Sunday, August 30, 2020

गाय के दूध से एलर्जी है तो ये 4 तरह के दूध डाइट में शामिल कर सकते हैं, ये दांत और हडि्डयों को मजबूत बनाते हैं और कोरोनाकाल में इम्युनिटी भी बढ़ाएंगे

दूध को कंप्लीट फूड कहते हैं। इसमें कैल्शियम अधिक पाए जाने के कारण यह हड्डियों को मजबूत बनाता है। मार्केट में दूध की कई वैरायटी (फुल क्रीम, टोंड, डबल टोंड और स्किम्ड दूध) होने के कारण लोग कंफ्यूज हो जाते हैं कि कौन सा दूध उनके लिए बेहतर है।

एक बड़ा सवाल है कि अगर गाय या भैंंस के दूध से एलर्जी हो तो डाइट में इसका कौन सा विकल्प शामिल करें। एक गिलास दूध रोजाना लेना जरूरी है क्योंकि यह हडि्डयों और दांतों को मजबूत रखने के साथ कोरोनाकाल में आपकी इम्युनिटी भी बढ़ाएगा। डाइटीशयन सुरभी पारीक से जानते हैं कि दूध की वैरायटी और उनका कब और क्यों इस्तेमाल किया जाए...

5 प्वाइंट्स : जरूरत के मुताबिक कैसे चुनें दूध

गाय का दूध : दूसरे दूध के मुकाबले इसमें कैल्शियम अधिक
गाय के शुद्ध दूध में 88 फीसदी पानी और प्रोटीन, गुड फैट व विटामिन-डी अधिक मात्रा में पाया जाता है। दूसरे दूध के मुकाबले इसमें कैल्शियम अधिक पाया जाता है। ओमेगा-3 फैटी एसिड होने के कारण यह हार्ट और डायबिटीज पेशेंट्स के लिए खास फायदेमंद है। कई रिसर्च में भी सामने आया है कि यह मेटाबॉलिज्म दुरुस्त कर ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करता है।


सोया मिल्क : दूध से एलर्जी है तो इसे लें, इसमें अधिक प्रोटीन की मात्रा अधिक
ऐसे लोग जिन्हें दूध से एलर्जी है वे सोया मिल्क ले सकते हैं। हाई प्रोटीन होने के साथ इसमें कैल्शियम और आयरन भी अधिक मात्रा में होता है। इसमें नौ तरह अमीनो एसिड्स पाए जाते हैं जो इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाते हैं जिससे आपकी रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है। इसे पीते समय ध्यान रखें कि शुगर अधिक न लें।


स्किम्ड मिल्क : बढ़ते कोलेस्ट्रॉल और ब्लड प्रेशर से परेशान हैं तो इसे डाइट में शामिल करें
बढ़ते ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल से परेशान से हैं तो स्किम्ड मिल्क बेहतर विकल्प है। खासकर 35 वर्ष की उम्र के बाद इसे लेना अच्छा है। इसमें फैट मात्र 0.3 फीसदी होता है इसलिए वजन को कम करना चाहते हैं तो इसे डाइट में शामिल कर सकत हैं। इसे दही या छाछ के रूप में भी लिया जा सकता है।

टोन्ड मिल्क : ये लो-फैट मिल्क हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा घटाता है
जिन्हें वजन नहीं घटाना है केवल फिट रहना है, वे डबल टोंड दूध पी सकते हैं। इसमें वसा की मात्रा काफी कम होती है। इसमें फैट की मात्रा कम होने के कारण हार्ट अटैक, स्ट्रोक का खतरा भी कम होता है। इसमें विटामिन-डी की मात्रा अधिक होती है इस कारण कैल्शियम आसानी से शरीर में एब्जॉर्ब हो जाता है।


कोकोनट मिल्क : इसमें पोषक तत्व अधिक मात्रा में पाए जाते हैं
इसकी न्यूट्रिशन वैल्यू काफी हाई है। इसमें फायबर की मात्रा अधिक होने के साथ विटामिन सी, ई, बी और आयरन, सोडियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस पाया जाता है। लैक्टोज-फ्री होने के कारण ऐसे लोग जिन्हें दूध से एलर्जी है वे इसे ले सकते हैं। लो-कोलेस्ट्रॉल होने के कारण यह हृदय रोगों से बचाता है।


6 फायदे : रोज दूध पिएं क्योंकि इसका असर पूरे शरीर पर पड़ता है

  • दांत-हडि्डयां मजबूत करता है।
  • वजन घटाने में मदद करता है।
  • रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाता है।
  • यह स्किन को चमकदार बनाता है।
  • कोलेस्ट्रॉल घटकार दिल दुरुस्त रखता है।
  • शरीर में पानी की कमी भी पूरी करता है।


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इंडोनेशिया में मच्छर को बैक्टीरिया से संक्रमित करके हवा में छोड़ा, 77% तक डेंगू के मामले घटे; दावा- वोल्बाचिया बैक्टीरिया संक्रमण फैलने से रोकता है

इंडोनेशिया में डेंगू के मामलों को घटाने के लिए नया प्रयोग किया गया है। मच्छरों में खास तरह बैक्टीरिया को इंजेक्ट किया गया जो डेंगू के वायरस को फैलने से रोकती है। इन मच्छरों को खुले में छोड़ दिया गया है। रिसर्च में सामने आया कि डेंगू के मामलों में 77 फीसदी कमी आई।

डेंगू का वायरस संक्रमण के बाद बुखार और शरीर में दर्द की वजह बनता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, डेंगू का वायरस हर साल 40 करोड़ लोगों को संक्रमित करता है और 25 हजार लोगों की इससे मौत हो जाती है।

ऐसे हुई रिसर्च
इस पर रिसर्च करने वाली इंडोनेशिया की योग्यकार्ता यूनिवर्सिटी के रिसर्चर आदी उतरानी के मुताबिक, यह बड़ा बदलाव लाने वाली खोज है, उम्मीद है इससे डेंगू के मामले घटेंगे। पिछले तीन साल में ऐसे 3 लाख मच्छर छोड़े गए जिसमें वोल्बाचिया नाम के बैक्टीरिया को डाला गया था। इसे शहर के अलग-अलग में छोड़कर असर देखा गया। रिसर्च में सामने आया योग्यकार्ता शहर में सैकड़ों डेंगू के मरीज घटे।

इंडोनेशिया में हर साल डेंगू के 70 लाख मामले
रिसर्चर्स ने यह ट्रायल वर्ल्ड मॉक्स्यूटो प्रोग्राम के साथ मिलकर किया है, जिसके नतीजे इसी हफ्ते जारी किए गए। यहां ट्रायल करने की एक बड़ी वजह डेंगू के अधिक मामले हैं। इंडोनेशिया में हर साल डेंगू के 70 लाख मामले सामने आते हैं।

वर्ल्ड मॉस्क्यूटो प्रोग्राम के डायरेक्टर स्कॉट ओ'निल कहते हैं, हमारे पास इस बात के प्रमाण हैं कि वोल्बाचिया बैक्टीरिया से डेंगू खत्म करने का तरीका सुरक्षित है।

ऐसे घटते हैं डेंगू के मामले
वैज्ञानिकों के मुताबिक, इंसान को संक्रमित करने का काम मादा मच्छर करती है। नए छोड़े गए ना मच्छर मादा के साथ मेटिंग करते हैं। मादा मच्छर का लार्वा इंसान को काटने लायक बनने से पहली ही मर जाता है। इस तरह मादा मच्छर की संख्या नहीं बढ़ पाती और डेंगू के मामले घटते हैं।

50 सालों में 30 गुना बढ़े डेंगू के मामले
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, पिछले 50 सालों में डेंगू के ममाले 30 गुना तक बढ़े हैं। इसे कंट्रोल करने के लिए वोल्बाचिया बैक्टीरिया को पहली बार मच्छरों में इंजेक्ट करके ऑस्ट्रेलिया में छोड़ा गया था। पहला प्रयोग 2018 में हुआ था। लेकिन सामान्य क्षेत्र और जहां ये मच्छर छोड़े गए उनके बीच तुलना नहीं की गई थी, इसलिए प्रयोग से जुड़े सटीक आंकड़े सामने नहीं आ पाए थे।

वियतनाम में भी हुआ प्रयोग
इंडोनेशिया में हुए प्रयोग का एक हिस्सा वियतनाम में भी किया गया है। रिपोर्ट में सामने आया कि डेंगू के मामलों में 86 फीसदी तक कमी आई। दुनिया के जाने-माने वैज्ञानिकों ने इंडोनेशिया के इस प्रयोग को 'गोल्ड स्टैंडर्ड ट्रायल' कहा है।

वर्ल्ड मॉस्क्यूटो प्रोग्राम के डायरेक्टर और माइक्रोबायोलॉजिस्ट स्कॉट ओ'निल के मुताबिक, इंडोनेशिया में जो परिणाम सामने आए हैं, हम ऐसी ही उम्मीद कर रहे थे। हमारे पास इस बात के प्रमाण हैं कि वोल्बाचिया बैक्टीरिया वाला तरीका सुरक्षित है।

इंडोनेशिया में कोरोना के कारण कुछ ही महीने पहले ट्रायल खत्म किया गया है। माइक्रोबायोलॉजिस्ट स्कॉट का कहना है कि वोल्बाचिया बैक्टीरिया 60 फीसदी तक कीट-पतंगों में पाया जाता है। इसमें ड्रैगनफ्लाय, फ्रूटफ्लाय शामिल है।



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bacteria injects in mosquito to reduce dengue cases in indonesia Scientists infect mosquitoes with bacteria to stop the transmission of dengue fever in Indonesia, dropping infection rates by 77 percent


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5 योगासन जो कोरोनाकाल में मन काे शांत रखेंगे और तनाव-बेचैनी को दिमाग पर हावी होने से रोकेंगे; हर 7 में से 1 भारतीय मानसिक बीमारी से जूझ रहा

कोरोनाकाल में सुसाइड, स्ट्रेस और डिप्रेशन के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, दुनियाभर में 26 करोड़ से ज्यादा लोग डिप्रेशन से जूझ रहे हैं। लैंसेट जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर 7 में से 1 भारतीय मानसिक रोगी है। इसलिए तय करें कि दिमाग को शांत रखने के लिए वक्त निकालेंगे। जयपुर के फिटनेस एक्सपर्ट विनोद सिंह बता रहे हैं डिप्रेशन, स्ट्रेस और एंग्जाइटी को दूर करने वाले 5 आसनों के बारे में...

अधोमुख श्वानासन (डाउनवर्ड फेसिंग डॉग पोज)

ऐसे करें

  • पेट के बल लेटें और सांस खींचते हुए पैरों और हाथों के बल शरीर को उठाएं और टेबल जैसा आकार बनाएं।
  • सांस को बाहर निकालते हुए धीरे-धीरे कूल्हों (हिप्स) को ऊपर की तरफ उठाएं। अपनी कोहनियों और घुटनों को सख्त बनाए रखें। ध्यान रखें कि शरीर उल्टे 'वी' के आकार में आ जाए।
  • कंधे और हाथ एक सीध में रखें और पैर कूल्हे की सीध में रहेंगे। टखने बाहर की तरफ रहेंगे।
  • अब हाथों को नीचे जमीन की तरफ दबाएं और गर्दन को लंबा खींचने की कोशिश करें। आपके कान आपके हाथों के भीतरी हिस्से को छूते रहें।
  • इसी स्थिति में कुछ सेकेंड्स तक रुकें और उसके बाद घुटने जमीन पर टिका दें और मेज जैसी स्थिति में​ फिर से वापस आ जाएं।

सेतुबंधासन (ब्रिज पोज)

ऐसे करें

  • योग मैट पर पीठ के बल लेट जाएं और सांसों की गति सामान्य रखते हुए हाथों को बगल में रख लें।
  • अब धीरे-धीरे अपने पैरों को घुटनों से मोड़कर कूल्हों के पास ले आएं। कूल्हों को जितना हो सके फर्श से ऊपर की तरफ उठाएं। हाथ जमीन पर ही रहने दें।
  • कुछ देर के लिए सांस को रोककर रखें। इसके बाद सांस छोड़ते हुए वापस जमीन पर आएं। पैरों को सीधा करें और विश्राम करें।
  • 10-15 सेकेंड तक ​आराम करने के बाद फिर से शुरू करें।

शवासन (कॉर्प्स पोज)

ऐसे करें

  • पीठ के बल लेटकर अपनी आंखें बंद कर लें। दोनों पैरों को अलग-अलग करें और शरीर को रिलैक्स छोड़ दें। हाथ शरीर से थोड़ी दूर रखें और हथेलियों को आसमान की ओर खुला छोड़ दें।
  • धीरे-धीरे शरीर के हर हिस्से की तरफ ध्यान देना शुरू करें। शुरुआत पैरों के अंगूठे से करें। ऐसा करते हुए सांस लेने की गति एकदम धीमी कर दें।
  • धीरे-धीरे आप गहरे मेडिटेशन में जाने लगेंगे। आलस या उबासी आने पर सांस लेने की गति तेज कर दें। शवासन करते हुए कभी भी सोना नहीं चाहिए।
  • सांस लेने की गति धीमी​ लेकिन गहरी रखें। आपका फोकस सिर्फ खुद और अपने शरीर पर ही रहेगा। 10-12 मिनट के बाद, आपका शरीर पूरी तरह से रिलैक्स हो जाएगा।

चक्रासन

ऐसे करें

  • पीठ के बल लेट जाएं और अपने दोनों हाथों और पैरों को सीधा रखें। अब पैरों को घुटने के यहां से मोड़ लें।
  • अब अपने हाथों को पीछे की ओर अपने सिर के पास ले जाकर जमीन से टिका लें।
  • सांस को अंदर की ओर लें और अपने पैरों पर वजन को डालते हुए कूल्हों को ऊपर उठाएं।
  • दोनों हाथों पर वजन को डालते हुए अपने कधों को ऊपर उठाएं और धीरे धीरे अपने हाथों को कोहनी के यहां से सीधे करते जाएं।
  • ध्यान रखें की दोनों पैरों के बीच की दूरी और दोनों हाथों की बीच की दूरी समान होनी चाहिए।
  • इसके बाद अपने दोनों हाथों को अपने दोनों पैरों के पास लाने की कोशिश करें और जितने पास ला सकते है लाएं।

उत्तानासन

ऐसे करें

  • सीधे खड़े हो जाएं और दोनों हाथ कूल्हों पर रख लें। सांस को भीतर खींचते हुए कमर को मोड़ते हुए आगे की तरफ झुकें।
  • धीरे-धीरे कूल्हों को ऊपर की ओर उठाएं और दबाव ऊपरी जांघों पर आने लगेगा। अपने हाथों से टखने को पीछे की ओर से पकड़ें।
  • आपके पैर एक-दूसरे के समानांतर रहेंगे। आपका सीना पैर के ऊपर छूता रहेगा। जांघों को भीतर की तरफ दबाएं और शरीर को एड़ी के बल स्थिर बनाए रखें।
  • सिर को नीचे की तरफ झुकाएं और टांगों के बीच से झांककर देखते रहें। इसी स्थिति में 15-30 सेकंड तक स्थिर बने रहें। जब आप इस स्थिति को छोड़ना चाहें तो पेट और नीचे के अंगों को सिकोड़ें।
  • सांस को भीतर की ओर खींचें और हाथों को कूल्हों पर रखें। धीरे-धीरे ऊपर की तरफ उठें और सामान्य होकर खड़े हो जाएं।


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आप तक ऐसे पहुंचेगा कोरोना का टीका, इसलिए समय लग रहा है; अंतिम चरण का ह्यूमन ट्रायल पूरा होते ही वैक्सीन स्टोरेज और डिस्ट्रीब्यूशन भी चुनौती से कम नहीं

दुनियाभर में इस समय अब कोरोना के मामलों से ज्यादा वैक्सीन की चर्चा है। भारत समेत ज्यादातर देश इस साल के अंत कोरोना का टीका उपलब्ध होने की बात कह रहे हैं। लेकिन वैक्सीन तैयार करना जितना चुनौतीभरा काम है उतना ही मुश्किल होगा दुनियाभर के लोगों तक इसे पहुंचाना। वैक्सीन का सफर भी आसान नहीं होता। यह कई चरणों को पार करते हुए आप तक पहुंचता है, इसलिए तैयार होने में सालों लगते हैं। आज संडे स्पेशल खबर में पढ़िए कोविड-19 का टीका आप तक कैसे पहुंचेगा...

1- वायरस की पड़ताल

पहले शोधकर्ता पता करते हैं कि वायरस कोशिकाओं को कैसे प्रभावित करता है। वायरस प्रोटीन की संरचना से देखते हैं कि क्या इम्यून सिस्टम बढ़ाने के लिए उसी वायरस का इस्तेमाल हो सकता है। उस एंटीजन को पहचानते हैं, जो एंटीबॉडीज बनाकर इम्यूनिटी बढ़ा सकता है।

2- प्री-क्लिनिकल डेवलपमेंट में जानवरों पर परीक्षण होता है

मनुष्यों पर परीक्षण से पहले यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि कोई टीका या दवा कितना सुरक्षित है और कारगर है। इसीलिए सबसे पहले जानवरों पर परीक्षण किया जाता है। इसमें सफलता के बाद आगे का काम शुरू होता है, जिसे फेज-1 सेफ्टी ट्रायल्स कहते हैं।

3- क्लिनिकल ट्रायलः इसमें पहली बार इंसानों पर परीक्षण होता है, इसके भी 3 चरण
पहला चरणः
18 से 55 साल के 20-100 स्वस्थ लोगों पर परीक्षण। देखते हैं कि पर्याप्त इम्यूनिटी बन रही है या नहीं।
दूसरा चरणः 100 से ज्यादा इंसानों पर ट्रायल। बच्चे- बुजुर्ग भी शामिल। पता करते हैं कि असर अलग तो नहीं।
तीसरा चरणः हजारों लोगों को खुराक देते हैं। इसी ट्रायल से पता चलता है कि वैक्सीन वायरस से बचा रही है या नहीं। सब कुछ ठीक रहा तो वैक्सीन के सफल होने का ऐलान कर दिया जाता है। अप्रूवल मिलने पर उत्पादन शुरू हो जाता है।

3- सूखी बर्फ या जमी हुई कार्बन-डाई ऑक्साइड में रखते हैं वैक्सीन
वैक्सीन तैयार होने के बाद इसे खास तरह के इंसुलेटेड डिब्बों में निकाला जाता है। वैक्सीन को ठंडा रखने के लिए इसे सूखी बर्फ या जमी हुई कार्बन-डाइ-ऑक्साइड वाले डिब्बे में रखा जाता है।

इन डिब्बों को बड़े-बड़े फ्रीजर में रखते हैं। ये फ्रीजर जहां होते हैं वहां लोग पीपीई किट पहनकर काम करते हैं। दस्ताने और चश्मा भी अनिवार्य रहता है, वरना इतनी ठंड वाले माहौल में काम करना आसान नहीं हो पाता।

4. -20 डिग्री रखा जा सकता है स्टोरेट रूम का तापमान
अब अगला चरण है, इसे लोगों तक पहुंचाने का। अब इसे इंसुलेटेड डिब्बों में सूखी बर्फ डालकर फिर पैक किया जाएगा और जहां जरूरत है वहां भेजा जाएगा। जिस कमरे में इसे रखा जाना है, वहां का तापमान -20 डिग्री तक ठंडा रखा जा सकता है। आमतौर मौजूद वैक्सीन के लिए 2 से 8 डिग्री का तापमान आदर्श माना जाता है।



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 How Corona Vaccine Will Reach Us know how vaccine developed


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Saturday, August 29, 2020

15 मिनट में पता चलेगा कोरोना का संक्रमण हुआ है या नहीं, अमेरिकी कम्पनी ने लॉन्च की 400 रुपए वाली किट

अमेरिकी कम्पनी एबॉट ने कोरोना संक्रमण की जांच के लिए नई कोविड किट तैयार की है। किट की मदद से मात्र 15 मिनट में कोरोना की जांच की जा सकेगी। एक किट की कीमत 400 रुपए है। कम्पनी ने इसका नाम बाइनेक्स-नाउ रखा है। अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने इसे मंजूरी दे दी है।

कैसे करें इसका इस्तेमाल, 5 पॉइंट से समझिए

  • किट बनाने वाली कम्पनी का कहना है, नई किट से जांच करना बेहद आसान है। यह किट बिल्कुल वैसे काम करती है जैसे प्रेग्नेंसी टेस्ट किट। टेस्ट करने के लिए संदिग्ध व्यक्ति के नाक से सैंपल लेकर किट के कार्ड कार्ड में एक तरल रसायन के साथ डालना होगा।
  • इसके बाद यह कार्ड बंद हो जाएगा और सैम्पल के साथ वो तरल रसायन कार्ड की सतह में लगे रिएक्टिव मॉलिक्यूल के ऊपर से गुजरेगा।
  • अगर सैम्पल कोरोना पॉजिटिव आता है तो कार्ड पर एक रंगीन रेखा दिखेगी।
  • प्रेग्नेंसी टेस्ट में हार्मोन का पता लगाया जाता है, वैसे ही इसमें एंटीजन का पता लगाया जाएगा।
  • इस टेस्ट में जिन लोगों को सैम्पल पॉजीटिव आएगा, उन्हें क्वारैंटाइन होने पर स्वास्थ्य केंद्र से संपर्क करने को कहा जाएगा।

क्रेडिट कार्ड के आकार की किट, कहीं भी ले जा सकेंगे
यह किट क्रेडिट कार्ड के आकार की है। इसे कहीं भी ले जा सकते हैं। इसका इस्तेमाल करने के लिए किसी भी दूसरे उपकरण की जरूरत नहीं होगी।

रिपोर्ट निगेटिव होने पर ऐप से भेज सकेंगे
कम्पनी इसके लिए नेविका ऐप लॉन्च करेगी। अगर किसी इंसान की रिपोर्ट निगेटिव आती है तो ऐप की मदद से अपनी रिपोर्ट दिखा सकते हैं। यह डिजिटल हेल्थ पास की तरह काम करेगी।

अक्टूबर तक हर महीने 5 करोड़ किट बनाई जाएंगी
कंपनी के मुताबिक, अक्टूबर तक हर महीने ऐसे 5 करोड़ टेस्ट किट बनना शुरू हो जाएंगे। कंपनी का दावा है कि इस किट की मदद से 97.1 फीसदी तक कोरोना संक्रमण का सटीक पता लगाया जा सकता है। अस्पताल, स्कूल, ऑफिस जैसी जगहों पर कोरोना संक्रमण की जांच के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।



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covid19 test in just 15 minutes FDA approves first rapid coronavirus test kit in america Abbott Laboratories will sell BinaxNOW for $5 (₹371.63 INR)


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ब्रेस्ट और ओवरी कैंसर का खतरा घटाना है तो शिशु को 6 माह तक स्तनपान जरूर कराएं; कोरोनाकाल में भी इसे न रोकें

कोरोनाकाल में महिलाएं बच्चों को ब्रेस्टफीडिंग कराने में हिचक रही हैं। ब्रेस्टफीडिंग कराना शिशु के साथ मां की सेहत के लिए भी जरूरी है। बिहार के बेगूसराय की आईसीडीएस डीपीओ रचना सिन्हा के मुताबिक, शिशु को जन्म से छह माह तक मां का दूध मिलना बेहद जरूरी है। इससे मां में ब्रेस्ट और ओवरी कैंसर का खतरा घटता है।

शिशु में डायरिया और निमोनिया का खतरा घटता है
कोरोना महामारी के दौरान सुरक्षा के साथ ब्रेस्टफीडिंग को बढ़ावा देने के लिए स्वास्थ्य विभाग एवं आईसीडीएस मिलकर महिलाओं को जागरुक कर रहा है। आईसीडीएस डीपीओ रचना सिन्हा कहती हैं, मां के दूध से बच्चों को उनकी जरूरत के मुताबिक एनर्जी मिलती है। इससे डायरिया और निमोनिया का खतरा 11 से 15 गुना तक कम हो जाता है। मां भी स्वस्थ रहती है।

हाल ही में कैंसर पर प्रकाशित हुई आईसीएमआर की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में सबसे ज्यादा महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर होता है। ब्रेस्ट कैंसर के केस बढते जा रहे हैं।

कमजोर नहीं है तो संक्रमित मां भी करा सकती हैंं स्तनपान

एक हालिया रिसर्च के मुताबिक, अगर कोई महिला कोरोना से संक्रमित हो चुकी हैं और वह इलाज करा रही है तो भी जरूरी सावधानी बरतते हुए ब्रेस्टफीडिंग करा सकती है। ब्रेस्ट फीडिंग से पहले हाथों को अच्छी तरह धोएं। स्तन पर साफ करें और मास्क लगाने के बाद ही ब्रेस्टफीडिंग कराएं।

WHO ने भी कहा, कोरोनाकाल में ब्रेस्टफीडिंग न रोकें माएं

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) कहता है- हां, वह ऐसा कर सकती है लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है, जैसे ब्रेस्टफीड कराते समय मास्क पहनें, बच्चे को छूने से पहले और बाद में हाथ जरूर धोएं। अगर कोरोना से संक्रमित हैं और बच्चे को ब्रेस्टफीड कराने की स्थिति में नहीं है तो एक्सप्रेसिंग मिल्क या डोनर ह्यूमन मिल्क का इस्तेमाल कर सकती हैं।

क्यों नवजात तक नहीं पहुंच रहा मां का दूध और यह कितना जरूरी है

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नवजात और मां के दूध के बीच बढ़ती दूरी के कई कारण गिनाए हैं। डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ की संयुक्त रिपोर्ट के मुताबिक, ज्यादातर मामले निचले और मध्यम आमदनी वाले देशों में सामने आ रहे हैं। दूसरी सबसे बड़ी वजह भारत समेत कई देशों में फार्मा कंपनियों का ब्रेस्टमिल्क सब्सटीट्यूट का आक्रामक प्रचार करना भी है।

  • स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ मीता चतुर्वेदी के मुताबिक, नवजात के जन्म के तुरंत बाद निकलने वाला मां का पहला पीता दूध कोलोस्ट्रम कहलाता है। इसमें प्रोटीन, फैट, कार्बोहाइड्रेट और कैल्शियम अधिक मात्रा में पाया जाता है। यह नवजात की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर संक्रमण से बचाता है।
  • स्तनपान मां में ब्रेस्ट-ओवेरियन कैंसर, टाइप-2 डायबिटीज और हृदय रोगों का खतरा घटाता है। ब्रेस्ट कैंसर से होने वाली 20 हजारे मौंतें सिर्फ बच्चे को स्तनपान कराकर ही रोकी जा सकती हैं।
  • ज्यादा ब्रेस्ट फीडिंग कराने से मां की कैलोरी अधिक बर्न होती है, जो डिलीवरी के बाद बढ़ा हुआ वजन कम करने में मदद करता है। इस दौरान मांओं के शरीर से ऑक्सीटोसिन निकलता है, जिससे उनका तनाव भी कम होता है।
  • डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, बच्चे जन्म के पहले घंटे से लेकर 6 माह की उम्र तक स्तनपान कराना चाहिए। 6 महीने के बाद बच्चे के खानपान में दाल का पानी और केला जैसी चीजें शामिल करनी चाहिए। उसे दो साल तक दूध पिलाया जा सकता है।
  • स्त्री रोग विशेषज्ञ के मुताबिक, मां को एक स्तन से 10-15 मिनट तक दूध पिलाना चाहिए। शुरुआत के तीन-चार दिन तक बच्चे को कई बार स्तनपान कराना चाहिए क्योंकि इस दौरान दूध अधिक बनता है और यह उसके लिए बेहद जरूरी है।
  • ब्रेस्टफीडिंग के दौरान साफ-सफाई का अधिक ध्यान रखें। शांत और आराम की अवस्था में भी बच्चे को बेस्टफीडिंग कराना बेहतर माना जाता है।
  • बच्चा जब तक दूध पीता है, मां को खानपान में कई बदलाव करना चाहिए। डाइट में जूस, दूध, लस्सी, नारियल पानी, दाल, फलियां, सूखे मेवे, हरी पत्तेदार सब्जियां, दही, पनीर और टमाटर शामिल करना चाहिए।

कब न कराएं ब्रेस्टफीडिंग

अगर मां एचआईवी पॉजिटिव, टीबी की मरीज या कैंसर के इलाज में कीमोथैरेपी ले रही है तो ब्रेस्टफीडिंग नहीं करानी चाहिए। अगर नवजात में गैलेक्टोसीमिया नाम की बीमारी पाई गई है तो मां को दूध नहीं पिलाना चाहिए। यह एक दुर्लभ बीमारी है जिसमें बच्चा दूध में मौजूद शुगर को पचा नहीं पाता। इसके अलावा अगर माइग्रेन, पार्किंसन या आर्थराइटिस जैसे रोगों की दवा पहले से ले रही हैं तो डॉक्टर को जरूर बताएं।



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regular breastfeeding reduces breast cancer and ovary cancer it she feeds to child till 6 month covid19 and brestfeeding question


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अस्पताल में कोरोना पीड़ितों का तनाव और अकेलापन दूर करने आया रोबोट, बारी-बारी पेशेंट से बात करता है; डॉक्टर्स भी इसके जरिए मरीज का हाल पूछते हैं

अस्पताल में भर्ती कोरोना के मरीज अपनों से दूर हैं। वे वायरस से लड़ने के साथ तनाव से भी जूझ रहे हैं। मेक्सिको के एक हॉस्पिटल में मरीजों का अकेलापन दूर करने के लिए रोबोट तैनात किया गया है। यह बारी-बारी मरीजों के पास जाता है और बात करके तनाव दूर करने की कोशिश करता है।

रोबोट की मदद से डॉक्टर्स मरीजों से भी बात करते हैं
रोबोट का नाम ला-लुची रोबोटिना है। इसक लम्बाई 4.6 फीट है। इसमें व्हील लगे हैं जिसकी मदद से यह कोरोना के मरीजों के पास पहुंचता है। इसके कैमरा और डिस्पले स्क्रीन भी लगी है। जिसकी मदद से डॉक्टर्स मरीज से बात करते हैं।

इनसे संक्रमण फैलने का खतरा नहीं
रोबोट को नवम्बर 20 नेशनल मेडिकल सेंटर में लगाया गया है। हॉस्पिटल की न्यूरोसायकोलॉजिस्ट ल्युसिया लेडेसमा के मुताबिक, इस रोबोट की मदद से एक इंसान होने का अहसास होता है। कोविड-19 जोन में बिना किसी ड्रॉपलेट इंफेक्शन के वह घूम सकता है।

खास तरह की आवाज से घटाता है तनाव
रोबोट खास तरह का म्यूजिक प्ले करता है जो मन को सुकून देता है। हॉस्पिटल के एक्सपर्ट का कहना है कि यह रोबोट मरीजों की मेंटल हेल्थ को बेहतर बनाने में मदद करेगा। इसके अलावा हॉस्पिटल के स्टाफ को भी तनावमुक्त रखने की कोशिश करता है।



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Coronavirus Covid-19 And Technology; Robot Deployed To Eliminate Loneliness Of Patients At Mexico Hospital


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दिल्ली के शख्स का चेन्नई में हुआ लंग ट्रांसप्लांट, कोरोना के कारण दोनों फेफड़े बुरी तरह डैमेज हुए; वेंटिलेटर सपोर्ट भी बेअसर रहा

चेन्नई के एक प्राइवेट अस्पताल में 48 साल के कोरोना पीड़ित का ट्रांसप्लांट हुआ। कोरोना के कारण दोनों फेफड़े बुरी तरह डैमेज हो चुके थे। हालत अधिक बिगड़ने पर उसे गाजियाबाद से चेन्नई के एमजीएच हेल्थकेयर अस्पताल लाया गया। यहां उसके दोनों फेफड़ों को ट्रांसप्लांट किया गया। यह कोविड-19 मरीज में हुआ एशिया का पहला लंग ट्रांसप्लांट है।

संक्रमण के बाद फेफड़े बुरी तरह डैमेज हुए
एमजीएच हेल्थकेयर अस्पताल की ओर से जारी बयान के मुताबिक, मरीज दिल्ली का रहने वाला है। 8 जून को उसकी कोविड-19 रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। उस समय फेफड़े का एक छोटा सा हिस्सा ही काम कर रहा था। कोरोना के संक्रमण के कारण उसके फेफड़े बुरी तरह से डैमेज हो चुके थे। संक्रमण के बाद डेढ़ महीने तक फेफड़े फायब्रोसिस की समस्या से जूझ रहे थे।

वेंटिलेटर सपोर्ट भी बेअसर रहा
सांस लेने में बढ़ती दिक्कत और शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने पर उसे 20 जून को वेंटिलेटर सपोर्ट दिया गया। वेंटिलेटर सपोर्ट के बाद भी हालत बिगड़ती रही। इसके बाद उसे 20 जुलाई को गाजियाबाद से चेन्नई के एमजीएम हॉस्पिटल लाया गया।

मरीज को 25 जुलाई से अगले एक महीने तक इक्मो सपोर्ट दिया गया। हालत में अधिक सुधार न होने पर डॉक्टर्स ने 27 अगस्त को लंग ट्रांसप्लांट किया।

दोनों फेफड़े बेहतर काम कर रहे हैं
हॉस्पिटल के चेयरमैन और हॉर्ट-लंग ट्रांसप्लांट प्रोग्राम के हेड डॉ. के आर बालाकृष्णन के मुताबिक, मरीज को दिया जा रहा इक्मो सपोर्ट भी हटा लिया गया। लंग ट्रांसप्लांटेशन के बाद मरीज की हालत स्थिर है। अब मरीज के दोनों फेफड़े बेहतर काम कर रहे हैं।



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Coronavirus Lung Transplant of Delhi Man in Chennai Today; Here's All You Need To Know


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जल्द ही कोरोना के मरीजों को प्लाज्मा थैरेपी की जरूरत नहीं पड़ेगी, इंटास फार्मा ने मानव प्लाज्मा से तैयार की दवा, अगले महीने शुरू होगा ह्यूमन ट्रायल

अहमदाबाद की फार्मा कम्पनी इंटास फार्मास्युटिकल ऐसी दवा विकसित की है जो कोरोना मरीजों के लिए प्लाज्मा थैरेपी का विकल्प बनेगी। कंपनी का दावा है कि इस दवा को लेने के बाद कोविड-19 रोगियों को प्लाज्मा थैरेपी की जरूरत नहीं पड़ेगी। इस दवा को मानव प्लाज्मा से तैयार किया गया है।

ह्यूमन ट्रायल की मंजूरी मिली
इंटास फार्मास्युटिकल के चिकित्सा और नियामक मामलों के हेड डॉ. आलोक चतुर्वेदी ने कहा कि यह देश में पहली बार है कि ऐसी दवा बनाई जा रही है जो पूरी तरह से स्वदेशी है। कोविड-19 के उपचार के लिए विशेष रूप से विकसित हाइपरिम्यून ग्लोब्युलिन के ह्यूमन ट्रायल के लिए ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) से मंजूरी मिल गई है। हम इसके लिए गुजरात और देश के कई अस्पतालों के साथ बातचीत कर रहे हैं। अगले एक महीने में ट्रायल शुरू हो जाएगा।

30 एमजी की खुराक पर्याप्त होगी
डॉ. चतुर्वेदी के मुताबिक, वर्तमान में कोरोना रोगियों को लगभग 300 एमजी प्लाज्मा के साथ प्लाज्मा थैरेपी दी जाती है। दूसरी बात, यह तय नहीं है कि यह हर मरीज को कैसे और किस हद तक प्रभावित करता है। नई तैयार होने वाली हाइपरिम्यून ग्लोब्युलिन की 30 एमजी की एक खुराक रोगी के लिए पर्याप्त है।

अब तक हुआ परीक्षण सफल रहा
दवा पर अब तक हुआ परीक्षण सफल रहा है। डॉ. चतुर्वेदी ने कहा कि यह दवा मानव प्लाज्मा से बनाई गई है, इसलिए इसके परिणाम परीक्षण के एक महीने के भीतर आने की उम्मीद है। परीक्षण सफल रहने पर दवा अगले तीन महीनों में लॉन्च करने के लिए तैयार होगी क्योंकि इसके उत्पादन के लिए जरूरी अनुमति लेने में एक महीने का समय लगेगा।

कैसे काम करती है प्लाज्मा थैरेपी

कोरोना के ऐसे मरीज जो हाल ही में बीमारी से उबरे हैं उनके शरीर में मौजूद इम्यून सिस्टम ऐसे एंटीबॉडीज बनाता है जो ताउम्र रहते हैं। ये एंटीबॉडीज ब्लड प्लाज्मा में मौजूद रहते हैं। इसे दवा में तब्दील करने के लिए ब्लड से प्लाज्मा को अलग किया जाता है और बाद में इनसे एंटीबॉडीज निकाली जाती हैं। ये एंटीबॉडीज नए मरीज के शरीर में इंजेक्ट की जाती हैं इसे प्लाज्मा थैरेपी कहते हैं। यह मरीज के शरीर को तब तक रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाता है जब तक उसका शरीर खुद ये तैयार करने के लायक न बन जाए।



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Coronavirus Treatment Latest News, COVID-19 Drug Development India Intas Pharma Clinical Trial Updates On Hyperimmune Globulin


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कमजोर इम्युनिटी के कारण कैंसर रोगियों में कोरोना होने पर मौत का खतरा 25 फीसदी ज्यादा, इसलिए अधिक अलर्ट रहें और ये 12 लक्षण नजरअंदाज न करें

2025 तक देश में कैंसर पीड़ितों की संख्या करीब 15.7 लाख होगी। यहां कैंसर रोगियों का जिक्र इसलिए, क्योंकि मौजूदा कोरोना काल में कैंसर मरीजों को सबसे ज्यादा दिक्कते हो रही हैं। कोरोना के चलते कैंसर पीडितों के इलाज और उनकी देखभाल में भारी बदलाव आया है।

विशेषज्ञों ने अमेरिका के न्यूयार्क स्थित मोंटफोर मेडिकल सेंटर में भर्ती 218 ऐसे कैंसर मरीजों का अध्ययन किया जो कोरोना से संक्रमित हो चुके थे। 18 मार्च से 8 अप्रैल के बीच की गई इस स्टडी में वैज्ञानिकों ने पाया कि इनमें से 61 मरीजों की मौत कोरोना संक्रमण से हो गई जो कि कुल संख्या का 28% है। इस दौरान अमेरिका में कोरोना से मृत्यु दर 5.8 प्रतिशत थी। कोरोनाकाल में इनकी देखभाल कैसी होनी चाहिए, यह बता रहे हैं अपोलो अस्पताल, नवी मुम्बई के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के कंसल्टेंट डॉ. शिशिर शेट्‌टी....

इन 12 में से कोई भी लक्षण दिखते ही डॉक्टर से सम्पर्क करें

  • तेज बुखार आना, शरीर में कंपकंपी, पसीना आना, जीभ या मुंह में घाव हो जाना, जीभ पर सफेद परत जम जाना।
  • बलगम बनना, सांस लेने में परेशानी होना, पेशाब के दौरान जलन होना या रक्त का आना, पेट में दर्द या ऐंठन होना।
  • गले में जकड़न, साइनस का दर्द, कान या सिर में दर्द रहना।

रिसर्च : कम श्वेत रक्त कणिकाएं जिम्मेदार
लॉकडाउन की घोषणा के बाद से ही कैंसर रोगी अस्पतालों में जाने और संक्रमण के खतरे के कारण उपचार और अन्य प्रक्रियाओं को फिर से शुरू करने से डर रहे हैं। अमेरिका के नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट के अनुसार ऐसे लोग जिनका पूर्व में कैंसर का उपचार हुआ है उनकी रोग प्रतिरोधक शक्ति (इम्युनिटी) कमजोर हो जाती है।

दरअसल कीमोथैरेपी जैसे ट्रीटमेंट के कारण श्वेत रक्त कणिकाओं का बनना कम हो जाता है। श्वेत रक्त कणिकाएं रोग प्रतिरक्षा प्रणाली का प्रमुख अंग हैं। ऐसे में व्यक्ति कोरोना वायरस से गंभीर रूप से संक्रमित हो सकता है।

हालांकि कैंसर रिसर्च यूके की रिपोर्ट के अनुसार भले ही किसी व्यक्ति का कैंसर उपचार के बाद ठीक हो चुका हो, लेकिन ऐसे लोगों को भी कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा अधिक है। क्योंकि रोगप्रतिरोधक क्षमता समय के अनुसार धीरे-धीरे ही बढ़ेगी। ऐसे में इन लोगों को सावधानी बरतनी चाहिए।

वो बातें जो हाई रिस्क रोगियों के लिए बेहद जरूरी हैं

  • कोरोना वायरस के चलते हेल्थकेयर सिस्टम को भी कर्मचारियों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। चिकित्सा पेशेवरों पर काम की अधिकता का भार है। ऐसे में कैंसर पीडितों के लिए वायरस के संभावित जोखिम को देखते हुए उपचार का समय निर्धारित करना आवश्यक है। जब तक रोगी वायरस के संपर्क में नहीं आता है, तब तक हाई रिस्क वाले रोगियों की देखभाल को रोककर नहीं रखा जाना चाहिए।
  • कैंसर रोगियों के लिए चेक-अप क्षेत्र अलग होने के साथ स्क्रीनिंग अनिवार्य की जानी चाहिए। परामर्श के दौरान डॉक्टर के साथ ही रोगी को अत्यधिक सुरक्षा और स्वच्छता प्रोटोकॉल का पालन करना जरूरी है। कैंसर रोगियों को इस समय और अधिक सावधानी बरतने की जरूरत है ताकि वायरस के संपर्क में आने का खतरा कम हो। उन रोगियों के लिए जिन्हें तत्काल सर्जरी या प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं है, जहां भी संभव हो. टेली-परामर्श और टेली-मेडिसिन का उपयोग करना चाहिए।
  • कैंसर रोगियों के लिए किसी भी उपचार को शुरू करने से पहले, उपचार और दवा के प्रभावी और सुरक्षित कोर्स को सुनिश्चित करने के लिए सभी टेस्ट कराना महत्वपूर्ण है। यही नहीं कैंसर रोगी के साथ ही उनकी देखभाल करने वालों को भी सावधानी बरतने की जरूरत है ताकि कोरोना वायरस संक्रमण के खतरे को कम किया जा सके। इसके अलावा जितना हो सके अन्य विकल्पों को उपयोग कैंसर पीड़ितों को अपने इलाज के दौरान करना चाहिए।


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Coronavirus Immunity | Cancer Patients Warned of Risks from Coronavirus COVID Death; Here's Latest New Research


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Friday, August 28, 2020

दुनिया का सबसे बड़ा रूफटॉप ग्रीनहाउस, यहां मिलेंगी 100 से अधिक ऑर्गेनिक सब्जियों और हर्ब की वैरायटी

यह है दुनिया सबसे बड़ा रूफटॉप ग्रीन हाउस। इसे कनाडा के दूसरे सबसे बड़े शहर मॉन्ट्रियल में बनाया गया है। हाल ही में इसका उद्घाटन किया गया है। यहां ऑर्गेनिक सब्जियां उगाई जाती हैं। इसे तैयार करने वाली कम्पनी लूफा फार्म का कहना है कि यहां पर उगने वाली सब्जियां स्थानीय लोगों को किफायती दरों पर उपलब्ध कराई जाएंगी।

2 फुटबॉल ग्राउंड के बराबर इसका क्षेत्रफल
यह रूफटॉप ग्रीनहाउस 15,000 स्क्वायर मीटर में बना है। यानी यह 2 फुटबॉल ग्राउंड के बराबर है। इसे बनाने वाली कंपनी लूफा फार्म ने इस तरह का पहला ग्रीनहाउस 2011 में बनाया था।

अब पेरिस में ऐसा ग्रीनहाउस बनाने की योजना
कंपनी अब तक न्यूयॉर्क, शिकागो और डेनवर में आठ ग्रीनहाउस बना चुकी है। पेरिस भी इस तरह का ग्रीनहाउस बनाने की योजना है।

कंटेनर में लगाए जाते हैं पौधे
यहां 100 से अधिक तरह की सब्जियां और हर्ब को हाइड्रोफोनिक कंटेनर में उगाया जाता है। कंटेनर में चारों तरफ नारियल का जूट लपेटा जाता है। कंटेनर के अंदर लिक्विड न्यूट्रिएंट्स होते हैं, जिसके कारण सब्जियां और हर्ब को पोषण मिलता है और ये विकसित होती हैं।

पति-पत्नी ने मिलकर 2009 में शुरू की थी कम्पनी
लूफा फार्म की शुरुआत लेबनान में जन्मे मोहम्मद हेज और उनकी पत्नी लॉरेन रैथमेल ने मिलकर 2009 में की थी। इनका लक्ष्य फूड सिस्टम को री-इंवेंट करना था। यहां सब्जियां बिना किसी केमिकल के उगाई जाती हैं।

हर हफ्ते 20 हजार परिवारों तक पहुंच रहीं सब्जियां
यहां काफी मात्रा में सब्जियां मौजूद है। इस रूफटॉप ग्रीनहाउस से हर हफ्ते 20 हजार परिवारों तक सब्जियां पहुंचाई जा रही हैं। कम्पनी यहां पर तैयार हुई सब्जियों की बिक्री ऑनलाइन करती है।



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World's biggest rooftop greenhouse opens in Montreal photos


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डायबिटीज के रोगी तनाव से बचें, इससे ब्लड शुगर बढ़ता है और संक्रमण हुआ तो रिकवरी रेट गिरता है; याद रखें एक्सपर्ट की ये 10 सलाह

महामारी के बीच डायबिटीज के रोगियों को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। सामान्य मरीजों के मुकाबले डायबिटीज के रोगियों में निमोनिया, फेफड़ों में सूजन तथा संक्रमण होने पर स्थिति काफी बिगड़ सकती है। इसकी वजह है इम्युनिटी।

एक्सपर्ट के मुताबिक, डायबिटीज के मरीजों की रोगों से लड़ने की क्षमता सामान्य रोगियों के मुकाबले काफी कम होती है। इससे उनकी आंतों में सूजन तथा जलन बढ़ सकती है। इस दौरान कोरोना संक्रमण होने पर जान का भी जोखिम बढ़ सकता है।

कोरोना महामारी की चपेट में आने के बाद कई बार रोगी तनाव में आ जाते हैं। ऐसी स्थिति में अगर कोई मधुमेह से पीड़ित नहीं है, तो उसका भी शुगर का स्तर बढ़ जाता है और रिकवरी दर में गिरावट आ जाती है। इसलिए अलर्ट रहें।

कोरोनाकाल में डायबिटीज के रोगियों के लिए 10 टिप्स

1. एक हफ्ते की खुराक अपने पास जरूर रखें
गुरुग्राम की न्यूट्रिशन एंड फंक्शनल मेडिसिन एक्सपर्ट डॉ. प्रीति नन्दा सिब्बल कहती हैं, कोरोना महामारी के दौर में अगर इंसुलिन ले रहे हैं तो कम से कम एक हफ्ते की खुराक अपने पास जरूर रखें। अगर आप खुद को क्वारैंटाइन कर रहे हैं तो भी पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन तथा पोषणयुक्त आहार साथ में जरूर रखें।

डॉक्टर से फोन या व्हाट्सअप के जरिए संपर्क में रहें। कोई भी दिक्कत होने पर वर्चुअल कॉन्फ्रेंस या वर्चुअल विजिट से सम्पर्क करें।

2. क्वारैंटाइन में हैं तो भी ब्लड शुगर जांचना न भूलें
अगर आपको लम्बे समय से अनियन्त्रित मधुमेह की शिकायत है तो शरीर के कई अंगों में सूजन या जलन हो सकती है और इम्युनिटी घट सकती है। यह भी देखने में आया है कि डायबिटीज के बुजुर्ग रोगी कोरोना संक्रमण में ज्यादा प्रभावित होते हैं।

अगर आप डायबिटीज के रोगी हैं और कोरोना की चपेट में आ गए हैं तो बेहतर होगा कि परिजनों से दूरी बनाकर घर में क्वारैंटाइन हो जाएं। ऐसा करने पर आप मानसिक और शारीरिक तौर पर बेहतर महसूस करेंगे। लेकिन आपको ब्लड शुगर को नियमित रूप से जांचते रहना होगा।

3. कब डॉक्टर से सम्पर्क करें
अगर क्वारैंटाइन में हैं और ब्लड शुगर लगातार बेकाबू हो रहा है। इसके साथ जी-मिचलाने, उल्टी आने या सांस लेने की तकलीफ हो रही है तो इसका मतलब है संक्रमण और भी बुरा रूप ले रहा है। ऐसी स्थितियों में तुरंत डॉक्टरी सलाह लें।

4. इन बातों का जरूर ध्यान रखें
डॉ. प्रीति नन्दा का कहना है कि कोरोना संक्रमण में ब्लड शुगर कंट्रोल रखना, खानपान का ध्यान रखना और रोजाना एक्सरसाइज करना बेहद जरूरी है। अगर इसके रोगी हार्ट की समस्या से जूझ रहे हैं तो समय-समय पर ब्लड प्रेशर को भी चेक करने की जरूरत है।

5. मौसम कोई भी हो शरीर में पानी की कमी न होने दें
कोरोना संक्रमण होने पर मधुमेह रोगियों का गलुकोज स्तर बढ़ता है जिससे शरीर में तरल पदार्थ की जरूरत महसूस होती है। ऐसे में अपने पास साफ और ताजा पानी जरूर रखें। मौसम कोई भी हो रोजाना 8 से 10 गिलास पानी पीना न छोड़ें।

6. 8-10 घंटे की नींद बेहद जरूरी है
डॉ. प्रीति नन्दा के मुताबिक, हल्का-फुल्का व्यायाम करें। बहुत अधिक फिजिकल एक्टिविटी करने से बचें। रोजाना 8-10 घंटे की नींद जरूर लें। अगर सीने में लगातार दर्द है, घबराहट महसूस कर रहे हैं, चेहरे या होठों पर नीलापन आ रहा है तो तत्काल डॉक्टर से सम्पर्क करें।

7. खतरा ज्यादा है, इसलिए हर सावधानी जरूर बरतें
एक नए शोध में पाया गया है कि कोरोना संक्रमण होने पर डायबिटीज के रोगियों को हृदय रोग भी हो सकता है। इसलिए संक्रमण से बचने के लिए हर जरूरी सावधानी बरतें, हाथों को दिन में कई बार साबुन से धोएं, मास्क लगाएं और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें।

8. खाने में ताजे फल, सब्जियां और अंकुरित अनाज शामिल करें
डॉ. नन्‍दा के अनुसार, अपनी खुराक में ताजा फल, सब्जियां, अंकुरित अनाज जरूर शामिल करें ये शरीर में एंटी आक्सीडेंट्स की मात्रा बढ़ाते हैं। रोजाना खाना समय पर खाएं। घर में बने भोजन को ही प्राथमिकता दें।

9. इनसे दूर रहें
खानपान में साफ्टड्रिंक, सोडा, फ्रूट जूस, सिरप, फ्लेवर्ड मिल्क, दही से परहेज़ रखें। अधिक तेल या मसाले वाला खाना लेने से बचें। बाहर से खाना मंगाने से बचें।

10. इसलिए डायबिटिक लोगों को खतरा ज्यादा

डायबिटीज के रोगियों में हर संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है। ऐसे रोगियों में इम्यून सिस्टम की कोशिकाओं (लिम्फोसाइट्स, न्यूट्रोफिल्स) की कार्य क्षमता कम हो जाती है। इस वजह से शरीर में एंटीबॉडीज कम बनती हैं। बीमारी से लड़ने की ताकत कम होने के कारण ये बाहरी चीजों (वायरस, बैक्टीरिया) को खत्म नहीं कर पाती नतीजा जान का जोखिम बढ़ता जाता है।



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Coronavirus Disease (COVID-19) Safety Advice For You On Diabetes and Stress; Here's Latest Advice


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प्लेन यात्रा के 8 दिन बाद एक कोरियाई महिला को हुआ संक्रमण, सिर्फ टॉयलेट इस्तेमाल करते समय उतारा था N95 मास्क

हवाई यात्रा के दौरान टॉयलेट इस्तेमाल करने पर कोरोना का संक्रमण होने का अपनी तरह का अनोखा मामला सामने आया है। साउथ कोरिया की रहने वाली 28 साल की महिला विमान में 300 यात्रियों के साथ थी। महामारी की घोषणा के बीच उसे 31 मार्च को इटली के मिलान शहर में उतरना पड़ा था। यह दावा साउथ कोरिया के रिसर्चर्स ने किया है।

सियोल की सुंचूंहयांग यूनिवर्सिटी में हुई रिसर्च के मुताबिक, महिला ने पूरी यात्रा के दौरान एन-95 मास्क पहन रखा था सिर्फ टॉयलेट का इस्तेमाल करते समय उसने इसे हटाया था।

6 पॉइंट्स कब और कैसे संक्रमित हुई

  • इमर्जिंग इंफेक्शियस डिसीज जर्नल में प्रकाशित खबर के मुताबिक, यात्रा के दौरान एक ऐसे यात्री ने टॉयलेट का इस्तेमाल किया, जो एसिम्प्टोमैटिक था। उसके बाद महिला जब टॉयलेट गई तो संक्रमित सतह को छुआ या कोरोना से संक्रमिण कणों के सम्पर्क में आई।
  • रिसर्चर्स का कहना है कि यह विमान यात्रा साउथ कोरिया के अधिकारियों ने कराई थी। इस दौरान प्लेन में बैठने से पहले सभी यात्रियों की जांच भी हुई थी।
  • कुल 310 यात्री मिलान एयरपोर्ट पर उतरे थे। इनमें से 11 में कोरोना के लक्षण दिखे थे और इन्हें प्लेन में वापसी की अनुमति नहीं दी गई थी।
  • मिलान से वापस प्लेन में पहुंचने वाले सभी यात्रियों को एन-95 मास्क दिए गए थे। बोर्डिंग से पहले सभी एक-दूसरे से 6 फीट की दूरी पर थे। सिर्फ खाना खाने और टॉयलेट का इस्तेमाल करने के अलावा पूरे समय तक सभी ने मास्क पहन रखे थे।
  • 11 घंटे की यात्रा के बाद जब 299 यात्री साउथ कोरिया पहुंचे को उन्हें दो हफ्ते के लिए क्वारैंटाइन किया गया। इनमें 6 में कोरोना की पुष्टि होने पर अस्पताल में भर्ती किया गया।
  • क्वारैंटाइन के 8वें दिन 28 साल की उस महिला में कोविड-19 के लक्षण दिखने शुरू हुए। उसे खांसी आई, नाक से पानी बहा और मांसपेशियों में दर्द हुआ। उसे 14वें दिन हॉस्पिटल में भर्ती किया गया।

महिला से 3 कतार पीछे बैठा था एसिम्प्टोमैटिक शख्स
रिसर्चर्स के मुताबिक, महिला को जिस एसिम्प्टोमैटिक शख्स से संक्रमण फैलने की बात की जा रही है वह उनसे तीन कतार (रो) पीछे बैठा था। मिलान शहर में महिला घर से बाहर नहीं निकली और 3 हफ्ते तक खुद को क्वारैंटाइन में रखा। रिसर्चर्स ने हिदायत दी कि विमान में यात्रा करते समय एसिम्प्टोमैटिक इंसान से भी कोरोना का संक्रमण होने का खतरा रहता है।



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यात्रा के दौरान 28 वर्षीय महिला ने मास्क सिर्फ टॉयलेट का इस्तेमाल करते वक्त और खाना खाते समय उतारा था। प्रतीकात्मक फोटो


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सामने आया रिया का झूठ, कहा; सुशांत को क्लॉस्ट्रोफोबिया था और उड़ान भरने से उन्होंने मोडिफिनिल दवा ली थी जबकि ये दवा इस रोग की है ही नहीं

सुशांत सिंह केस के मामले में नई उलझन सामने आई है। रिया चक्रबर्ती ने हाल ही में आजतक को दिए एक इंटरव्यू में अपनी यूरोप ट्रिप का जिक्र किया। रिया ने सुशांत पर बात करते हुए कहा कि उन्हें क्लॉस्ट्रोफोबिया था, पिछले साल यूरोप ट्रिप के लिए उड़ान भरने से पहले उन्होंने अपनी इस बीमारी से निपटने के लिए मोडाफिनिल नाम की दवा ली थी।
रिया के मुताबिक, सुशांत ने कहा था कि उन्हें प्लेन में बैठने से डर लगता है, इसलिए क्लॉस्ट्रोफोबिया से बचने के लिए मोडाफिनिल लेते हैं।

क्या होता है क्लॉस्ट्रोफोबिया
क्लॉस्ट्रोफोबिया एक तरह का डर है। इसके मरीजों को बंद जगहों में जाने से परेशानी या घुटन महसूस होती है। कुछ मरीजों इसका इतना असर होता है कि उन्हें हर तंग जगह जाने में बहुत ज्यादा डर लगता है। जैसे- लिफ्ट या एमआरआई मशीन

एक बयान से सामने आए रिया के दो झूठ

पहला झूठ : मोडाफिनिल दवा क्लाउस्ट्रोफोबिया के मरीजों को नहीं दी जाती है

  • मोडाफिनिल दवा क्लॉस्ट्रोफोबिया के मरीजों को दी ही नहीं जाती है। यह समस्या को और बढ़ा सकती है। मोडाफिनिल स्लीप डिसऑर्डर के मरीजों को प्रिस्क्राइब की जाती है।
  • जिन मरीजों को बहुत अधिक नींद आती है यह दवा उन्हें दी जाती है, ताकि इसे कम किया जा सके। कई बार लेटनाइट शिफ्ट में काम करने डॉक्टरी सलाह से इस दवा को लेते हैं। इसका कोई सम्बंध क्लॉस्ट्रोफोबिया से नहीं है।
  • अगर किसी इंसान को ऊंचाई या उड़ने से डर लगता है तो वह इस दौरान नींद लेना पसंद करेगा। इस बीच अगर मोडाफिनिल लेते हैं तो यह आपकी नींद को भगा देगी। मोडाफिनिल दवा से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें

दूसरा झूठ : बोइंग-737 विमान की ट्रेनिंग लेने वाले को ऊंचाई या बंद जगह से डर कैसे लग सकता है

  • सुशांत को ऊंचाई या प्लेन में बैठने से डर लगने वाली बात समझ से परे हैं। सुशांत के ऐसे कई वीडियो हैं जिसमें वे प्लेन चलाते हुए नजर आ रहे हैं। हवाई यात्रा के दौरान उनके हावभाव को देखकर बिल्कुल भी नहीं लगता है, उन्हें क्लॉस्ट्रोफोबिया है।
  • एक समय पर सुशांत बोइंग-737 को चलाना भी सीख रहे थे। वह ट्रेनिंग पूरी करने के लिए इसे खरीदाना भी चाहते थे। उन्होंने खुद अपनी ट्रेनिंग से जुड़ा एक वीडियो शेयर भी किया था।
  • सुशांत के साथ लम्बे समय तक रिलेशनशिप में रहीं एक्ट्रेस अंकित लोखंडे ने भी रिया के इस दावे को खारिज किया। अंकिता ने अपनी इंस्टाग्राम पोस्ट में लिखा, तुम हमेशा उड़ना चाहते थे, और ऐसा तुमने ऐसा किया थी। हम सभी को तुम पर गर्व है।

एक फिल्म के लिए सुशांत नासा से ट्रेनिंग लेकर भी लौटे थे।


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