Sunday, September 20, 2020

देश में राष्ट्रीय तितली चुनने के लिए वोटिंग शुरू, कृष्णा पीकॉक से लेकर जंगल क्वीन तक 7 विकल्प दिए गए, जानिए इनकी खूबियां और वोटिंग का तरीका

इन दिनों भारत की राष्ट्रीय तितली का चुनाव किया जा रहा है। इसके लिए लोगों से ऑनलाइन वोटिंग कराई जा रही है। इससे पहले राष्ट्रीय पश, राष्ट्रीय पक्षी और राष्ट्रीय पुष्प भी घोषित किए गए थे, लेकिन देश में ऐसा पहली बार हो रहा है जब किसी राष्ट्रीय प्रतीक के चुनाव के लिए आम लोगों को भी शामिल किया जा रहा है।

कैसे होगा तितली का चयन?
भारत में कुल 1500 प्रकार की तितलियां पाई जाती हैं। देश के तितली विशेषज्ञों के समूह ने पिछले कुछ वर्षों में जंगलों, बागों आदि स्थानों पर तितली सर्वे शुरू किया था। लॉकडाउन के दौरान राष्ट्री पक्षी और पुष्प की तरह राष्ट्रीय तितली चुनने का विचार आया। देश भर से आंकड़े एकत्रित करने के बाद तितली विशेषज्ञों की टीम ने आंतरिक मतदान द्वारा सात तितलियों की अंतिम सूची तैयार की। इसमें यह ध्यान रखा गया है कि ये प्रजाति न तो दुर्लभ हों और न ही साधारण।

इनमें से चुन लीजिए अपनी मनपसंद तितली

कृष्णा पीकॉक

1. कृष्णा पीकॉक
यह आकार में बड़ी तितली है, जो उत्तर-पूर्वी हिस्सों और हिमालय में पाई जाती है। इसके पंख 130 एमएम तक होते हैं। अगले पंख काले रंग के होते हैं। जिसमें पीले रंग की लम्बी धारी होती है। नीचे के पंख में नीले लाल बैंड मिलते हैं।

कॉमन जेज़बेल

2. कॉमन जेज़बेल
66-83 एमएम आकार की इस तितली के पंखों की ऊपरी सतह सफेद और निचली सतह पीली होती है। इन पर काली मोटी धारियां और किनारों पर नारंगी छोटे-छोटे धब्बे इसे सुंदर बनाते हैं।

ऑरेंज ओकलीफ

3. ऑरेंज ओकलीफ
पंख के शीर्ष पर नारींग पट्आ और गहरा नीला रंग होता है। आधार पर दो सफेद बिंदु होते हैं। पंख खुलते ही रंगीन छटा बिखेरती है। वेस्टर्न घाट और उत्तर-पूर्व के जंगलों में पाई जाती है।

फाइव बार स्वॉर्ड टेल

4. फाइव बार स्वॉर्ड टेल
पंखों का आकार 75 से 90 एमएम तक होता है। पीछे के पंखों पर एक लम्बी सीधी काली तलवार जैसी पूंछ इसकी पहचान है। पंखों के काले सफेद पट्‌टों पर हरे पीले रंग का मेल इसे सुंदर बनाता है।

कॉमन नवाब

5. कॉमन नवाब
यह तेजी से उड़ सकती है। पेड़ों के ऊपरी हिस्सों में पाई जाती है, इसलिए कम ही दिखाई देती है। ऊपरी पंख काले होते हैं। नीचे के चॉकलेटी रंग के पंखों के बीच हल्की रही-पीली टोपी जैसी रचना के कारण इसे नवाब कहा जाता है।

यलो गोर्गन

6.यलो गोर्गन
यह मध्यम आकार की बहुत सुंदर तितली है। इसके कोण बनाते अनूठे पंख की इसकी खासियत है। इसके पंखों की अंदरवाली सतर पर गहरा पीला रंग होता है। यह पूर्व हिमालय और उत्तर पूर्व भारत के जंगलों में पाई जाती है।

नॉर्दन जंगल क्वीन

7. नॉर्दन जंगल क्वीन
चॉकलेट ब्राउन रंग की तितली होती है। हल्की नीली धारियां इसे सुंदर बनाती हैं। पंखों पर चॉकलेटी गोल घेरे इसकी सुंदरता में चार चांद लगाते हैं। यह फ्लोरोसेंट कलर में भी दिखाई देती हैं। यह अरुणाचल प्रदेश में पाई जाती है।

यहां अपनी फेवरेट तितली के लिए करें ऑनलाइन वोटिंग
आम लोग 8 अक्टूबर तक ऑनलाइन मतदान करके सात में से अपनी पसंदीदा एक तितली का चयन कर सकते हैं। इसके लिए लिंक tiny.cc/nationalbutterflypoll पर जाना होगा। वहां उन्हें एक गूगल फॉर्म मिलेगा। उसके जरिए किसी एक तितली को वोट दे सकते हैं। अधिकतम वोट प्राप्त करने वाली तितलियों की सूची केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय में पेश की जाएगी जिसमें से राष्ट्रीय तितली का चयन विशेषज्ञों की एक समिति करेगी। उम्मीद है कि नए साल की शुरुआत में हमारे पास अपनी एक राष्ट्रीय तितली होगी।


तितली को इतनी अहमियत क्यों?
तितलियां और कीटों की विविधता व उनकी संख्या किसी भी क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को समझने का बेहतरीन तरीका है। अगर तितली और टों की विविधता व उनकी संख्या कम है तो यह इस बात का संकेत होता है कि उस क्षेत्र विशेष का स्वास्थ्य अच्छा नहीं है। इसका मतलब यह भी है कि इंसानों के लिए भी वह क्षेत्र धीरे-धीरे रहने लायक नहीं रहेगा। तितली को अहमियत इसलिए दी गई है क्योंकि रंगबिरंगे फूलों के आसपास भोजन तलाशने की आदत के कारण इनकी जैव विविधता का आंकलन दूसरे कीटों की तुलना में आसान हो जाता है।

संकट में क्यों हैं तितलियां?
जैव विविधता में कमी तितलियां प्राकृतिक तौर पर या जंगलों में पनपने वाले पौधों पर ही निर्भर रहती हैं। सजावटी व हाइब्रिड पौधे तितलियों के लिए बेकार सिद्ध होते हैं। जंगलों की कटाई और फिर बगीचों व मैदानों में भी साफ सफाई के बहाने हमने जंगली बेलों, पौधों और घास को भी खत्म कर दिया। इससे जैव विविधता कम होती गई और तितलियां भी सिमटती गईं।


कीटनाशकों का ज्यादा इस्तेमाल कीटनाशकों का अनियंत्रित इस्तेमाल भी तितलियों की प्रजातियों को मिटाने के लिए जिम्मेदार होता है। अमेरिका के फ्लोरिडा में मच्छरों से उत्पन्न रोगों की रोकथाम के लिए कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग के कारण वहां तितलियों की दो प्रजातियां तो विलुप्ति की कगार पर आ गईं।



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