Wednesday, August 26, 2020

हॉन्गकॉन्ग के शख्स को दोबारा कोरोना का संक्रमण हुआ, एक्सपर्ट बोले, कई बार वायरस का असर फेफड़े में रह जाता है इसलिए ऐसा हुआ; भारत में अब तक ऐसा मामला नहीं आया

पूरी दुनिया की नजर इन दिनों वैक्सीन पर टिकी हैं। इसी बीच हॉन्गकॉन्ग में कोरोना के दोबारा संक्रमण का मामला सामने आया है। यह दुनिया का पहला ऐसा मामला है, जब रिकवर होने के साढ़े चार महीने बाद दोबारा शख्स की कोविड-19 रिपोर्ट पॉजिटिव आई। जिस आईटी प्रोफेशनल में दोबारा कोरोना की पुष्टि हुई है वह स्पेन से लौटा था।

इस मामले में राम मनोहर लोहिया अस्पताल, नई दिल्ली के विशेषज्ञ डॉ. ए के वार्ष्‍णेय का कहना है कि इस मामले को लेकर चिंता करने की बात नहीं है। प्रसार भारती से बातचीत में उन्होंने कहा, हॉन्गकॉन्ग के एक शख्स को अप्रैल में कोरोना हुआ था, लेकिन अगस्त में वह फिर से संक्रमित हो गया। इस बार वायरस का अलग स्ट्रेन पाया गया।

कई बार वायरस अपना रूप बदलता है

डॉ. वार्ष्‍णेय ने कहा, कई बार ऐसा होता है कि वायरस अपना रूप बदल कर आता है। ऐसे में पहले वाली एंटीबॉडीज प्रभावी तौर पर अपना काम नहीं कर पातीं। दरअसल, कोरोना की जांच नाक और मुंह से की जाती है, कई बार वायरस का प्रभाव फेफड़े में रह जाता है। ऐसे में बाद में वह असर कर सकता है।

एक मामले से नतीजे पर पहुंचना सही नहीं
डॉ. वार्ष्‍णेय ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का इस पर कहना है कि यह दुनिया का पहला मामला है, इसलिए अभी इसे लेकर बहुत ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है। क्योंकि कई मामले ऐसे आए हैं, जिसमें व्यक्ति को दोबारा संक्रमण की बात कही जा रही है। ये अभी साफ नहीं हुआ कि वह उन लोगों को दोबारा संक्रमण पहले संक्रमण से पूरी तरह ठीक हो जाने के बाद हुआ, या उनके शरीर में पहले संक्रमण का वायरस मौजूद था। केवल एक मामला सामने आने के बाद नतीजे पर पहुंचना सही नहीं।

एंटीबॉडी की निश्चित सीमा
कोरोना से रिकवरी के बाद शरीर में तैयार हुईं एंटीबॉडीज दोबारा संक्रमण होने पर असर करेंगे या नहीं? इस सवाल पर डॉ. वार्ष्‍णेय ने कहा, वायरस या बैक्टीरिया के इंफेक्शन से लड़ने के लिए शरीर में एंटीबॉडीज बनती हैं। अलग-अलग बीमारी के एंटीबॉडीज बनने का का समय अलग-अलग होता है।
माना जा रहा है कि कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ने में सक्षम एंटीबॉडी 3-4 महीने बाद कम होने लगते हैं। लेकिन किसी को दोबारा संक्रमण होने का भारत में कोई केस अभी तक नहीं आया है। जबकि भारत में इस वायरस को आए करीब 6 महीने हो रहे हैं।
ऐसे सामने आया हॉन्गकॉन्ग का मामला

33 वर्षीय शख्स में दोबारा संक्रमण का मामला स्क्रीनिंग के बाद सामने आया है। वह इसी महीने यूरोप से लौटा था और हॉन्गकॉन्ग एयरपोर्ट पर स्क्रीनिंग के दौरान पीसीआर टेस्ट हुआ। जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आई। मामला चौकाने वाला था क्योंकि यह शख्स साढ़े चार महीने पहले ही कोरोना से रिकवर हो चुका था। माना जा रहा था कि इसमें कोरोना से लड़ने के लिए इम्युनिटी विकसित हो गई होगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

रिकवरी के बाद मास्क लगाना, हाथ धोना और सोशल डिस्टेंसिंग न भूलें

इस मामले पर रिसर्च करने वाले हॉन्गकॉन्ग यूनिवर्सिटी के माइक्रोबायोलॉजिस्ट केल्विन काय-वेंग के मुताबिक, रिकवर होने के बाद कोविड-19 के मरीजों को यह नहीं सोचना चाहिए कि दोबारा संक्रमण नहीं हो सकता। इलाज के बाद भी मास्क लगाने, सोशल डिस्टेंसिंग बरतने और हाथों को धोना न छोडें।

दोबारा संक्रमण कैसे हुआ, जीनोम कोडिंग से समझने की कोशिश जारी

हॉन्गकॉन्ग यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि दोबारा संक्रमण कैसे हुआ। इसके लिए कोरोना वायरस के दो स्ट्रेन की जेनेटिक कोडिंग का विश्लेषण किया जा रहा है। इसमें पहला वायरस वह है जिसका सैम्पल मार्च और अप्रैल में लिया गया था। और दूसरा स्ट्रेन वह है जो यूरोप में पाया गया है। यहीं मरीज जुलाई और अगस्त में मौजूद था।

हॉन्गकॉन्ग के शोधकर्ता का कहना है कि दोनों स्ट्रेन काफी अलग हैं। वायरस हर समय खुद को बदलता (म्यूटेट) रहता है।

रिकवरी के बाद कोरोना के टुकड़े कई हफ्तों तक शरीर में रहते हैं

इससे पहले हुई रिसर्च में शोधकर्ताओं ने दावा किया कि कोरोना से रिकवर होने के बाद मरीज में इसके टुकड़े कई हफ्ते तक रहते हैं, इस कारण शख्स की रिपोर्ट पॉजिटिव आ सकती है। इससे पहले कोरोना के दोबारा संक्रमण के मामले मिले हैं लेकिन किसी की कोविड-19 रिपोर्ट पॉजिटिव नहीं आई थी। लेकिन हॉन्ग-कॉन्ग वाले मामले में रिपोर्ट पॉजिटिव आई है।



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