कोरोनावायरस से रिकवर हो रहे 95 फीसदी मरीजों में एंटीबॉडी विकसित हुई हैं यह दावा चीनी शोधकर्ताओं ने किया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इलाज के एक हफ्ते बाद 40 फीसदी कोरोना पीड़ितों में और दो हफ्तों के बाद 95 फीसदी मरीजों एंटीबॉडी विकसित हुईं। यह उनकी इम्युनिटी को मजबूत करेंगी। रिसर्च चीन के चॉन्गकिंग मेडिकल यूनिवर्सिटी में कोरोना से रिकवर होने वाले 285 लोगों पर की गई है।
रिसर्च की पांच बड़ी बातें
#1) शोधकर्ताओं का कहना है कि कोरोना को मात देने वाले मरीजों के ब्लड की जांच की गई है तो पाया गया कि उनमें एंटीबॉडीज यानी इम्यून कोशिकाएं विकसित हुई है। यह दो तरह की होती हैं, पहली इम्युनोग्लोब्यूलिन-एम और दूसरी इम्युनोग्लोब्यूलिन-जी।
#2) संक्रमण के तुरंत बाद शरीर में इम्युनोग्लोब्यूलिन-एम विकसित होती हैं और खतरे से बचाती हैं। रिसर्च के दौरान पहले हफ्ते 40 फीसदी मरीजों मेंइम्युनोग्लोब्यूलिन-एम विकसित हुईं।
#3) रिसर्च में कोरोना के मरीजों की जांच जारी रही। दो हफ्तों के बाद95 फीसदीमरीजों केशरीर में इम्युनोग्लोब्यूलिन-एम भी विकसित हुईं। खास बात रही कि मरीजों में इम्युनोग्लोब्यूलिन-जी भी विकसित हुईं जो तैयार होने में थोड़ा ज्यादा समय लेती हैं लेकिन लम्बे समय तक संक्रमण से बचाती हैं।
#4) शोधकर्ताओं का कहना है कि ये एंटीबॉडीज कितने दिनों तक इंसान को दोबारा कोरोना के संक्रमण से बचाएंगी, इस पर रिसर्च जारी है। रिसर्च रिपोर्ट में निष्कर्ष से साफ है कि एक बार उबरने के बाद इंसान का शरीर कोरोना से लड़ना सीख रहा है।
#5) शोधकर्ताओं के मुताबिक, मां-बेटी का ऐसा मामला भी सामने आया है कि जिसमें दोनों में ही 20 दिन के अंदर एक जैसी इम्युनिटी विकसित हुई।
क्या होती है एंटीबॉडी
ये प्रोटीन से बनीं खास तरह की इम्यून कोशिकाएं होती हैं जिसे बी-लिम्फोसाइट कहते हैं। जब भी शरीर में कोई बाहरी चीज (फॉरेन बॉडीज) पहुंचती है तो ये अलर्ट हो जाती हैं। बैक्टीरिया या वायरस केविषैले पदार्थों को निष्क्रिय करने का काम यही एंटीबॉडीज करती हैं। इस तरह ये शरीर को प्रतिरक्षा देकर हर तरह केरोगाणुओं के असर को बेअसर करती हैं।
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