Saturday, July 25, 2020

कोविड-19 के खिलाफ हर्ड इम्युनिटी विकसित होने में लम्बा समय लगेगा, इसके लिए दुनिया की 70 से 80% आबादी में एंटीबॉडीज बनने की जरूरत; टीका आने के बाद ही इसमें तेजी आएगी

कोविड-19 के खिलाफ हर्ड इम्युनिटी विकसित होने में लम्बा समय लगेगा, टीका आने के बाद ही इसमें तेजी आएगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह चेतावनी शुक्रवार को जारी की। WHO की चीफ साइंटिस्ट डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने शुक्रवार को कहा, वैज्ञानिक लगातार वैक्सीन को तैयार करने में लगे हैं। कोविड-19 से राहत मिलना अगले साल या उसके बाद ही सम्भव है। इस दौरान कोरोना से होने वाली मृत्य दर को कम करने में मदद मिलेगी।

डॉ. स्वामीनाथन ने कहा, हर्ड इम्युनिटी विकसित करने के लिए 50 से 60 फीसदी आबादी में कोविड-19 से लड़ने की रोग प्रतिरोधक क्षमता होनी चाहिए, तभी कोरोना के संक्रमण को रोका जा सकता है। वैक्सीन लगने के बाद ही ऐसा सम्भव हो पाएगा।

कहीं 5-10 फीसदी तो कहीं 20 फीसदी एंटीबॉडी विकसित हुईं
डॉ. स्वामीनाथन के मुताबिक, कोविड-19 से प्रभावित होने वाले कई देशों ने रिसर्च की है। रिसर्च में सामने आया है 5 से 10 फीसदी लोगों में ही एंटीबॉडी पाई गईं। कुछ देशों में यह 20 फीसदी तक हैं। कई देशों में कोरोना के मामले बार-बार बढ़ रहे हैं। इन देशों के लोगों में एंटीबॉडी विकसित हो रही हैं। उम्मीद करती हूं कि इन लोगों में रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ेगी और ये संक्रमण की चेन को तोड़ेंगे।

वैक्सीन के साथ विकसित होने वाली हर्ड इम्युनिटी ज्यादा सुरक्षित

चीफ साइंटिस्ट ने कहा, हमारे विशेषज्ञों ने यह अनुमान लगाया है कि हर्ड इम्युनिटी विकसित करने के लिए दुनिया की 70 से 80 फीसदी आबादी में एंटीबॉडीज बनने की जरूरत है। महामारी के शुरुआती दौर में ब्रिटेन में हर्ड इम्युनिटी विकसित करने की रणनीति पेश की थी। इस पर डॉ. स्वामीनाथन का कहना है कि अगर हर्ड इम्युनिटी वैक्सीन के साथ विकसित होती है तो यह काफी सुरक्षित साबित होगी बजाय आबादी में से वायरस को खत्म करना।

क्या होती है हर्ड इम्युनिटी, 5 बड़ी बातें

  • हर्ड इम्युनिटी में हर्ड शब्द का मतलब झुंड से है और इम्युनिटी यानि बीमारियों से लड़ने की क्षमता। इस तरह हर्ड इम्युनिटी का मतलब हुआ कि एक पूरे झुंड या आबादी की बीमारियों से लड़ने की सामूहिक रोग प्रतिरोधकता पैदा हो जाना।
  • इस वैज्ञानिक आइडिया के अनुसार, अगर कोई बीमारी किसी समूह के बड़े हिस्से में फैल जाती है तो इंसान की इम्युनिटी उस बीमारी से लड़ने में संक्रमित लोगों की मदद करती है। इस दौरान जो लोग बीमारी से लड़कर पूरी तरह ठीक हो जाते हैं, वो उस बीमारी से ‘इम्यून’ हो जाते हैं। यानी उनमें प्रतिरक्षा के गुण पैदा हो जाते हैं। इसके बाद झुंड के बीच मौजूद अन्य लोगों तक वायरस का पहुंचना बहुत मुश्किल होता है। एक सीमा के बाद इसका फैलाव रुक जाता है। इसे ही ‘हर्ड इम्युनिटी’ कहा जा रहा है।
  • हर्ड इम्युनिटी महामारियों के इलाज का एक पुराना तरीका है। व्यवहारिक तौर पर इसमें बड़ी आबादी को नियमित वैक्सीन लगाए जाते हैं जिससे लोगों के शरीर में प्रतिरक्षी एंटीबॉडीज बन जाती हैं। जैसा चेचक, खसरा और पोलियो के साथ हुआ। दुनियाभर में लोगों को इनकी वैक्सीन दी गई और ये रोग अब लगभग खत्म हो गए हैं।
  • वैज्ञानिकों का ही अनुमान है कि किसी देश की आबादी में कोविड-19 महामारी के खिलाफ हर्ड इम्युनिटी तभी विकसित हो सकती है, जब कोरोनावायरस उसकी करीब 60 प्रतिशत आबादी को संक्रमित कर चुका हो। वे मरीज अपने शरीर में उसके खिलाफ एंटीबॉडीज बनाकर और उससे लड़कर इम्यून हो गए हों।
  • विशेषज्ञों के मुताबिक, कोविड-19 संक्रमण के मामलो में तो मौजूदा हालात को देखते हुए 60 से 85 प्रतिशत आबादी में प्रतिरक्षा आने के बाद ही हर्ड इम्युनिटी बन पाएगी। पुरानी बीमारी डिप्थीरिया में हर्ड इम्युनिटी का आंकड़ा 75 प्रतिशत, पोलियो में 85 प्रतिशत और खसरा में करीब 95 प्रतिशत है।


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Coronavirus Immunity | World Health Organisation (WHO) Chief Scientist Dr. Soumya Swaminathan On Coronavirus Vaccine and Immunity


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