कोरोनाकाल में महिलाएं बच्चों को ब्रेस्टफीडिंग कराने में हिचक रही हैं। ब्रेस्टफीडिंग कराना शिशु के साथ मां की सेहत के लिए भी जरूरी है। बिहार के बेगूसराय की आईसीडीएस डीपीओ रचना सिन्हा के मुताबिक, शिशु को जन्म से छह माह तक मां का दूध मिलना बेहद जरूरी है। इससे मां में ब्रेस्ट और ओवरी कैंसर का खतरा घटता है।
शिशु में डायरिया और निमोनिया का खतरा घटता है
कोरोना महामारी के दौरान सुरक्षा के साथ ब्रेस्टफीडिंग को बढ़ावा देने के लिए स्वास्थ्य विभाग एवं आईसीडीएस मिलकर महिलाओं को जागरुक कर रहा है। आईसीडीएस डीपीओ रचना सिन्हा कहती हैं, मां के दूध से बच्चों को उनकी जरूरत के मुताबिक एनर्जी मिलती है। इससे डायरिया और निमोनिया का खतरा 11 से 15 गुना तक कम हो जाता है। मां भी स्वस्थ रहती है।
हाल ही में कैंसर पर प्रकाशित हुई आईसीएमआर की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में सबसे ज्यादा महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर होता है। ब्रेस्ट कैंसर के केस बढते जा रहे हैं।
कमजोर नहीं है तो संक्रमित मां भी करा सकती हैंं स्तनपान
एक हालिया रिसर्च के मुताबिक, अगर कोई महिला कोरोना से संक्रमित हो चुकी हैं और वह इलाज करा रही है तो भी जरूरी सावधानी बरतते हुए ब्रेस्टफीडिंग करा सकती है। ब्रेस्ट फीडिंग से पहले हाथों को अच्छी तरह धोएं। स्तन पर साफ करें और मास्क लगाने के बाद ही ब्रेस्टफीडिंग कराएं।
WHO ने भी कहा, कोरोनाकाल में ब्रेस्टफीडिंग न रोकें माएं
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) कहता है- हां, वह ऐसा कर सकती है लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है, जैसे ब्रेस्टफीड कराते समय मास्क पहनें, बच्चे को छूने से पहले और बाद में हाथ जरूर धोएं। अगर कोरोना से संक्रमित हैं और बच्चे को ब्रेस्टफीड कराने की स्थिति में नहीं है तो एक्सप्रेसिंग मिल्क या डोनर ह्यूमन मिल्क का इस्तेमाल कर सकती हैं।
क्यों नवजात तक नहीं पहुंच रहा मां का दूध और यह कितना जरूरी है
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नवजात और मां के दूध के बीच बढ़ती दूरी के कई कारण गिनाए हैं। डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ की संयुक्त रिपोर्ट के मुताबिक, ज्यादातर मामले निचले और मध्यम आमदनी वाले देशों में सामने आ रहे हैं। दूसरी सबसे बड़ी वजह भारत समेत कई देशों में फार्मा कंपनियों का ब्रेस्टमिल्क सब्सटीट्यूट का आक्रामक प्रचार करना भी है।
- स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ मीता चतुर्वेदी के मुताबिक, नवजात के जन्म के तुरंत बाद निकलने वाला मां का पहला पीता दूध कोलोस्ट्रम कहलाता है। इसमें प्रोटीन, फैट, कार्बोहाइड्रेट और कैल्शियम अधिक मात्रा में पाया जाता है। यह नवजात की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर संक्रमण से बचाता है।
- स्तनपान मां में ब्रेस्ट-ओवेरियन कैंसर, टाइप-2 डायबिटीज और हृदय रोगों का खतरा घटाता है। ब्रेस्ट कैंसर से होने वाली 20 हजारे मौंतें सिर्फ बच्चे को स्तनपान कराकर ही रोकी जा सकती हैं।
- ज्यादा ब्रेस्ट फीडिंग कराने से मां की कैलोरी अधिक बर्न होती है, जो डिलीवरी के बाद बढ़ा हुआ वजन कम करने में मदद करता है। इस दौरान मांओं के शरीर से ऑक्सीटोसिन निकलता है, जिससे उनका तनाव भी कम होता है।
- डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, बच्चे जन्म के पहले घंटे से लेकर 6 माह की उम्र तक स्तनपान कराना चाहिए। 6 महीने के बाद बच्चे के खानपान में दाल का पानी और केला जैसी चीजें शामिल करनी चाहिए। उसे दो साल तक दूध पिलाया जा सकता है।
- स्त्री रोग विशेषज्ञ के मुताबिक, मां को एक स्तन से 10-15 मिनट तक दूध पिलाना चाहिए। शुरुआत के तीन-चार दिन तक बच्चे को कई बार स्तनपान कराना चाहिए क्योंकि इस दौरान दूध अधिक बनता है और यह उसके लिए बेहद जरूरी है।
- ब्रेस्टफीडिंग के दौरान साफ-सफाई का अधिक ध्यान रखें। शांत और आराम की अवस्था में भी बच्चे को बेस्टफीडिंग कराना बेहतर माना जाता है।
- बच्चा जब तक दूध पीता है, मां को खानपान में कई बदलाव करना चाहिए। डाइट में जूस, दूध, लस्सी, नारियल पानी, दाल, फलियां, सूखे मेवे, हरी पत्तेदार सब्जियां, दही, पनीर और टमाटर शामिल करना चाहिए।
कब न कराएं ब्रेस्टफीडिंग
अगर मां एचआईवी पॉजिटिव, टीबी की मरीज या कैंसर के इलाज में कीमोथैरेपी ले रही है तो ब्रेस्टफीडिंग नहीं करानी चाहिए। अगर नवजात में गैलेक्टोसीमिया नाम की बीमारी पाई गई है तो मां को दूध नहीं पिलाना चाहिए। यह एक दुर्लभ बीमारी है जिसमें बच्चा दूध में मौजूद शुगर को पचा नहीं पाता। इसके अलावा अगर माइग्रेन, पार्किंसन या आर्थराइटिस जैसे रोगों की दवा पहले से ले रही हैं तो डॉक्टर को जरूर बताएं।
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