मां के शरीर में खून की कमी और जन्मजात बीमारियों के कारण देश में एक वर्ष में जन्म से 144 घंटों में 4.56 लाख नवजातों की मौत हुई है। यही नहीं, जन्म से छह हफ्ते के बीच 5.70 लाख नवजातों की मौत हो गई। केंद्रीय स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग ने कहा है इसी रफ्तार से मौत होती रही, तो राष्ट्रीय स्वास्थ्य लक्ष्य-2025 को पाना मुश्किल है।
आईसीएमआर की रिपोर्ट
यह रिपोर्ट इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग समेत अन्य संस्थाओं ने तैयार की है। यह लैंसेंट जर्नल में भी प्रकाशित हुई है। देश में नवजात और 5 वर्ष तक के बच्चों की मौत में कमी आई है, लेकिन राज्यों में मौत के आंकड़ों में इतना अंतर है कि राष्ट्रीय लक्ष्य पाना मुश्किल है। रिपोर्ट के लिए वर्ष 2017 के आंकड़े लिए गए हैं, जबकि वर्ष 2000 के आंकड़ों से तुलना की गई है।
राजस्थान में सांस की बीमारी से सबसे ज्यादा मौतें
5 वर्ष तक के 17.9% बच्चों की मौत सांस संबंधी बीमारी, 15.6% समय से पहले जन्म, 9.9% डायरिया और जन्म के समय दिक्कत होने से 8.1% बच्चों की मौत हो गई। वहीं दूसरी ओर नवजात मृत्यु दर की सबसे बड़ी वजह बनी है समय से पहले जन्म हो जाना। इस वजह से 27.7%, सांस की बीमारी से 11%, जन्म के समय दिक्कत से 14.5 और जन्मजात दोष से 8.6% की मौत वर्ष-2017 में हो गई। राजस्थान में सबसे ज्यादा 27% बच्चों की मौत सांस संबंधी बीमारी से हुई, जबकि समय से पहले जन्म के कारण छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा 19% बच्चों की मौत हुई। बिहार में सबसे ज्यादा 16% बच्चों की मौत की वजह डायरिया बना।
यूपी-बिहार में सबसे ज्यादा मौत
वर्तमान में सबसे ज्यादा 1,65,800 बच्चों की मौत उत्तर प्रदेश और बिहार में 75,300 मौतें हुई हैं। एक ओर जहां उत्तर प्रदेश में प्रति हजार 60 बच्चों (पांच वर्ष तक) की मौत हो रही है, वहीं केरल में प्रति हजार महज 10 बच्चों की मौत हो रही है। नवजात मृत्यु दर केरल में प्रति हजार 7 है जबकि उत्तर प्रदेश में 32 है।
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