिसर्च का साइंस
वैज्ञानिकों का कहना है, फ्लू की वैक्सीन शरीर में इम्युनिटी यानी वायरस से लड़ने की क्षमता बढ़ाती है। यह खास तरह के साइटोकाइन स्टॉर्म को भी रोकने की कोशिश करती है। साइटोकाइन स्टॉर्म ऐसी स्थिति को कहते हैं, जब कोरोना का संक्रमण होने के बाद बीमारी से लड़ने वाला इम्यून सिस्टम बेकाबू होने लगता है। यह शरीर को नुकसान पहुंचाने लगता है।
सर्दियों में फ्लू की वैक्सीन क्यों जरूरी
अमेरिकी वैज्ञानिकों का कहना है, सर्दियों में कोरोना और फ्लू दोनों तरह के वायरस के संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। वैज्ञानिकों ने इस स्थिति को 'ट्विनडेमिक' नाम दिया है। इनका मानना है कि सर्दी में संक्रमण के खतरे को कम करने के लिए सभी अमेरिकी लोगों को फ्लू की वैक्सीन जरूर लगवानी चाहिए।
समझें कोरोना और फ्लू के बीच का अंतर
कोरोनावायरस और सीजनल फ्लू के लक्षणों में मामूली अंतर होता है। कोरोना के लक्षण ज्यादातर गले ओर सीने से जुड़े होते हैं। इसमें डायरिया भी हो सकता है। फ्लू में ज्यादातर लक्षण नाक से जुड़े होते हैं। फ्लू में गले में दर्द होना जरूरी नहीं। बलगम आ सकता है।
कोविड-19, फ्लू की तुलना में ज्यादा आसानी और तेज गति से फैलता है
1- दोनों बीमारियों के आंकड़े चौंकाते हैं। अमेरिका की सबसे बड़ी हेल्थ एजेंसी सीडीसी के मुताबिक, कोविड-19 और फ्लू दोनों रेस्पिरेटरी (सांस से जुड़ी) बीमारियां हैं। लेकिन कोविड-19 फ्लू नहीं है। रिसर्च के मुताबिक कोविड-19 फ्लू की तुलना में ज्यादा आसानी और तेज गति से फैलता है।
2- कोरोना की मृत्युदर भी फ्लू से ज्यादा है। अमेरिका में फ्लू से मृत्युदर 0.1% है, जबकि कोविड-19 की मृत्युदर 6% है। वैज्ञानिक अभी यह खोजने में लगे हैं कि कैसे कोविड-19 और फ्लू के लक्षण में अंतर बताया जा सके।
3- WHO के मुताबिक दुनिया में फ्लू से हर साल 2.90 लाख से 6.50 लाख लोगों की जान जाती है जबकि कोरोनावायरस से अब तक दुनिया में 4 लाख लोगों की जान जा चुकी है।
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