Monday, September 21, 2020

कोरोनाकाल में अल्जाइमर्स के मरीज संक्रमित हुए तो मेमोरी लॉस होने का खतरा अधिक, आइसोलेशन में अकेलापन याददाश्त पर बुरा असर डाल सकता है

अल्जाइमर्स यानी भूलने की बीमारी। कोरोनाकाल में अगर आप या कोई करीबी इस बीमारी से जूझ रहा है तो खासतौर पर अलर्ट रहने की जरूरत है। इसकी दो वजह हैं। पहली, नेचर जर्नल में प्रकाशित हालिया रिसर्च कहती है, कोरोना दिमाग को डैमेज कर सकता है। वायरस यहां तक पहुंचा तो ब्रेन हेमरेज, स्ट्रोक और मेमोरी लॉस हो सकता है। ऐसे मरीजों में संक्रमण हुआ तो मेमोरी लॉस का खतरा अधिक है।

दूसरी, अमेरिका की जानी मानी न्यूरोलॉजिस्ट मारला ब्रून्स कहती हैं, अगर अल्जाइमर्स के मरीज को आइसोलेशन में रखते हैं तो उनकी स्थिति और बिगड़ सकती है। अकेलापन उनकी याददाश्त को और कमजोर करेगा, वह कोरोना से बचाव के कितने तरीके याद रख पाएगा, यह बड़ी चुनौती है।

आज अल्जाइमर्स डे है। इस मौके पर आर्टेमिस हॉस्पिटल गुरुग्राम के डायरेक्टर ऑफ न्यूरोलॉजी डॉ. सुमित सिंह, जसलोक हॉस्पिटल, मुंबई के न्यूरोलॉजी विभाग के हेड डॉ. जॉय देसाई और अमेरिकन न्यूरोलॉजिस्ट मारला ब्रून्स से जानिए, अल्जाइमर्स क्या है और कोरोना के दौर में इससे कैसे निपटें....

1. अल्जाइमर्स है क्या?
यह एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है जो मस्तिष्क की कोशिकाओं को नष्ट करता है। ऐसा होने पर सीधा असर दिमाग पर पड़ता है। मरीज की निर्णय लेने की क्षमता घट जाती है। स्वभाव में बदलाव आता है और याददाश्त घटती है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है यह रोग भी बढ़ता है। रोगी को रोजमर्रा के कामों को भी करने में दिक्कतें होती हैं। अल्जाइमर्स उम्र के साथ बढ़ने वाला रोग है।

2. समझें अल्जाइमर और डिमेंशिया के बीच का फर्क
अक्सर लोग अल्जाइमर्स और डिमेंशिया के बीच फर्क नहीं कर पाते। डिमेंशिया का मतलब है मेमोरी लॉस। अल्जाइमर्स डिमेंशिया का एक प्रकार है। डिमेंशिया दो तरह का होता है। पहला, वह जिसका इलाज संभव है। दूसरा, वो जिसका कोई इलाज नहीं है यानी डीजेनरेटिव डिमेंशिया, अल्जाइमर्स भी इसी कैटेगरी की बीमारी है।

ब्रेन की ऐसी कोशिकाएं जो मेमोरी को कंट्रोल करती हैं, वे सूखने लगती हैं। जिसका असर गिरती याददाश्त के रूप में दिखता है और रिकवर करना नामुमकिन हो जाता है।

3. कोरोना के दौर में किन बातों का ध्यान रखें?
अल्जाइमर्स के मरीजों का खास ध्यान रखने की जरूरत होती है, कोरोना के दौर में इन्हें ज्यादा अटेंशन देना जरूरी है। इन्हें तीन बातें बताना बेहद जरूरी हैं। पहली, बाहर निकलने से बचना है। दूसरी, कोई बाहरी इंसान घर में आता है तो उससे दूर रहना है। तीसरी, महामारी की खबरों से घबराना नहीं है। डर और घबराहट का सीधा असर तनाव के रूप में दिमाग पर पड़ेगा।

कई बार आपके बताने के बावजूद ये चीजों को भूल सकते हैं, इसलिए सब्र के साथ इनकी देखभाल करें। हाथों को साबुन से धुलवाएं। इनसे बातें करना न छोड़ें। घर के छोटे-छोटे कामों में इन्हें भी शामिल करें।

4. यह रोग होता कैसे है?
यह रोग मस्तिष्क में एक विशेष प्रकार के टाऊ टैंगल्स प्रोटीन के बनने से होता है। यह तंत्रिका कोशिकाओं को आपस में जोड़ने और उनके बीच होने वाली क्रियाओं में रुकावट पैदा करता है, जिससे व्यक्ति सही से संतुलन नहीं बना पाता। कुछ लोगों में यह आनुवांशिक भी होता है। शारीरिक रूप से एक्टिव न रहना, मोटापा, डायबिटीज, सिर पर चोट लगना, सुनने की क्षमता का कमजोर होना, इस रोग की कुछ वजह हैं।

5. क्या इसका इलाज संभव है?
अभी तक कोई सटीक उपचार नहीं है। लक्षणों के आधार पर ही इसके बारे में पता लगाया जा सकता है। इसके लिए डॉक्टर मेंटल टेस्ट, सीटी स्कैन, एमआरआई से मस्तिष्क में होने वाले परिवर्तन और उसके कारण दिखने वाले लक्षणों की जांच करते हैं। हालांकि, कुछ दवाओं और लक्षणों में सुधार कर इसके असर को कम किया जा सकता है।

6. इसका किस हद तक शरीर पर असर पड़ता है?
घटती याददाश्त वाले मरीजों में किसी तरह के दर्द को बताने में भी दिक्कतें आती हैं। बीमारी के गंभीर होने पर भोजन को निगलने, संतुलन बनाने, आंत और पेशाब वाली जगह से जुड़े रोग होने का खतरा रहता है।

7. कब और कैसे शुरू हुआ अल्जाइमर्स डे?
अल्जाइमर्स का पहला केस 3 नवंबर 1906 को जर्मन मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. अलोइस अल्जाइमर सामने लाए थे। इसलिए इस दिन का नाम अल्जाइमर्स डे पड़ा। दुनिया के कई देशों में सालों तक अल्जाइमर्स डे की मांग उठने के बाद 2012 में इसके लिए भी एक तारीख 21 सितंबर तय हुई।

पहले अल्जाइमर्स डे की शुरुआत एक अभियान के तौर पर शुरू हुई, जिसका उद्देश्य ज्यादातर लोगों में इस बीमारी को छिपाने की आदत को बदलना था। अल्जाइमर्स डे 2020 की थीम है। आओ डिमेंशिया के बारे में बात करें। अल्जाइमर्स डिमेंशिया का एक प्रकार है।



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