Thursday, April 30, 2020

चीनी शोधकर्ताओं का दावा, फेफड़े में छिपा रह सकता है कोरोना; चीन में इलाज के 70 दिन बाद मरीजों में मिला वायरस

कोरोना के इलाज के बाद वायरस फेफड़े में लम्बे समय तक छिपा रह सकता है। चीनी शोधकर्ताओं के मुताबिक, चीन में ऐसे मामले भी सामने आए जब हॉस्पिटलसे डिस्चार्ज होने के बाद 70 दिन बाद मरीज पॉजिटिव मिला। साउथ कोरिया में इलाज के बाद 160 लोग कोरोना पॉजिटिव मिले। ऐसे ही मामले चीन, मकाउ, ताइवान, वियतनाम में भी सामने आ चुके हैं।

जांच रिपोर्ट भी निगेटिव आ सकती है
कोरिया सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के डायरेक्टर जियॉन्ग यूं-कियॉन्ग का कहना है, कोरोना वायरस दोबारा मरीज को संक्रमित करने की बजाय रि-एक्टिवेट हो सकता है। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोनावायरस फेफड़े में अंदर गहराई में रह सकता है। ऐसा भी हो सकता है कि यहजांच रिपोर्ट में पकड़ में न आए।



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Coronavirus can stay hidden in lungs after patients recover: Study


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एंटीवायरल नेजल स्प्रे से कोरोना को रोकने की तैयारी, ब्रिटिश शोधकर्ताओं ने कहा- mCBMs ड्रग मास्क की तरह; यह नाक में वायरस की एंट्री ब्लॉक करता है

ब्रिटिश शोधकर्ताओं कहना है कि एंटीवायरल नेजल स्प्रे का इस्तेमाल किया जाए तो कोरोनावायरस को फेफड़ों तक पहुंचने से रोका जा सकता है। रिसर्च में इसकी पुष्टि भी हुई है। ब्रिटेन की सेंट एंड्रयू यूनिवर्सिटी में अलग-अलग तरह कोरोना का संक्रमण रोकने पर 3 तरह की रिसर्च की गई। रिसर्च टीम के प्रमुख प्रो. गैरे टेलर का कहना है कि आमतौर पर एंटीवायरल्स ड्रग वायरस के कुछ हिस्सों पर काम करते हैं लेकिन हमने जो ड्रग इस्तेमाल किया है वह कोरोना को कोशिकाओं में घुसने से रोकता है।

मास्क की तरह काम करता है ड्रग
शोधकर्ताओं में रिसर्च में न्यूमिफिल और मल्टीवैलेंट कार्बोहाइड्रेट बाइंडिंग मॉलीक्यूल्स (mCBMs) नाम के ड्रग का इस्तेमाल किया। न्यूमिफिल ड्रग आमतौर पर सांस से जुड़े रोगों में इस्तेमाल किया जाता है। प्रो. गैरे के मुताबिक, रिसर्च के दौरान हमने हर दूसरे दिन नेजल स्प्रे का प्रयोग किया। यह ड्रग नाक के रिसेप्टर्स पर मास्क की तरह काम करता है और वायरस की एंट्री को ब्लॉक करता है।

बचाव और इलाज दोनों में कारगर mCBMs
शोधकर्ताओं के मुताबिक, रिसर्च में पाया गया कि मल्टीवैलेंट कार्बोहाइड्रेट बाइंडिंग मॉलीक्यूल्स नए कोरोनावायरस की संख्या घटाता है चाहें इस ड्रग का इस्तेमाल बचाव के लिए करें या संक्रमण के इलाज के तौर पर करें।


जल्द शुरू होगा क्लीनिकल ट्रायल
mCBMs को तैयार करने फार्मा कंपनी न्यूमेजेन के चीफ एग्जीक्यूटिव डग्लस थॉम्पसन का कहना है कि रिसर्च के परिणाम सकारात्मक रहे हैं और यह ड्रग काफी कारगर साबित हुआ है। फार्मा कंपनी न्यूमेजेन इंग्लैंड की हेल्थ एजेंसी और ग्लासगो यूनिवर्सिटी के साथ भी काम कर रही है। जल्द ही इसमें लिए क्लीनिकल ट्रायल शुरू किया जाएगा।



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Antiviral nasal sprays prevent corona from reaching the body via the nose, British researchers claim, mCBMs resemble drug masks


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प्लास्टिक, मेटल और कागज पर भी जिंदा रहता है कोरोनावायरस, इसलिए लिए इनको छुएं तो हाथ जरूर धोएं, बाहर निकलें तो मास्क लगाएं : एक्सपर्ट

कोरोनावायरस सिर्फ ड्रॉपलेट्स से फैलता है या हवा में मौजूद रहता है, ट्रिपल लेयर मास्क का इस्तेमाल कब करें और गांवों में संक्रमण के मामले कम क्यों हैं...ऐसे कई सवालों के जवाब डॉ. नरिंदर पाल सिंह, एमडी, मैक्स हॉस्पिटल, गाजियाबाद ने आकाशवाणी को दिए। जानिए कोरोना से जुड़े वो जवाब, जो आपके लिए जानने जरूरी हैं....


#1) क्या कोई वायरस के ड्रॉपलेट से ही संक्रमित हो सकता है या हवा से भी फैलता है?
अगर वायरस से संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने से ड्रॉपलेट यहां-वहां बिखर गया है तो वहां संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है। इसलिए बाहर जाएं तो मास्क जरूर लगाएं। बाहर से घर आने पर कुछ भी छूने से पहले हाथ धोएं। हवा में ड्रॉपलेट फैलते हैं, अब तक इसका कोई प्रमाण नहीं मिला है।

#2) किसी भी वस्तु या प्लास्टिक या कागज पर कोरोनावायरस कितनी देर तक जिंदा रहता है?
अलग-अलग वस्तुओं पर वायरस की समय-सीमा अलग-अलग है। जैसे मेटल या स्टील पर वायरस ज्यादा देर तक जिंदा रहता है। इसके अलावा प्लास्टिक पर भी देर तक यह बना रहता है। इसीलिए कहा जा रहा है कि अगर पन्नी में भी सामान लेकर आ रहे हैं तो उसे बाहर ही रखा दें। हाथ धोएं और पन्नी को नष्ट कर दें। कागज पर ये वायरस कम देर तक रहता है लेकिन आप यह पता नहीं कर पाएंगे कि यह इस पर कब आया है इसलिए सावधानी बरतें।

#3) ट्रिपल लेयर मास्क क्या है, यह किसके लिए जरूरी है?
मास्क कई तरह के हैं। जैसे अगर आप किसी गमछा, रुमाल, या कपड़े से मुंह, नाक ढक लेते हैं तो बाहर जाने पर सुरक्षित रहेंगे। लेकिन किसी संक्रमित के संपर्क में आ रहे हैं या भीड़ में जा रहे हैं तो उसके लिए ट्रिपर लेयर मास्क की जरूरत होती है। आवश्यक सेवाओं में लगे लोगों के लिए ट्रिपल मास्क जरूरी है। आम इंसानों के लिए साधारण या घर का बना मास्क ही काफी है। जो डॉक्टर्स कोरोना पीड़ितों के सम्पर्क में हैं उनके लिए एन-95 मास्क जरूरी है।

#4)क्या भारत में कोरोनावायरस की रिकवरी का आंकड़ा बढ़ा है?
अगर कोरोनावायरस का संक्रमण किसी में हो रहा है तो ज्यादातर लोगों में सामान्य सर्दी-जुकाम की तरह ही यह असर कर रहा है। ऐसे लोग बहुत जल्दी ठीक हो रहे हैं। हां, हमारे यहां ठीक होने में मरीजों को समय लगता है। लेकिन मौत का आंकड़ा दूसरे देशों की तुलना में काफी कम है। यह वायरस केवल पांच प्रतिशत लोगों को ही गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है, उसमें भी जिन्हें पहले से कोई बीमारी है या थोड़ा बुजुर्ग हैं।

#5)वायरस से ठीक होकर वापस जाने वाले मरीजों को आसपास के लोग जल्दी स्वीकार नहीं करते?
जो लोग ठीक होकर आ रहे हैं वो तो सबसे ज्यादा सुरक्षित हैं क्योंकि उनका दो बार टेस्ट होता है, जिसमें वे निगेटिव आते हैं। लेकिन जो सामान्य लोग हैं उनमें ज्यादा खतरा है क्योंकि बार उनमें लक्षण नहीं दिखाई देते। कई जगहों पर ऐसे मामले सामने आए हैं जहां लोगों का ठीक हो चुके लोगों के प्रति रवैया बुरा है। कृपया ऐसा न करें।

#6)गांव की तुलना में शहर में वायरस का प्रकोप ज्यादा क्यों है?
जहां-जहां सोशल डिस्टेंसिंग कम है या भीड़-भाड़ वाले शहर हैं, वहां संक्रमण का खतरा ज्यादा है। लेकिन ऐसी जगह, जहां ज्यादा भीड़ नहीं है, लोग एक-दूसरे से दूर हैं वेकाफी हद तक सुरक्षित हैं। गांव में ऐसा ही होता है और सोशल डिसटेंसिंग बनी रहती है। इसलिए संक्रमण के मामले वहां कम हैं।


#7)आजकल कैसी डाइट लें जिससे इम्युनिटी बढ़े?
एक दिन में इम्युनिटी नहीं बढ़ती लेकिन अगर रोजाना फल, सब्जी के जूस लें तो रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है। डाइट में दूध जरूर शामिल करें। इस दौरान लिक्विड डाइट अधिक लें। बाहर नहीं जा सकते हैं इसलिए घर में भी वर्कआउट करें। घर में भी अधिक तेल वाली चीज या फस्ट फूड न खाएं।


#8)अगर एक कमरे में 5-6 लोग एक साथ रह रहे हैं तो सोशल डिस्टेंसिंग कैसे करें?
एक कमरे में अगर ज्यादा लोग हैं तोसोशल डिस्टेंसिंग मुश्किल है लेकिन एक घर में रहते हुए सावधानी बरत सकते हैं जिससे संक्रमण न हो। कई लोग साथ में हैं तो मास्क लगाकर रखें, बाहर से आने पर हाथ धोएं। कम से कम एक मीटर की दूरी बनाकर रखें। फोन में आरोग्य सेतु ऐप जरूर रखें यह लोगों को कोरोना संक्रमित से अलर्ट करता रहेगा।



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Coronavirus In India Update; Frequently Asked Questions (Faqs) In Hindi On What is Corona virus droplets, triple layer mask; Coronavirus recovery data in India


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हाईजीन से जुड़ी कुछ ऐसी आदतें जिसे पुरुषों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, जानें घर पर कैसे मेंटेन करें पर्सनल हाईजीन

देशभर में कोविड-19 के कारण लॉकडाउन जारी है। ऐसे में सभी लोग घरों में बंद हो गए हैं और काफी लोग घर से ही काम कर रहे हैं। साथ ही सभी घर से बाहर जाने पर खुद को सैनिटाइज करने और नियमित रूप से हाथ साफ करने पर पूरा ध्यान दे रहे हैं। लेकन इस दौरान घर में रहने से हम में आलस्य आ रहा है, जिसके कारण हम पर्सनल हाईजीन से जुड़ी कुछ बुनियादी मामले नजरअंदाज कर रहे हैं।

निजी हाईजीन के मानकमहिलाओं की अपेक्षापुरुषों में कम

हाईजीन के प्रति पुरुषों और महिलाओं के रुख अलग हैं। और माना जाता है कि पुरुषों के निजी हाईजीन और सजने-संवरने के मानक महिलाओं के मुकाबले कम होते हैं। 2010 में अमेरिकन क्लीनिंग इंस्टीट्यूट और अमेरिकन माइक्रोबायोलॉजी सोसाइटी के एक अध्ययन ने पाया कि किसी जानवर को सहलाने, खाद्यपदार्थ को छूने खांसने या झींकने के बाद भी पुरुषों के हाथ धोने की संभावना कम रहती है।

सीके बिरला हॉस्पीटल के कंसलटैंट इंटरनल मेडिसिन, डॉ. तुषार तायल से जानें ,हाईजीन से जुड़े छह गोल्डन रूल जिन्हें व्यवहार में लाना चाहिए

  • फेशियल हाईजीन (चेहरे की सफाई) – घर में रहते हुए भी रोज कम से कम दो बार अपने चेहरे को जरूर साफ करें। इसके लिए फेशियल क्लिंजर या फेश वॉश का उपयोग करें। साबुन, बॉडी जेल या बॉडी स्क्रब का उपयोग नहीं करें। इससे आपकी त्वचा आवश्यक नमी से मुक्त हो जाएगी और इसका प्राकृतिक पीएच संतुलन गड़बड़ा जाएगा। इससे त्वचा रुखी-सूखी लगेगी और आप परेशानी महसूस करेंगे। आप फेशियल मास्क जैसे मड, क्ले, घर में बने या ओटमील के मास्क का भी उपयोग कर सकते हैं। हर तरह की त्वचा के लिए मास्क उपलब्ध हैं। इससे आपकी नाक और गालों पर तथा कभी-कभी ठुड्डी और कान पर पाए जाने वाले ब्लैकहेड को भी हटाना संभव होता है।
  • डेंटल हाईजीन (दांतों की सफाई) – यह एक ऐसा मामला है जो बड़े आराम से उपेक्षित छोड़ दिया जाता है। मुंह का स्वास्थ्य निजी हाईजीन का अहम हिस्सा है। आपको रोज दो बार ब्रश करना चाहिए। जीभ को रोज एक बार फ्लॉस या स्क्रब करना चाहिए। यह शरीर का सबसे उपेक्षित हिस्सा है। इसे कायदे से साफ नहीं किया जाए तो बैक्टीरिया के लिए जबरदस्त है। और ये मुंह में पड़े रहते हैं और इकट्ठा होते हैं। इसलिए, सांसों की बदबू से बचने के लिए जीभ साफ कीजिए और खाद्य पदार्थों के खराब होने से बनने वाली कैविटी से बचिए।
  • हेयर हाईजीन (बालों की सफाई) – यह महत्वपूर्ण है कि सिर और चेहरे के बाल, नाक के बालों समेत ट्रिम किए और ठीक से संवारे हुए रहें। नियमित रूप से शेव कीजिए और दाढ़ी मूंछ ग्रूम करने करने वाले उत्पादों का उपयुक्त रूप से इस्तमाल कीजिए। बगलों के और गुप्तांगों के बाल भी ट्रिम करके रखें।
  • वर्कआउट (व्यायाम) के बाद शावर लेने (नहाने) में देर न करें - व्यायाम के दौरान निकलने वाला पसीना आपके रोमछिद्रों को बंद कर सकता है। इससे तेल और मृत त्वचा की कोशिकाएं अंदर ही रह जाएंगी। इससे मुंहासे और तकलीफदेह सिस्टिक पिम्पल होते हैं। यह न सिर्फ आपके चेहरे पर होगा बल्कि पीठ, बांह और पैरों पर भी होगा। एक मात्र समाधान यह है कि शावर में घुसिए और खुद पर किसी अनुशंसित बॉडी वॉश से झाग बनाइए। इसमें सैलिसिलिक एसिड या बेनजॉयल पेरोक्साइड हो। गर्म पानी का उपयोग करने से बचिए। गर्म पानी से नहाने से शुष्की, लाली, खुजली हो सकती और संभव है, त्वचा उतरने लगे। इसलिए हमेशा गुनगुने पानी का ही उपयोग करें।
  • नीचे अंदर तक साफ-सफाई रखिए - गुप्तांगों के आस-पास नीचे तक की जगह को भूलना नहीं चाहिए। यह जगह अमूमन नम रहती है, गर्म और अंधेरी भी। यह सब बैक्टीरिया के बढ़ने के लिए बेहद अनुकूल है। वहां बैक्टीरिया की मौजूदगी दुर्गन्ध और त्वचा के संक्रमण का कारण बन सकती है। इसलिए, इस जगह को नियमित रूप से साफ कीजिए और हल्के-हल्के अच्छी तरह पोंछ दीजिए। पूरी जगह को सुखाकर एंटीफंगल डस्टिंग पावडर लगाइए। ऐसे अंडरवीयर पहनिए जिसमें हवा अच्छी तरह जाती-जाती हो।
  • अपना तौलिया नियमित बदलिए और चादर खूब साफ रखिए – आमतौर पर ये पॉलिएस्टर / कॉटन ब्लेंड से बने होते हैं, जिसमें दुर्गन्ध फंसा रह जाता है।
  • पैरों की साफ-सफाई (हाईजीन) – अगर आपके के पैर के नाखूनों में गंदगी जमा होने लगी है तो यह उन्हें काटने का संकेत है। नाखून काटिए किनारे गोल कीजिए और साफ रखिए। त्वचा को कोमल और फटने से बचाने के लिए हैंड लोशन लगाइए।
  • मॉयश्चराइज कीजिए – शरीर में लोशन लगाना और होंठो को मॉयश्चराइज करना सिर्फ महिलाओं की जरूरत नहीं है। होंठों को गीला रखने के लिए चाटने से बचिए। इससे आपका मुंह सूख जाएंगा और त्वचा खराब या रुखी हो जाएगी।

ग्रूमिंग की आदत उन चीजों में एक है जिसके बारे में माना जाता है कि हर कोई जानता है पर इसके बारे में खुलकर कोई बात नहीं करता है। आपकी त्वचा की किस्म के मद्देनजर आपको किन व्यवहारों का पालन करना चाहिए इस बारे में अपने चिकित्सा पेशेवरों से चर्चा करने में मत शर्माइए।



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Some hygiene-related habits that men should not ignore, learn how to maintain personal hygiene at home


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दो साल से ल्यूकेमिया से जूझ रहे थे ऋषि कपूर, यह एक तरह का ब्लड कैंसर जिसमें शरीर को बचाने वाली कोशिकाएं ही जानलेवा बन जाती हैं 

अभिनेता इरफान खान के बाद ऋषि कपूर भी नहीं रहे। वे 67 साल के थे। गुरुवार सुबह मुंबई के एचएन रिलायंस फाउंडेशन हॉस्पिटल में उनका निधन हो गया।ऋषि कपूर दो साल से ल्यूकेमिया से जूझ रहे थे जो एक तरह ब्लड कैंसर होता है। ब्लड कैंसर खून बनाने वाले ऊतकों का कैंसर होता है जिसमें बोन मैरो भीशामिल है। इलाज की बात स्वीकारते हुए ऋषि कपूर ने अपने अंतिम इंटरव्यू में कहा था जैसे लोग लिवर, किडनी और हार्ट की बीमारी से जूझते हैं वैसे मेरा मैरो ट्रीटमेंट चल रहा है। जानिए क्या है ल्यूकेमिया...,

Q&A : सवालों से समझिए कितना खतरनाक है ल्यूकेमिया

#1) क्या होता है ल्यूकेमिया?
यह एक तरह का ब्लड कैंसर है जिसे क्रॉनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया (सीएलएल) भी कहते है। आमतौर पर शरीर में मौजूद व्हाइट ब्लड सेल्स शरीर की रोगों सेलड़ने की क्षमता को बढ़ाती हैं लेकिन ल्यूकेमिया की स्थिति में असामान्य रूप से इन कोशिकाओं की संख्या बढ़ने लगती है। इनका आकार बदलने लगता है। धीरे-धीरे रोगों से लड़ने की क्षमता यानी इम्युनिटी घटने लगती है। इसके ज्यादातर मामले बढ़ती उम्र के लोगों में सामने आते हैं।

#2) क्या बदलाव दिखने पर अलर्ट हो जाएं?
ल्यूकेमिया की सटीक वजह क्या है यह अब साफ नहीं हो पाया है लेकिन कुछ लक्षण ऐसे है जिसके दिखने पर अलर्ट हो जाना चाहिए, जैसे-

  • तेजी से वजन का घटना
  • हर समय थकान महसूस होना
  • बार-बार शरीर में संक्रमण का फैलना या बीमारी होना
  • सिरदर्द महसूस होना
  • त्वचा पर धब्बे
  • हड्‌डी में दर्द महसूस होना
  • अधिक पसीना निकलना (खासतौर पर रात में)


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Rishi Kapoor Death News Updates; What Is Leukemia Blood Cancer? What Are The Symptoms?


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दोनों दिग्गजों के कैंसर से जूझने की कहानी एक जैसी, दो साल ट्रीटमेंट चला; इलाज सफल होने की खबर आई और फिल्में की पर अचानक अलविदा कह गए

कैंसर फिल्म जगत के दो दिग्गज कलाकार इरफान खान और ऋषि कपूर को निगल गया। दोनों ही दो साल से इससे जूझ रहे थे और लगभग इलाज सफल होने की खबरें भी आईं। फिल्म जगत में वापसी हुई और फिल्में भी की लेकिन अचानक 22 घंटे के अंदर दुनिया को अलविदा कह गए। दोनों ही दिग्गजों की बीमारी का सफर एक जैसा ही रहा। जानिए कैसे शुरू हुई उनकी कैंसर की कहानी...

ऋषि कपूर : लम्बे समय बाद न्यूयॉर्क से लौटे, फिल्में की और अचानक अलविदा कह गए

फरवरी 2018 : निमोनिया ने जकड़ा और दिल्ली में भर्ती हुए
ऋषि कपूर की तबियत बिगड़ने की शुरुआत फरवरी 2018 में हुई जब उन्हें सांस लेने में तकलीफ हुई। उस दौरान वह दिल्ली में फैमिली फंक्शन में पहुंचे थे। उन्हें दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती किया गया। वह निमोनिया के संक्रमण से जूझ रहे थे, यह बात उन्होंने खुद मानी, हालांकि रिपोर्ट पॉजिटिव नहीं आई थी।ऋषि कपूर ने बीमारी की जानकारी देते हुए कहा था, मुझे बुखार है और जांच हो रही है। डॉक्टर्स ने हालात खराब होने की वजह निमोनिया बताया था, जिसका इलाज हो गया है। लोग तरह-तरह के कयास लगा रहे हैं। मैं उन सभी अटकलों को रोकते हुए आपको एंटरटेन करना चाहता हूं, आपको प्यार करता है। फिलहाल में अब मुम्बई में हूं।

अक्टूबर 2018 : भाई रणधीर ने इलाज की पुष्टि की
ऋषि कपूर को कैंसर होने की पहली खबर 3 अक्टूबर 2018 को आई। भाई रणधीर कपूर ने बताया कि ऋषि सितंबर में इलाज कराने के लिए अमेरिका गए। वह ल्यूकीमिया से लड़ रहे थे, जोकि एक तरह का ब्लड कैंसर होता है।अमेरिका में उनका मैरो ट्रीटमेंट चल रहा था। इलाज के कारण वह अपनी मां को अंतिम विदाई देने भारत नहीं आ पाए थे। वह न्यूयॉर्क से 11 महीने 11 दिन के बाद इलाज कराकर लौटे तो ट्वीट किया 'घर वापस आ गया'।

अंतिम इंटरव्यू : 'लोग लिवर, दिल की बीमारी से जूझते हैंमेरा मैरो ट्रीटमेंट चला'
ऋषि ने अपने अंतिम इंटरव्यू में बीमारी से जुड़ी बातों का खुलासा किया था। उन्होंने कहा, जब हम बुरे दिनों की बात करते हैं तो इसका मजतब कोई सर्जरी या दर्द नहीं होता। इसका तरह का कुछ भी नहीं होता। जैसे लोगों को किडनी, लिवर और दिल से जुड़ी बीमारियां होती हैं मुझे मैरो की समस्या थी। जिसका इलाज हुआ। यह कोई गंभीर विषय नहीं है। दो बार लम्बा इलाज चला इस दौरान वह (नीतू) मेरे साथ रहीं। हम अपने शहर आए और गए। आप बार-बार लम्बी दूरी की यात्रा नहीं कर सकते है। इसलिए लम्बे समय तक वहां रहा। मेरा वहां इलाज चला और यह सफल रहा। आप सभी लोगों को दुआ का धन्यवाद, इसने मुझे लड़ने का साहस मिला।

इरफान खान: 5 मार्च 2018 को कैंसर की जानकारी दी, लिखा-जिंदगी पर आरोप नहीं कि हमें वह नहीं दिया जिसकी हमें उससे उम्मीद थी

अफवाहों पर फुल स्टॉप लगाया और लिखा- नई कहानियों के साथ लौटूंगा

इरफान खान ने 5 मार्च 2018 को ट्वीट कर उनकी बीमारी को लेकर लग रहे कयास पर विराम लगा दिया था। ट्वीट में लिखा था, मुझे न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर होने का पता चला। इसे स्वीकार करना आसान नहीं है, लेकिन मेरे आसपास मौजूद लोगों के प्यार और मेरी इच्छाशक्ति ने मुझे उम्मीद दी है।""आप सभी मेरे लिए दुआएं कीजिए। इस बीच उड़ी अफवाहों की बात करूं तो न्यूरो शब्द का इस्तेमाल हमेशा ब्रेन के लिए ही नहीं होता और रिसर्च के लिए गूगल से आसान रास्ता नहीं है। जिन लोगों ने मेरे लिखने का इंतजार किया, उम्मीद है उन्हें बताने के लिए कई कहानियों के साथ लौटूंगा।''

'कभी-कभी आप एक झटके से जागते हैं'
इरफान खान ने अपने ट्वीट में लिखा था था- "कभी-कभी आप एक झटके से जागते हैं। पिछले 15 दिन मेरे जीवन की सस्पेंस स्टोरी है। मैं दुर्लभ बीमारी से पीड़ित हूं। मैंने जिंदगी में कभी समझौता नहीं किया। मैं हमेशा अपनी पसंद के लिए लड़ता रहा और आगे भी ऐसा ही करूंगा।''"मेरा परिवार और दोस्त मेरे साथ हैं। हम बेहतर रास्ता निकालने की कोशिश कर रहे हैं। जैसे ही सारे टेस्ट हो जाएंगे, मैं आने वाले दस दिनों में अपने बारे में बात दूंगा। तब तक मेरे लिए दुआ करें।''

न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर क्या है?
न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर उस अवस्था को कहते हैं, जिसमें शरीर में हार्मोन पैदा करने वाले न्यूरोएंडोक्राइन सेल्स बहुत अधिक या कम हार्मोन बनाने लगती हैं। इस ट्यूमर को कारसिनॉयड्स भी कहते हैं।यह शरीर के कई हिस्सों में हो सकता है, जैसे कि लंग्स, गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट, थायरॉयड या एड्रिनल ग्लैंड। ट्यूमर शरीर के किस हिस्से में है, इसके आधार पर इसका प्रकार तय होता है। वहीं, अगर बीमारी का पता वक्त से लग जाए तो इलाज संभव है।

तीन प्रकार का होता है ये ट्यूमर
1) गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर: यह ट्यूमर गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट के किसी भी हिस्से में हो सकता है, जिसमें बड़ी आंत और एपेंडिक्स शामिल है।
2) लंग न्यूरोजएंडोक्राइन ट्यूमर: यह फेफड़ों में होने वाला ट्यूमर है। जिसमें खांसी के दौरान ब्लड आना और सांस लेने में दिक्कत होती है।
3) पेंक्रियाटिक न्यूरोजएंडोक्राइन ट्यूमर: यह पेंक्रियास में होने वाला ट्यूमर है। हार्मोन से जुड़ाव के कारण ब्लड शुगर काफी प्रभावित होता है।

क्यों होता है यह ट्यूमर ?
न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर होने की कई वजह हैं। इनमें से एक बड़ी वजह माता-पिता में इस बीमारी के होने को माना जाता है। माता या पिता में से किसी एक को भी यह बीमारी है तो बच्चों को होने की आशंका बढ़ जाती है।वहीं, स्मोकिंग और बढ़ती उम्र के साथ कमजोर हाेता इम्यून सिस्टम भी बीमारी को पनपने का मौका दे देता है। इसके अलावा अल्ट्रावायोलेट किरणें भी न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर होने के खतरे को बढ़ाती हैं।

क्या हैं इसके लक्षण?

ब्लड प्रेशर बढ़ जाना, थकान या कमजोरी महसूस होना

पेट में लगातार दर्द रहना और वजन घटना

टखनों में सूजन रहना, स्किन पर धब्बे होना

बेहोशी छाना, पसीना आना

शरीर में ग्लूकोज का लेवल तेजी से बढ़ना या कम होना



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Rishi Kapoor Irrfan Khan Death Neuroendocrine Cancer Updates On His Bollywood Journey; Everything you need to know about


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इंसानी कोशिका को पूरी तरह घेरकर उसमे घुस जाता है कोरोनावायरस, 20 लाख गुना बड़ा करके उतारी तस्वीरों से पता चला

अमेरिका और ब्राजील के दो संस्थानों ने कोविड-19 फैलाने वाले कोरोनावायरस SARS-COV-2 की स्पष्ट तस्वीरें उतारे में सफलता पाई हैं। इन तस्वीरों को इलेक्ट्रॉनिक माइक्रोस्कोप की मदद से उतारा गया है। इसके लिए माइक्रोस्कोप में वायरस के संक्रमण की स्थिति को 20 लाख गुना बड़ा करके देखा गया जिसमें पता चला कि किस तरह से यह वायरस इंसानी कोशिका को पूरी तरह घेर लेता है और उसके अंदर घुस जाता है। इसके बार वायरसउसके ही जीवन रस औरप्रोटीन के साथ जुड़कर कोशिका कोनष्ट होने पर मजबूर करदेता है।

ये नईतस्वीरें अमेरिका के मैरीलैंड स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिसीज (एनआईएआईडी) इंटीग्रेटेड रिसर्च फैसिलिटी (आईआरएफ) फोर्ट फोर्ट्रिक, नेशनल हेल्थ इंस्टीट्यूट(एनआईएच) और ब्राजील के ओसवाल्डो क्रूजफाउंडेशन के वैज्ञानिकों ने अलग-अलग प्रयोगों के दौरान उतारी हैं। भारत में भी बीते महीनेनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के शोधकर्ताओं ने कोरोनावायरस की पहली तस्वीरें ली हैं।

वैज्ञानिकों नेट्रांसमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का उपयोग करते हुए, लेंस की मदद से ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया जिससे सैम्पल को बीस लाख गुना बढ़ाया जा सकता है। इसके लिएटीम ने सेल कल्चर बनाया और फिर कोशिकाओं को वायरस से संक्रमित होनेकी प्रक्रिया को इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप की मदद से देखा और वायरस के संक्रमण के तरीके कोसमझा।

तस्वीरों से समझते हैं कोरोना वायरस और उसका आक्रमण

नए नोवलकोरोनावायरस (Sars-Cov-2) के चारों ओर एक ताज नुमा (क्राउन) संरचना है, जिसके कारण इसे कोरोना नाम दिया गया है। लैटिन में क्राउन का मतलब कोरोना होता है।नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी इंस्टीट्यूट के डिप्टी डायरेक्टर डॉ अतानु बसु के मुताबिक, कोरोनावायरस के एक कण काआकार 75 नैनोमीटर (एक मीटर का एक अरबवां हिस्सा)होताहै।

ये तस्वीर अमेरिका के मैरीलैंड स्थित रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने ली है। स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोग्राफ तकनीक से ली गई इस रंगीन तस्वीर में इंसानी शरीर की एपोप्टोटिक कोशिका (बैंगनी रंग में) को SARS-COV-2 वायरस (पीले रंग में) बहुत अधिक संख्या में झुंड बनाकर आसपास से घेरे हुए हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक एपोप्टोटिक कोशिकाएं सिंगल या एक समूह में होती है। ये ऐसी कोशिकाओं का वह रूप है जो वायरस से संक्रमित हो जाने के बाद खुद ही अपने अंदर डेथ प्रोग्राम शुरू कर लेता है और बहुत जल्दी ये खुद ही नष्ट हो जाती हैं।

हर एक कोशिका एक मेम्ब्रेन या झिल्ली में सुरक्षित होती है। 02 अप्रैल को पहली बार एक इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप तस्वीर में SARS-CoV2 का पहला ब्लैक एंड व्हाइट फोटो उतारा गया। इसमें एक लाल रंग के तीर से समझाया गया है कि वायरस की सतह पर विशिष्ट ग्लाइकोप्रोटीन के तंतु होते हैं जो कोशिका को पकड़ने के काम आते हैं। इस तस्वीर में छोटे काले धब्बों के रूप में वायरस दिखाई दे रहे हैं।

SARS-COV-2 वायरस कोशिका के साइटोप्लाज्म यानी एक कोशिका के जीवनरस में संक्रमण प्रक्रिया शुरू करता है। साइटोप्लाज्म के अंदर ही कोशिका का केंद्र न्यूक्लिअस होता है, जो कोशिका की आनुवंशिक सामग्री को जमा करने के लिए जिम्मेदार होता है। जैसे ही वायरस संक्रमित कोशिका के अंदर घुसता है तो उसकी झिल्ली के अंदर ही तेजी से अपनी संख्या बढ़ाना शुरू कर देता है। इस चित्र में बांयी ओर एक सफेद कोशिका में गोल-गोल कोरोनावायरस साफ देखे जा सकते हैं।

इस तस्वीर में काले रंग के धब्बों के रूप में SARS-COV-2 वायरस के झुंड नजर आ रहे हैं। एक बार कोशिका में घुसने और उसके साइटोप्लाज्म को संक्रमित करने के बाद ये वायरस न्यूक्लिअस को निशाना बनाते हैं जिसमें जेनेटिक मटेरियल यानी डीएनए होता है। इससे कोशिका की पूरी कार्यप्रणाली नष्ट हो जाती है और कोशिका स्वयं को नष्ट करने का प्रोग्राम शुरू कर देती है। तस्वीर में V शेप में कुछ संरचनाए नजर आ रही हैं जो एंटीबॉडीज हैं। तीव्र संक्रमण की स्थिति में इन एंटीबॉडीज की संख्या में कम होने और क्षमतावान न होने के कारण ये वायरस का मुकाबला नहीं कर पाती हैं और शरीर में संक्रमण तेजी से फैलता है, जिससे मरीज को सांस लेने में परेशानी होने लगती है और उसे वेंटीलेटर पर ले जाना पड़ता है। इसके बाद जीवन रक्षक मशीनों,दवाओं और मरीज की खुद कीइम्यूनिटी की भूमिका अहम होती है।



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Corona virus completely engulfs human cell, 20 million times larger than photos revealed


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Wednesday, April 29, 2020

कोरोना कर्मवीरों के सम्मान में दुनियाभर के कलाकारों ने उकेरी तस्वीरें, बताया- आप सुपरमैन, आप सुरक्षित तो हम सुरक्षित

दुनियाभर में कोरोना के खौफ के बीच काम कर रहे स्वास्थ्य कर्मियों का आभार व्यक्त किया जा रहा है। कोरोना कर्मवीरों के सम्मान में दुनियाभर के आर्टिस्टदीवारों पर उनकी तस्वीरें उकेर रहे है। तस्वीरें बता रही हैं कि वह कैसे आम इंसानों को बचाने के डटे हुए हैं। देखिए इंसानियत और समर्पण को बयां करने वाली तस्वीरें...



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कोरोना कर्मवीर की यह तस्वीर जर्मनी की है। जिसे काई उजे नाम के कलाकार ने बनाया है। पेंटिंग में मेडिकल स्टाफ को सबकी रक्षा करने वाला सुपरमैन बताया गया है। यहां ये गुजरने वाले लोग इनका शुक्रिया अदा कर रहे हैं। तस्वीर साभार : एएफपी


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5 मार्च 2018 को बताया कैंसर है और ट्विटर पर लिखा- जिंदगी पर आरोप नहीं कि हमें वह नहीं दिया जिसकी हमें उससे उम्मीद थी

बॉलीवुड अभिनेता इरफान खान ने बुधवार सुबह मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में अंतिम सांस ली। उन्हें एक सप्ताह पहले कोलोन इन्फेक्शन के चलते भर्ती कराया गया था। इरफान ने 5 मार्च 2018 को ट्वीट कर बताया था कि उन्हें एक दुर्लभ बीमारी है। उन्होंने अपनी पोस्ट की शुरुआत मार्गेरेट मिशेल के विचार से की। उन्होंने लिखा था, "जिंदगी पर इस बात का आरोप नहीं लगाया जा सकता कि इसने हमें वह नहीं दिया जिसकी हमें उससे उम्मीद थी।"


इरफान ने क्या खुलासा किया था?

  • इरफान खान ने ट्वीट कर उनकी बीमारी को लेकर लग रहे कयास पर विराम लगा दिया था।
  • ट्वीट में लिखा था, मुझे न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर होने का पता चला। इसे स्वीकार करना आसान नहीं है, लेकिन मेरे आसपास मौजूद लोगों के प्यार और मेरी इच्छाशक्ति ने मुझे उम्मीद दी है।"
  • "आप सभी मेरे लिए दुआएं कीजिए। इस बीच उड़ी अफवाहों की बात करूं तो न्यूरो शब्द का इस्तेमाल हमेशा ब्रेन के लिए ही नहीं होता और रिसर्च के लिए गूगल से आसान रास्ता नहीं है। जिन लोगों ने मेरे लिखने का इंतजार किया, उम्मीद है उन्हें बताने के लिए कई कहानियों के साथ लौटूंगा।''
5 मार्च 2018 को कैंसर की जानकारी देने के बाद इरफान ने कई ट्वीट करके अपना हाल बताया था।

'कभी-कभी आप एक झटके से जागते हैं'
इरफान खान ने 5 मार्च को ट्वीट कर खुद इसकी जानकारी दी थी। उन्होंने लिखा था था- "कभी-कभी आप एक झटके से जागते हैं। पिछले 15 दिन मेरे जीवन की सस्पेंस स्टोरी है। मैं दुर्लभ बीमारी से पीड़ित हूं। मैंने जिंदगी में कभी समझौता नहीं किया। मैं हमेशा अपनी पसंद के लिए लड़ता रहा और आगे भी ऐसा ही करूंगा।''"मेरा परिवार और दोस्त मेरे साथ हैं। हम बेहतर रास्ता निकालने की कोशिश कर रहे हैं। जैसे ही सारे टेस्ट हो जाएंगे, मैं आने वाले दस दिनों में अपने बारे में बात दूंगा। तब तक मेरे लिए दुआ करें।''

न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर क्या है?
न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर उस अवस्था को कहते हैं, जिसमें शरीर में हार्मोन पैदा करने वाले न्यूरोएंडोक्राइन सेल्स बहुत अधिक या कम हार्मोन बनाने लगती हैं। इस ट्यूमर को कारसिनॉयड्स भी कहते हैं।यह शरीर के कई हिस्सों में हो सकता है, जैसे कि लंग्स, गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट, थायरॉयड या एड्रिनल ग्लैंड। ट्यूमर शरीर के किस हिस्से में है, इसके आधार पर इसका प्रकार तय होता है। वहीं, अगर बीमारी का पता वक्त से लग जाए तो इलाज संभव है।

तीन प्रकार का होता है ये ट्यूमर
1) गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर: यह ट्यूमर गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट के किसी भी हिस्से में हो सकता है, जिसमें बड़ी आंत और एपेंडिक्स शामिल है।
2) लंग न्यूरोजएंडोक्राइन ट्यूमर: यह फेफड़ों में होने वाला ट्यूमर है। जिसमें खांसी के दौरान ब्लड आना और सांस लेने में दिक्कत होती है।
3) पेंक्रियाटिक न्यूरोजएंडोक्राइन ट्यूमर: यह पेंक्रियास में होने वाला ट्यूमर है। हार्मोन से जुड़ाव के कारण ब्लड शुगर काफी प्रभावित होता है।

क्यों होता है यह ट्यूमर ?
न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर होने की कई वजह हैं। इनमें से एक बड़ी वजह माता-पिता में इस बीमारी के होने को माना जाता है। माता या पिता में से किसी एक को भी यह बीमारी है तो बच्चों को होने की आशंका बढ़ जाती है।वहीं, स्मोकिंग और बढ़ती उम्र के साथ कमजोर हाेता इम्यून सिस्टम भी बीमारी को पनपने का मौका दे देता है। इसके अलावा अल्ट्रावायोलेट किरणें भी न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर होने के खतरे को बढ़ाती हैं।

क्या हैं इसके लक्षण?

  • ब्लड प्रेशर बढ़ जाना, थकान या कमजोरी महसूस होना
  • पेट में लगातार दर्द रहना और वजन घटना
  • टखनों में सूजन रहना, स्किन पर धब्बे होना
  • बेहोशी छाना, पसीना आना
  • शरीर में ग्लूकोज का लेवल तेजी से बढ़ना या कम होना

किन जांचों से करते हैं कन्फर्म?

  • सीबीसी, बायोकेमेस्ट्री टेस्ट, सीटी स्कैन, एमआरआई और बायोप्सी कर पुष्टि की जाती है।
  • इनके अलावा बेरियम टेस्ट, पैट स्कैन, एंडोस्कोपी व बोन स्कैन भी करते हैं।
  • यह ट्यूमर कितना गंभीर (स्टेज) है, यह जांचों की रिपोर्ट के आधार पर तय होता है।

क्या है इलाज?

  • यह शरीर के किस हिस्से में है, कौन सी स्टेज है और अन्य बीमारियां क्या है इन बातों के आधार पर इलाज तय किया जाता है।
  • सर्जरी की मदद से इस ट्यूमर को हटाया जाता है। कुछ मामलों में रिजल्ट के आधार पर दोबारा सर्जरी भी की जाती है।
  • ड्रग थैरेपी भी देते हैं। इसमें कीमोथैरेपी, टारगेटेड थैरेपी और दवाएं दी जाती हैं। इनके आलावा रेडिएशन और लिवर डायरेक्टेड थैरेपी भी दी जाती है।

स्टीव जॉब्स भी इसी बीमारी से पीड़ित थे
अमरीकी मल्टीनेशनल कंपनी एप्प्ल के पूर्व फाउंडर स्टीव जॉब्स की मौत का कारण पेंक्रियाटिक न्यूरोजएंडोक्राइन ट्यूमर था। जिसका खुलासा उन्होंने 2009 में एक ओपन लैटर में किया था।

सहज अभिनय के लिए जाने जाते हैं इरफान

  • 7 जनवरी, 1967 को जयपुर में पैदा हुए इरफान नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से पासआउट हैं। इरफान अपने सहज अभिनय के लिए जाने जाते हैं।
  • 1988 में मीरा नायर की फिल्म सलाम बॉम्बे से उन्होंने फिल्मों में डेब्यू किया। फिल्म ऑस्कर अवॉर्ड के लिए भी नॉमिनेट हुई थी।
  • इरफान की कुछ खास फिल्मों में हासिल, मकबूल, लाइफ इन मेट्रो, न्यूयॉर्क, द नेमसेक, लाइफ ऑफ पई, साहब, बीवी और गैंगस्टर 2 और पान सिंह तोमर हैं।
  • 2011 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
  • 2012 में उन्हें पान सिंह तोमर के लिए बेस्ट एक्टर का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।


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Irrfan Khan Death News Updates; What Is Neuroendocrine Tumor? What Are The Symptoms?


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जिन लोगों में कोरोना के लक्षण नहीं दिख रहे वे सावधानी बरतें और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें, आसपास मरीज दिखने पर डॉक्टर्स से सम्पर्क करें : एक्सपर्ट

क्या इलाज के बाद कोरोना का संक्रमण दोबारा हो सकता है और जिनमें लक्षण नहीं हैं वो कैसे पता करें और डॉक्टर के पास कब जाएं.... ऐसे कई सवालों के जवाब इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व महासचिव डॉ. नरेंद्र सैनी ने दिए हैं। जिसे आकाशवाणी ने जारी किया है। जानिए कोरोनावायरस से जुड़े कई अहम सवालों के जवाब....

सवाल : क्या कोरोना के मरीज को दोबारा संक्रमण हो सकता है?
दोबारा संक्रमण को लेकर असमंजस है। साउथ कोरिया में ऐसा मामला सामने आया था लेकिन यह कहना मुश्किल है कि अभी जिन मरीजों में दोबारा संक्रमण हुआ वो पूरी तरह ठीक हुए थे या नहीं। हमारे देश में अभी ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है। अगर कोई ठीक हो गया है तो भी बचाव के सभी उपाय अपनाएं। लोगों को उनसे फिजिकल डिस्टेंस बनाना है न कि सोशल डिस्टेंस।

क्या प्लाज्मा थैरेपी से कोरोना का हर मरीज ठीक हो जाता है?
कोरोनावायरस की कोई भी दवा अभी तक नहीं है, इसलिए इस वायरस का इलाज अलग-अलग वैज्ञानिक तरीकों से किया जा रहा है। उसी में से एक है प्लाज्मा थैरेपी। पहले कई बीमारियों में इसका प्रयोग हो चुका है। परिणाम अच्छे दिखे थे। थैरेपी में संक्रमण से मुक्त हो चुके लोगों के रक्त से प्लाज्मा निकालकर गंभीर रूप से संक्रमित मरीज को दिया जाता है। लेकिन जरूरी नहीं कि यह विधि सभी के लिए एक समान काम करे। हां, जब तक कोई दवा नहीं आती जब तक डॉक्टर इस पद्धति का सहारा लेते रहेंगे।

क्या कोरोना ने अपना रूप बदल लिया है?
कोरोनावायरस नवम्बर में सामने आया, उसके बाद दूसरे देशों में पहुंचा। अब हर जगह यह वायरस थोड़े-थोड़े बदलाव के साथ पहुंच रहा है। इसलिए इससे घबराने की जरूरत नहीं है। हर किसी के लक्षण में थोड़ा अंतर हो सकता है। ये कोई भयानक रूप नहीं ले रहा है। बस, इस बात का ध्यान रखना है कि यह एक-दूसरे से फैलने वाली बीमारी है और इससे बचाव के लिए भी सावधानी का पालन करना जरूरी है।

लॉकडाउन को एक महीने से अधिक हो गया फिर भी कोरोना के मरीज क्यों बढ़ रहे हैं?
किसी को इस वायरस के बारे में नहीं पता था। सरकार ने लॉकडाउन लगाकर सबको इस वायरस के प्रति जागरूक किया और इसकी गंभीरता बताई। लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जिन्होंने इसे नहीं माना। कई लोग भीड़ के बीच जाते रहे, आयोजन करते रहे। इस दौरान कई लोग लॉकडाउन के बावजूद संक्रमित हुए। वे अब सामने आ रहे हैं। यह याद रखें कि लॉकडाउन के कारण ही लोग भारी संख्या में सुरक्षित हैं। दूसरे देशों की तुलना में हमारे देश में न तो संक्रमण ज्यादा है और न मौत का आंकड़ा।

जिनमें लक्षण नहीं है वो कैसे पता करें और डॉक्टर के पास कब जाएं?
जिनमें लक्षण नहीं दिख रहे हैं, उन्हें इस बात का अहसास नहीं होगा कि वायरस का संक्रमण है या नही। इसलिए खुद को बचाना और एहतियात बरतना जरूरी है। इसके अलावा अगर आपके पास कोई भी संक्रमित मरीज पाया गया तो आप खुद ही अस्पताल जाएं और डॉक्टर को बताएं कि आपके आसपास मरीज मिला है। इससे सरकार और डॉक्टर को आपकी और आपके संपर्क में आए लोगों की जांच करने में आसानी होगी। इसके साथ ही सभी एक सुरक्षित दूरी बनाकर रखें।

अगर कोई कोरोना की आयुर्वेदिक दवा का दावा करता है तो क्या करें?
ये नया वायरस है, इसलिए अभी तक किसी भी देश में इसकी दवा या वैक्सीन नहीं तैयार की है। तमाम देश वैक्सीन के लिए शोध कर रहे हैं। अगर कोई कहता है कि उसके पास आयुर्वेद की कोई दवा है तो उससे कहिए आयुष मंत्रालय से सम्पर्क करें। हर दवा या पद्धति का इस्तेमाल वैज्ञानिक शोध में सफल होने के बाद किया जाता है। बिना सरकारी मान्यता प्राप्त दवाएं मत लें। किसी तरह की भ्रामक दवाई न खुद खाएं और न किसी को बताएं। भारत भी अगर कोई दवा बनाता है तो डब्ल्यूएचओ के विचार विमर्श के बाद ही प्रयोग में लाएगा।



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Coronavirus Symptoms | Coronavirus In India; Frequently Asked Questions (Faqs) In Hindi On Symptoms Of Coronavirus Disease (COVID-19)


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Tuesday, April 28, 2020

भारतीय वैज्ञानिकों का दावा, दुनियाभर में नए कोरोना के 11 रूप लेकिन महामारी वुहान से निकले मूल वायरस ने मचाई, नाम दिया A2a

देश में हुई रिसर्च के मुताबिक, दुनियाभर में नए कोरोनावायरस के 11 प्रकार है लेकिन महामारी की वजह कोरोना का एक ही रूप है जिसने इंसानों के फेफड़ों को संक्रमित किया और तबाही मचाईै। यह शोध नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल जिनोमिक्स के वैज्ञानिकों ने की है। शोधकर्ताओं का कहना है कि वुहान से दुनियाभर में एक ही कोरोनावायरस से संक्रमण फैला और धीरे-धीरे इसके 10 और रूप विकसित हुए। नए कोरोनावायरस के मूल रूप का नाम A2a रखा गया है। रिसर्च में दावा किया गया है, कोरोना के बाकी 10 प्रकारों पर A2a हावी हो गया और महामारी के लिए वायरस का यह स्ट्रेन जिम्मेदार है।



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11 types of novel coronavirus now but only one driving pandemic, find Indian scientists


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कोरोना से होने वाली मौत का आंकड़ा 8 गुना बढ़ सकता है, कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का दावा

कोरोना से होने वाली मौत का आंकड़ा 8 गुना बढ़ सकता है, यह दावा कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी ने अपनी हालिया रिसर्च में किया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि जितना कोरोना के बारे में सोचा जा रहा है यह उससे भी ज्यादा खतरनाक है। रिसर्च इटली में कोरोना से हुई मौत के आधार पर की गई है। शोध के मुताबिक, इटली में कुल संक्रमित लोगों में से 0.85 फीसदी की मौत हो सकती हैं, वहीं न्यूयॉर्क में यह आंकड़ा 0.5 फीसदी तक हो सकता है।

साल में कोरोना से होने वाली अधिकतम मौत का आंकड़ा बताया
अब तक फ्लू से मौत का खतरा 0.1 फीसदी और कोरोना के लिए 0.2 फीसदी तक बताया गया था लेकिन कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक, मौत का आंकड़ा इससे 8 गुना ज्यादा है। शोधकर्ताओं का यह आंकड़ा सालभर में कोरोनावायरस से होने वाली अधिक मौत के लिए केल्कुलेट किया गया है।

65 साल से अधिक हैं तो मौत का खतरा दोगुना
रिसर्च के मुख्य शोधकर्ता डॉ उरोस सेलजक का कहना है कि जिनकी उम्र 65 साल से अधिक है उनमें कोरोना से मौत का खतरा दो गुना है। शोधकर्ताओं का मुताबिक, मौत के आंकड़े बढ़ने की एक वजह, जांच का समान रूप से न होना भी है। इसलिए लोगों में संक्रमण का खतरा बढ़ने के साथ मौत की आशंका भी बढ़ती है।

अलग-अलग देशों ने बताई मृत्यु दर

मृत्यु दर देश
0.1% युनाइटेड किंगडम
0.19% हेल्सिंकी, फिनलैंड
0.37% गैंगेल्ट, जर्मनी
0.4% स्टॉकहोल्म, स्वीडन
0.57% न्यूयॉर्क


एंटीबॉडीज टेस्ट से सटीक आंकड़े बताए जा सकेंगे
शोधकर्ताओं के मुताबिक कई देशों में एंटीबॉडी टेस्ट की शुरुआत हो चुकी है। इसके आंकड़े सामने आने के बाद यह साफ हो सकेगा कि कितनों में कोरोना मिला, कितनों में वायरस से लड़ने के लिए इम्युनिटी विकसित हुई और कितने ऐसे हैं जिनमें कोरोना के संक्रमण के बाद भी लक्षण नहीं दिखे। अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने एंटीबॉडी टेस्ट को यह कहते हुए अनुमति दी कि यह 95 फीसदी सटीक परिणाम बताता है। न्यूयॉर्क में 7500 लोगों पर हुए एंटीबॉडी टेस्ट में चौथाई लोग पहले ही कोरोना से संक्रमित थे।



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रिसर्च के आंकड़े भले ही हाल ही में जारी हुए हों लेकिन पेंटर भी यह बताने की कोशिश कर रहा है कि कोरोनावायरस पूरी दुनिया के लिए खतरनाक है।


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कोल्ड वायरस का रूप बदलकर कोरोना के खात्मे का ट्रायल शुरू, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का दावा; सितंबर का कोरोना वैक्सीन 10 लाख डोज तैयार होंगे 


कोरोनावायरस की वैक्सीन को लेकर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक काफी निश्चिंत हैं और उनका मानना है कि यह वायरस को खत्म करेगी। वैक्सीन पर काम कर रहे यूनिवर्सिटी के जेनर इंस्टीट्यूट का कहना है कि सितम्बर तक वैक्सीन तैयार कर ली जाएगी और यह एक सुरक्षित दवा साबित होगी। वैक्सीन के दावे के पीछे वो तकनीक है जिसका इस्तेमाल वैज्ञानिकों ने मेर्स और इबोला जैसी महामारी में किया था। वैक्सीन तैयार करने में ChAdOx1 का इस्तेमाल किया जाएगा।

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, वैक्सीन टीम की हेड साराह गिलबर्ट का कहना है हम 80 फीसदी निश्चिंत हैं कि वैक्सीन काम करेगी। शुरुआती प्रयोग में वैक्सीन संक्रमण से लड़ने में प्रभावी साबित हुई है। बंदर में हुए ट्रायल में साबित हुआ है कि यह उनमें हाई इम्युनिटी विकसित करती है। ब्रिटेन वैक्सीन बड़े स्तर पर तैयार करने के लिए फंड जुटा रहा है।

क्या है ChAdOx1
ChAdOx1 एक तरह का वायरस (कॉमन कोल्ड वायरस) है जिसमें कोरोनावायरस का कुछ आनुवांशिक मैटेरियल भी है। ChAdOx1 इंसानी कोशिकाओं को संक्रमित करके उसे खास किस्म के प्रोटीन को तैयार करने के लिए दबाव डालेगा। यह प्रोटीन इम्यून सिस्टम को अलर्ट करेगा और वह कोरोनावायरस में मौजूद प्रोटीन को खत्म करने के लिए एंटीबॉडीज बनाएगा। इस तरह भविष्य में कोरोनावायरस के संक्रमण से बचाव होगा। वैज्ञानिक इसी बात को आधार बनाकर क्लीनिकल ट्रायल की गति बढ़ा रहे हैं। वैक्सीन में इस्तेमाल होने वाले ChAdOx1 को मोडिफाय किया गया है ताकि यह इंसानों में किसी भी तरह के साइडइफेक्ट की वजह न बने।

ट्रायल का पहला चरण शुरू
दवा तैयार कर रहे वैज्ञानिकों का दावा है कि ChAdOx1 काफी सुरक्षित है। ट्रायल के पहले चरण की शुरुआत हो चुकी है। 500 लोगों के एक समूह को यह वैक्सीन दी जा रही है ताकि यह समझा जा सके कि दवा का साइडइफेक्ट होगा या नहीं। इस समूह के लोगों के अनुभव जानने के बाद दूसरे चरण की शुरुआत होगी। जिसमें 5 हजार लोग शामिल होंगे।

लॉकडाउन की सफलता वैक्सीन के लिए चुनौती
वैज्ञानिकों का कहना है कि वैक्सीन के ट्रायल में लॉकडाउन की सफलता बड़ी चुनौती है। अगर लॉकडाउन सफल होता है तो वायरस से संक्रमण फैलने का खतरा कम हो जाएगा। ऐसे में वैक्सीन के सटीक परिणाम सामने आएंगे। वैक्सीन के असर को और बेहतर समझने लिए वैज्ञानिक इसे ऐसे चिकित्साकर्मियों को देने की योजना बना रहे हैं जिन्हें ज्यादा खतरा है।

दुनियाभर के लिए वैक्सीन बनाना बड़ी चुनौती
वैक्सीन के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी मैन्युफैक्चरिंग। ब्रिटेन के वैक्सीन प्लांट की क्षमता इतनी नहीं है कि दुनियाभर के लिए इसे तैयार किया जा सके। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने सितम्बर तक वैक्सीन के 10 लाख डोज का लक्ष्य रखा है। हालांकि ब्रिटिश सरकार का कहना है कि वैक्सीन तैयार करने की स्पीड को बढ़ाने के लिए वह हार्वेल में वैक्सीन मैन्यूफैक्चरिंग और इनोवेशन सेंटर का निर्माण कराएगी। यह सेंटर भी फिलहाल अगले साल ही तैयार हो पाएगा।



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वैक्सीन का बंदर में हुआ ट्रायल सफल रहा है और उसमें रोगों से लड़ने की क्षमता में भी इजाफा हुआ है।


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दुबई में चार साल की बच्ची ने कैंसर के बाद कोरोना को हराया, कमजोर इम्युनिटी होने के बावजूद 20 दिन तक लड़ती रही, अब घर लौटी

दुबई में एक भारतीय बच्ची ने 20 दिन तक कोरोना से लड़ने के बाद उसे हराया और घर लौटी। बच्ची का नाम सिवानी है और उसमें कोरोना का संक्रमण उसकी मां से फैला था। सिवाई को इससे पहले कैंसर हो चुका है। पिछले साल कई बार उसकी कीमोथैरेपी हुई और रोगों से लड़ने की क्षमता घटी हुई थी इसके बावजूद उसने कोरोनामुक्त होकर डॉक्टरों को चौका दिया है। ,

पिछले साल हुआ थाकैंसर
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सिवानी की मां एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता है। मार्च में उन्हें कोरोना का संक्रमण हुआ तो बेटी और पति दोनों की जांच की गई। जांच रिपोर्ट में सिवानी के कोरोना पॉजिटिव होने की पुष्टि हुई। सिवानी के पेरेंट्स इसलिए भी अधिक परेशान थे क्योंकि पिछले साल ही उसे किडनी का एक दुर्लभ कैंसर हुआ था। जिसे वैज्ञानिक भाषा में गैंगलियोन न्यूरोब्लास्टोमा कहा जाता है। इस कैंसर के मामले बच्चों में ही देखे जाते हैं।

डटी रही थी सिवानी
सिवानी के कैंसर का इलाज अल फुतैतिम हेल्थ हब के ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर अल बाज इलाज कर रहे थे। मेडिकल डायरेक्टर अल बाज के मुताबिक, कीमोथैरेपी के बाद बच्ची का शरीर कमजोर हो गया था। शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता घट गई थी। ऐसे में कोरोना के संक्रमण के बाद डॉक्टर चिंतित थे कहीं संक्रमण गंभीर रूप न ले ले।

14 दिन तक घर में क्वारेंटाइन में रहना होगा
कैंसर से उबरने के बाद संक्रमण के इलाज के दौरान सिवानी का खास ख्याल रखा गया। लगातार दो दिन तक जांच रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद भी उसे निगरानी में रखा गया। अब वह 14 दिन अपने घर में क्वारेंटाइन में रहेगी। अस्पताल के डॉक्टर के मुताबिक, बच्ची की मां फिलहाल अभी अस्पताल में है और उम्मीद है वह जल्द ही रिकवर होंगी।

किडनी पर नहीं पड़ा संक्रमण का असर

हॉस्पिटल के मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. हैदर अल-यूसुफ का कहना है कि मां-बेटी के इलाज के दौरान काफी सावधानी बरती गई ताकि दोनों में तनाव की स्थिति न बने। सिवानी के मामले में इलाज के दौरान उसकी हर रिपोर्ट पर नजर रखी जा रही थी। पिछले साल वह कैंसर से रिकवर हुई थी लेकिन हमारी कोशिश थी कि वायरस के संक्रमण का असर उसकी किडनी पर न हो। फिलहाल इलाज सफल रहा और उसे छुट्‌टी दे दी गई।



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इलाज के बाद अल फुतैतिम हेल्थ हब की नर्स से बात करती सिवानी। तस्वीर साभार: गल्फन्यूज


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मास्क हटाकर तम्बाकू थूकने वालों को सावधानी बरतने की जरूरत, ऐसा करके वे आसपास संक्रमण फैला रहे है : एक्सपर्ट

लॉकडाउन के बीच ऐसे मामले भी सामने आ रहे हैं कि लोग तम्बाकू खा रहे हैं और मास्क हटाकर थूक रहे हैं। एम्स दिल्ली के विशेषज्ञ डॉ.नंद कुमार के मुताबिक, जो लोग ऐसा कर रहे हैं वो अपने साथ-साथ परिवार और मित्रों और आसपास रहने वाले लोगों को खतरे में डाल रहे हैं। अगर आप के अंदर लक्षण नहीं दिख रहे और आप संक्रमित हैं तो आप लोगों को संक्रमित करने का काम कर रहे हैं। ऐसा न करें, यह बेहद खतरनाक है। मास्क को बार-बार छूने से भी आप खुद भी संक्रमित हो सकते हैं। कोरोना से जुड़े कई सवालों के जवाब विशेषज्ञ डॉ नंद कुमार ने आकाशवाणी को दिए हैं। जानिए इनके बारे में...


#1) क्या गांव में बगीचे में घूमने जा सकते हैं?
अगर सरकारी गाइडलाइन को देखें तो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना है। अकेले जा सकते हैं लेकिन अगर कोई एक और आएगा तो उसे देखकर और लोग भी जाएंगे। ऐसे में संक्रमण का खतरा रहेगा। इसलिए बेवजह बाहन न निकलें, घर में ही टहल लें।

#2)क्या कोरोना केवल 50 साल के ऊपरवालों को होता है, युवाओं को नहीं?
ऐसा बिल्कुल नहीं है। असल में 50 साल आते-आते अक्सर लोगों में कई बीमारियां आ जाती हैं, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। इसलिए ऐसे लोगों में संक्रमण होने का खतरा ज्यादा रहता है। लेकिन यह लोगों में गलतफहमी है कि कोरोना का संक्रमण युवाओं को नहीं होता। हां, कुछ युवाओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होने पर लक्षण नहीं दिखाई देते वे संक्रमित होने के बाद अपने आप ठीक हो जाते हैं। लेकिन उनसे दूसरे लोगों को संक्रमण का खतरा रहता है।

#3)कई लोगों के मन में शक रहता है कि कहीं वे संक्रमित हो नहीं, वे क्या करें?
ऐसा देखा गया है जो लोग आवश्यक सेवाओं में लगे हैं उनके मन में शक रहता है कि कहीं संक्रमित तो नहीं हैं। जो फ्रंटलाइन के कर्मचारी हैं जैसे डॉक्टर, स्वास्थ्यकर्मी, पुलिसकर्मी, सफाईकर्मी। उन्हें पता होता है कि खुद का बचाव कैसे करना है। इसलिए अगर वे सरकार के दिशा-निर्देश का पालन करेंगे तो संक्रमण नहीं होगा। अब तक आंकड़ों के मुताबिक, हमारे देश में सावर्जजनिक सेवाओं में लगे लोगों में संक्रमण के मामले बहुत कम है, इसलिए तनाव लेने की जरूरत नहीं है।

#4)सफाई कर्मचारी क्या सावधानी बरतें?
कोई भी इंसान हो, बाहर जाने के लिए सामान्य दिशा-निर्देश दिए गए हैं। सफाई कर्मचारी जब काम करें तो दस्ताने हाथ में जरूर पहनें। मास्क पहने और सैनेटाइजर साथ में रखें। साफ-सफाई के बाद घर आएं तो पहले बाहर की कपड़े बदल लें। या तुरंत बाथरूम में जाकर नहाएं। साथ ही स्थानीय प्रशासन से सम्पर्क में रहें।

#5)कोरोना संक्रमण की रिपोर्ट आने में कितना समय लगता है?
जांच रिपोर्ट आना इस बात पर निर्भर करता है कि आप टेस्टिंग लैब से कितनी दूरी पर हैं। जैसे किसी गांव से जांच के लिए नमूना जा रहा है और लैब दूर है तो 2-3 दिन तक लग जाते हैं। लेकिन अगर उसी शहर में या लैब के पास अस्पताल हो उसी तो दिन रिपोर्ट आ जाती है। देश में कई जांच लैब सेंटर बनाए गए हैं। देशभर में 201 सरकारी लैब, 86 प्राइवेट लैब और 300 कलेक्शन सेंटर हैं। इन कलेक्शन सेंटर में टेस्ट के लिए सभी नमूने रखे जाते हैं। यहीं से निर्धारित लैब में जांच के लिए भेजे जाते हैं।

#6)आरोग्य सेतु ऐप के फायदे क्या हैं?

लॉकडाउन के दौरान अगर आप जरूरी काम से बाहर या कार्यालय जाते हैं तो आपको पता नहीं होता कि वहां संक्रमण का खतरा कितना है। ऐसे में जहां आसपास लोग संक्रमित होते हैं यह ऐप आपको अलर्ट करता है। ऐसी स्थिति में क्या करें और क्या न करें, आरोग्य सेतु ऐप यह भी समझाता है। जिन इलाकों में संक्रमण के मामले अधिक हैं उसकी भी जानकारी ऐप देता है। खास बात है कि ब्लूटूथ के माध्यम से कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग में मदद करता है।

#7)कई लोगों में लक्षण दिखाई नहीं दे रहे क्या यह तनाव की बात है?
इसे दो तरह से समझ सकते हैं। पॉजिटिव ढंग से सोचें तो जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी है, उनमें कोविड-19 का ज्यादा प्रभाव नहीं हो रहा है। माइल्ड इंफेक्शन के बाद वे ठीक हो जाते हैं। ऐसे 80 फीसदी लोग हैं। 20 फीसदी ऐसे हैं जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने की वजह से बीमार हो रहे हैं। अगर निगेटिव रूप से देखों तो हम यही सोचते हैं कि हमारे अंदर लक्षण या नहीं, पता नहीं हमे कोविड है या नहीं और तनाव में आ जाएंगे।



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Coronavirus Infections Questions Answered Updates In Hindi; Chewing Tobacco, Covid-19 Infections Report, Aarogya Setu App Information


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गरीब देशों में एक अरब लोगों में संक्रमण के कारण 30 लाख की मौत हो सकती है, इनमें पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल

दुनिया की अग्रणी संस्थाओं में से एक इंटरनेशनल रेस्क्यू कमेटी (आईआरसी) ने मंगलवार को एक नई रिपोर्ट प्रकाशित करते हुए कोरोना पर जनहानि की बड़ी चेतावनी दी है। ब्रिटेन के पूर्व विदेश सचिव डेविड मिलिबैंड की अध्यक्षता वाली इस एजेंसी के मुताबिक दुनिया के 34 सर्वाधिक गरीब देशों में कोविड-19 वायरस का विनाशकारी प्रभाव होगा। इसके कारण करीब एक अरब लोगों में संक्रमण और 30 लाख लोगों की मौत हो सकती है।

इन देशों में भारत का नाम नहीं है लेकिन हमारे 7 पड़ोसी देशों में से तीन- पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमारशामिल हैं। इसके अलावाअफगानिस्तान, सीरिया और यमन जैसे देश शामिल हैं जहां इंटरनेशनल रेस्क्यू कमेटी सेवाएं दे रही हैं।

ब्रिटेन की स्कॉय न्यूज से बातचीत में डेविड मिलिबैंड ने कहा कि, कोरोना को लेकर अब तक बड़े कमतर अनुमान लगाए गए हैं, लेकिन वास्तविक जनहानि इससे कहीं अधिक होगी। इस महामारी से मुकाबले के लिए गरीब देशों को बहुत ही कम समय मिला है और इसी वजह से वहां बहुत व्यापक स्तर पर विनाश हो सकता है।

कौन से हैं 34 गरीब देश

आईआरसी ने जिन 34 देशों की स्थितियों का आकलन करके रिपोर्ट बनाई है उनमें ज्यादातर युद्धग्रस्त और शरणार्थियों से प्रभावित देश हैं। इनमें अधिकतम अफ्रीकी और एशियाई देश हैं। ये हैं -अफगानिस्तान, पाकिस्तान,बांग्लादेश, बुरुंडी, बुर्किना फासो, कैमरून, कार, चाड, कोलम्बिया, कोट डी आइवर, डीआरसी, अल सल्वाडोर, इथियोपिया, ग्रीस, इराक, जॉर्डन, केन्या, लेबनान, लाइबेरिया, लीबिया, माली, म्यांमार, नाइजर, नाइजीरिया, सिएरा लियोन, सोमालिया, दक्षिण सूडान, सीरिया, तंजानिया, थाईलैंड, युगांडा, वेनेजुएला और यमन।

इस रिपोर्ट की बड़ी बातें:



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Big warning of the International Rescue Committee - In poor countries one billion people may die of 3 million due to infection.


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Monday, April 27, 2020

ब्रिटेन में कोरोना के बीच बच्चों के दिल में सूजन और पेट में दर्द के मामले बढ़े, नेशनल हेल्थ सर्विसेज ने इमरजेंसी अलर्ट जारी किया

ब्रिटेन की सबसे बड़ी स्वास्थ्य संस्था नेशनल हेल्थ सर्विसेस ने कोरोना संक्रमण के बीच बच्चों के लिए इमरजेंसी अलर्ट जारी किया है। डॉक्टरोंके मुताबिक, आईसीयू में बच्चों के ऐसे कई मामले सामने आ रहे हैं जिनके दिल में सूजन, पेट में दर्द, उल्टी और डायरिया के लक्षण हैं। इसे इनफ्लेमेट्री सिंड्रोम कहा गया है। इन लक्षणों का सम्बंध कोरोनावायरस से हो सकता है। पिछले तीन हफ्तों में सभी उम्र वर्ग के बच्चों में ऐसे मामले बढ़े हैं और हालत नाजुक होने के कारण उन्हें आईसीयू में भर्ती करना पड़ रहा है। डॉक्टर्स का कहना है कि ऐसे लक्षणों वाले कुछ बच्चों की जांच रिपोर्ट निगेटिवऔर कुछ बच्चों की पॉजिटिव आई है।

कावासाकी डिसीज से हो रही तुलना

डॉक्टर्स इस स्थिति को समझ नहीं पा रहे हैं और इसकी तुलना शॉक सिंड्रोम और कावासाकी डिसीज से कर रहे हैं। जिसमें शरीर के अंदरूनी हिस्सों में सूजन आ जाती है, बुखार के साथ सांस लेने में तकलीफ होती है। लगभग ऐसे हीलक्षण कोविड-19 के भी हैं। हालांकि विशेषज्ञोंका कहना है कि हम अभी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे हैं औरइसके पीछे कोई और वजह भी हो सकती है।

पेट में दर्द होना एक तरह की इमरजेंसी
कितने बच्चे इस इनफ्लेमेट्री सिंड्रोम से जूझ रहे हैं या कितनी मौत हुई हैं, यह अब तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। पीडियाट्रिक इंटेनसिव केयर सोसायटी के एक ट्वीट के मुताबिक, बच्चों में मिले जुले लक्षण दिख रहे हैं। शॉक सिंड्रोम, कावासाकी डिसीज औरकोविड-19 तीनों के गंभीर लक्षण बच्चों में एक साथ दिख रहे हैं। एक्सपर्ट के मुताबिक, बच्चों के पेट में दर्द होना यह एक तरह की इमरजेंसी है।

3 हफ्ते पहले दिखने शुरू हुए थे मामले
नेशनल हेल्थ सर्विसेस के सर्कुलर के मुताबिक, इंफ्लेमेट्री सिड्रोम के मामले पिछले 3 हफ्ते से दिखने शुरू हुए हैं। इसकी वजह बीमारी का धीमी गति से सामने आना या दुर्लभ होना हो सकता है क्योंकि ये जब सामने आई है महामारी अपने चरम पर है। इसके मामले तेजी से सामने आने शुरू हुए हैं। ब्रिटेन के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. एलिजाबेथ विटेकर का कहना है कि ऐसे ही मामले दूसरे देश इटली और स्पेन में भी देखे गए थे।

क्या है कावासाकी डिसीज
यह रक्तवाहिनियों से जुड़ी बीमारी है। जिसमें रक्तवाहिनियों की दीवारों पर सूजन आ जाती है। इसके ज्यादातर मामले 5 साल से कम उम्र के बच्चों में सामने आते हैं। यह सूजन हृदय तक रक्त पहुंचाने वाली धमनियों को कमजोर कर सकती है। हालात नाजुक होने पर हार्ट अटैक या हार्ट फेल्योर भी हो सकता है। बुखार आना, स्किन पर चकत्ते दिखना, हाथों में सूजन होना, आंखों के सफेद हिस्सों में लालिमा दिखना और गले में सूजन होना इसके लक्षण हैं।

अलग-अलग संस्थाओं ने बताए लक्षण
नेशनल हेल्थ सर्विसेस ने अब तक बढ़ता तापमान, खांसी जैसे लक्षणों को कोविड-19 का लक्षण मान रहा है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि डायरिया, पेट में दर्द भी कोरोना संक्रमण के लक्षण हैं। वहीं, अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक, गंध या स्वाद महसूस न होना भी कोरोना संक्रमण का इशारा है।


नए मामलों को जल्द समझने की जरूरत
डॉ. एलिजाबेथ विटेकर का कहना है, ऐसे मामलों की संख्या कम है लेकिन नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। पीडियाट्रिक इमरजेंसी रिसर्च के चेयरमैन डॉ. रोलैंड के मुताबिक, हर उस बच्चे को खतरा है जो पेट के दर्द से जूझ रहे हैं। इसे जल्द समझने की जरूरत है क्योंकि अब तक मिले प्रमाण इससे मेल नहीं खा रहे।



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शॉक सिंड्रोम में जुबान में लालिमा और कावासाकी सिंड्रोम में हाथों पर चकत्ते पड़ जाते हैं। इन दोनों ही बीमारियों के मिले-जुले लक्षण बच्चों में इस समय दिख रहे हैं।


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इम्युनिटी बढ़ाने के लिए तुलसी, लौंग और दालचीनी से बनाएं काढ़ा, रोजाना कम से कम दो बार पीएं

कोरोना से बचाव के लिए आयुष मंत्रालय आयुर्वेद में बताए गए उपाय अपनाने की सलाह दे रहा है। पीएम मोदी ने भी देश के लोगों से इसे मानने की गुजारिश दी है। केंद्रीय आयुर्वेद एवं सिद्ध अनुसंधान परिषद, आयुष मंत्रालय के निदेशक प्रो. वैद्य करतार सिंह धीमान के मुताबिक, कोरोना के खौफ के बीच काढ़ा पीने रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है। कम से कम इसे दिन में दो बार जरूर पीना चाहिए। प्रो. वैद्य करतार सिंह से जानिए इससे कैसे बनाएं और आयुर्वेद के कौन से नुस्खे इस समय संक्रमण से लड़ने में मददगार साबित होंगे।

ऐसे बनाएं काढा
तुलसी की 4 पत्तियां, 1 लौंग, थोड़ी सी दालचीनी और 5-10 ग्राम अदरक को कूचकर डेढ़ कप कप पानी में उबालें। जब यह एक कप रह जाए तो उसमें शहद डालकर पी सकते हैं। अगर मधुमेह की बीमारी है तो उसमें चीनी या शहद न डालें।



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Make a decoction made with basil, clove and cinnamon to increase immunity, drink at least twice daily


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ब्रिटेन के सबसे खूबसूरत पार्क में अकेले ध्यान कर रहे बौद्ध भिक्षु मैत्रेय, बोले- कोरोनावायरस इंसानों को प्रकृति की चेतावनी

ब्रिटेन के नॉटिंघमशायर में स्वर्ग की तरह दिखने वाला एक बेहद खूबसूरत बगीचा है। इसे तैयार करने वाले जापानी बौद्धभिक्षु मैत्रेय तो यही मानते हैं। 79 साल के मैत्रेय पिछले 50 साल से ध्यान साधना कररहे हैं और 40 साल तो सिर्फ बगीचे को तैयार करने में लगा दिए, इसलिए इसे वह स्वर्ग कहते हैं।

लॉकडाउन के कारण लोग यहां घूमने नहीं आ रहे हैं। 2 एकड़ में फैले बगीचे में मैत्रेय इस समय अकेले हैं, उनका कहना है कोरोनावायरस इंसानों के लिए एक चेतावनी है। यह बेहद दुखद है कि लोग शांति और खूबसूरती को देख नहीं पा रहे लेकिन मैं खुश हूं क्योंकि मैं स्वर्ग में हूं।

पिछले 40 सालों में मैत्रेय ने बगीचे को तैयार किया है। इसका नाम प्योर लैंड मेडिटेशन सेंटर है, इसे जापानी गार्डन के नाम भी जाना जाता है। कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन में इसे बंद किया गया है।
मैत्रेय कहते हैं, लगातार 40 साल की मेहनत के बाद बगीचा बेहद खूबसूरत दिखने लगा है। इसका हर हिस्सा इंसान और कुदरत के बीच एक अटूट रिश्ते की कहानी कहता है।
मैत्रेय के मुताबिक, इस समय यहां बगीचे की खूबसूरती देखने सैकड़ों लोग पहुंचते हैं, लेकिन अब ये सब सुनसान है, लेकिन मैं खुश हूं क्योंकि मैं स्वर्ग में हूं।
मैत्रेय का जन्म जापान के कोजी ताकेउची में हुआ था। इनका मानना है कि इंसान प्रकृति से खिलवाड़ रहा है इसलिए कोरोनावायरस इंसानों के लिए प्रकृति की एक चेतावनी है। मैं देख रहा हूं कि प्रकृति संदेश दे रही कि हमें अपने जीने का तरीका बदलने की जरूरत है।
मैत्रेय कहते हैं कि इंसानों ने जिस तरह की सभ्यता विकसित की है उससे दुनियाभर में समृद्धि और धन तो बढ़ा है लेकिन एक बड़ी कीमत भी चुकाई है, वो है शोषण, पर्यावरण की तबाही और प्रकृति का विनाश।


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Maitreya, a Buddhist monk meditating alone in Britain's most beautiful park, said - Coronavirus nature warning to humans


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