Thursday, June 18, 2020

60 साल से हो रहा डेक्सामेथासोन का इस्तेमाल, इससे हर रोज इलाज का खर्च सिर्फ 48 रुपए प्रति मरीज

दुनियाभर में इस समय डेक्सामेथासोन की चर्चा है। कोरोना महामारी के बीच यह दवा पहली लाइफ सेविंग ड्रग बनकर उभरी है, जो नाजुक हालत में भर्ती कोरोना के मरीजों में मौत का खतरा 35%तक घटाती है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने अपनी ताजा रिसर्च में इसकी पुष्टि की है। भारत मेंभी इसका इस्तेमाल कोरोनामरीजों पर किया जा रहा है, लेकिन लो-डोज के रूप में। रिसर्च में कैसे यह ड्रग सफल हुई, यह कैसे मौत का खतरा कम करती है और देश इसका इस्तेमाल कैसे हो रहा है...एक्सपर्ट से जानिए ऐसे कई सवालों के जवाब...


4 पॉइंट में रिसर्च की सफलता की कहानी शोधकर्ता पीटर की जुबानी

  • ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता और चीफ इन्वेस्टिगेटर पीटर हॉर्बी के मुताबिक, रिसर्च के दौरान अब तक सामने आया है कि डेक्सामेथासोन ही एकमात्र ऐसी ड्रग है, जो कोरोना मरीजोंमें मौत का खतरा घटाती है। यह मौत के आंकड़े को एक तिहाई तक कम करती है।
  • कोरोना के 2,104 ऐसे गंभीर मरीजों को यह दवा दी गई जिन्हें या तो ब्रीदिंग मशीन या ऑक्सीजन की जरूरत थी। जिन मरीजों को ब्रीदिंग मशीन की जरूरत थी उनमें मौत का खतरा घटा 35% तक घटा। वहीं, जो ऑक्सीजन ले रहे थे उनमें खतरा 20%तक कम हुआ।
  • यह दवा बेहद सस्तीहोने के कारण वैश्विक स्तर पर लोगों की जान बचाने में इस्तेमाल की जा सकती है। इस दवा से 10 दिन तक चलने वाले ट्रीटमेंट का खर्च प्रति मरीज 477 रुपए यानि सिर्फ 48 रुपए प्रतिदिनआता है।
  • इस दवा का असर कोरोना के हल्के लक्षणों वाले मरीजों में नहीं दिखा है। डेक्सामेथासोन के कारण मरीजों में लक्षण 15 दिन की जगह 11 दिन में दिखना कम हुए।

Q&A: एंड्रोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. प्रकाश केसवानी से समझिए दवा से जुड़ी खास बातें

1.क्या है डेक्सामिथेसोन और कब से हो रहा है इस्तेमाल?

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, डेक्सामेथासोन एक स्टेरॉयड है जिसका इस्तेमाल 1960 से किया जा रहा है। यह दवा सूजन से दिक्कत जैसे अस्थमा, एलर्जी और कुछ खास तरह के कैंसर में दी जाती है। 1977 में इसे डब्ल्यूएचओ ने जरूरी दवाओं की मॉडल लिस्ट में शामिल किया और ज्यादातर देशों में कम कीमत में मिलने वाली दवा बताया है।
  • डब्ल्यूएचओ के डायरेक्टर जनरल टेड्रोस अधानोम ने डेक्सामिथेसोन की सफलता पर कहा, यह पहली दवा है जो कोरोना के ऐसे मरीजों की मौत का खतरा घटाती है जिन्हें ऑक्सीजन की जरूरत है या वेंटिलेटर पर हैं।
  • जयपुर के एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. प्रकाश केसवानी ने बताया, डेक्सामिथेसोन काफी पुरानी स्टेरॉयड ड्रग है। स्टेरॉयड का इस्तेमाल कई तरह की इमरजेंसी में किया जाता है। चाहें एलर्जी का रिएक्शन हो या ब्लड प्रेशर कम हो जाए या सेप्टीसीमिया शॉक हो जाए।

2. कोविड-19 के मामले में कैसे काम करती है स्टेरॉयड डग?

  • ऑक्सफोर्ड की रिसर्च में सामने आया है कोविड-19 के मरीजों में साइटोकाइन स्टॉर्म की स्थिति भी बनती है। इस स्थिति में रोगों से बचाने वाला इम्यून सिस्टम भी शरीर के खिलाफ काम करने लगता है और फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है।
  • डॉ. प्रकाश केसवानी कहते हैं, ये स्टेरॉयड्स यही साइटोकाइन स्टॉर्म की स्थिति को कंट्रोल करने की कोशिश करते हैं। यह दवा फेफड़ों में गंभीर संक्रमण वाले मरीजों को दी जाती है। देश में कोरोना के मरीजों को भी इसकी लो डोज दी जा रही है, लेकिन इसके साथ दूसरी दवाएं जैसी एंटीबायोटिक्स और एंटी-वायरल भी दी जाती हैं।

3. कैसे काम करती है दवा?

  • डॉ. प्रकाश केसवानी ने बताया, संक्रमित मरीजों में साइटोकाइन स्टॉर्म के कारण जो इम्यून कोशिकाएं फेफड़ों की कोशिकाओं को डैमेज कर रही हैं, यह दवा उन्हें रोकने की कोशिश करती है। डैमेज हुई कोशिकाओं से जो शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले तत्व बन रहे हैं उनकोकम करके फेफड़ों की सूजन घटाती है।

4. देश में कौन बनाता है डेक्सामेथासोन ?

  • देश में डेक्सामेथासोन की सबसे बड़ी सप्लायर अहमदाबाद की फार्मा कम्पनी जायडस कैडिला है। कम्पनी हर साल सिर्फ इस दवा से 100 करोड़ रुपए का टर्नओवर करती है। कम्पनी के ग्रुप चेयरमैन पंकज पटेल का कहना है कि देश में पर्याप्त मात्रा में इस दवा की सप्लाई की जा रही है।
  • पिछले 40 साल से इसका इस्तेमाल अलग-अलग तरह से किया जा रहा है। यह काफी सस्ती दवा है। यह दवा और इंजेक्शन दोनों तरह से उपलबध है। इसके एक इंजेक्शन की कीमत 5-6 रुपए है।
  • इंडियन फार्मास्युटिकल्स एलियांस के जनरल सेक्रेट्री सुदर्शन जैन के मुताबिक, देश में डेक्सामिथेसोन का 83% मार्केट शेयर फार्मा कम्पनी जायडस केडिला के पास है। महाराष्ट्र के अस्पतालों में पहले ही इस ड्रग का इस्तेमाल कोविड-19 के मरीजों पर किया जा रहा है।


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The steroid dexamethasone, which saves the lives of up to 35 percent of Corona patients, is being used first in Jaipur and Maharashtra but as a low-dose


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