बच्चों पर हुई हालिया रिसर्च कहती है इनमें संक्रमण होने पर कोरोना के अलग तरह के लक्षण दिख रहे हैं। स्कूल जाने वाले बच्चों में संक्रमण के बाद डायरिया, पेटदर्द और मिचली के लक्षण दिख रहे हैं। जबकि आमतौर कोविड-19 होने पर बुखार, खांसी, गंध या स्वाद न मिल पाना जैसे लक्षण दिखते हैं।
नॉर्थर्न आयरलैंड यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने अपने अध्ययन में कहा है, हमें स्कूली बच्चों में डायरिया और मिचली के लक्षण मिले हैं। इन्हें भी कोरोना के अहम लक्षणों में शामिल करने की जरूरत है।
1 हजार बच्चों पर हुई रिसर्च
रिसर्च में 1 हजार बच्चों को शामिल किया गया है। उनकी औसत उम्र 10 साल थी। इनका ब्लड टेस्ट करके ये जाना गया कि हाल ही में इन्हें कोरोना का संक्रमण हुआ था या नहीं। इनमें 68 बच्चों में एंटीबॉडी बनी थी। इनमें बुखार, खांसी और स्वाद-गंध न महसूस होने के लक्षण दिखे थे, लेकिन न तो इनकी हालत नाजुक हुई और न ही हॉस्पिटल में भर्ती करना पड़ा।
50 फीसदी ऐसे बच्चे थे जो एसिम्प्टोमैटिक रहे और जांच होने पर रिपोर्ट पॉजिटिव आई। इनमें से 13 बच्चों में डायरिया, मिचली और पेटदर्द के लक्षण दिखे।
अलग तरह के दिखने वाले लक्षणों का रिव्यू जारी
आयरलैंड के स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक, स्कूली में सामने आए नए लक्षणों का रिव्यू किया जा रहा है। महामारी में 6 माह बाद स्कूलों में बच्चों की वापसी हुई है। शिक्षा विभाग के सचिव गेविन विलियमसन ने पेरेंट्स को चेतावनी दी है कि अगर बच्चे स्कूल नहीं लौटे तो उन्हें भविष्य में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।
बच्चों में कोरोना के गुपचुप संक्रमण के मामले भी दिखे
हाल ही में वॉशिंगटन के चिल्ड्रन नेशनल हॉस्पिटल की रिसर्च में सामने आया है कि बच्चों की नाक और गले में कई हफ्तों तक कोरोनावायरस रह सकता है। इस दौरान ऐसा भी हो सकता है कि उनमें इसके कोई लक्षण (एसिम्प्टोमैटिक) न दिखें। रिसर्चर्स का यह दावा बताता है कि कैसे कोरोनावायरस गुपचुप तरीके से अपना संक्रमण फैला सकता है।
केवल लक्षण दिखने पर जांच होने के कारण बढ़ सकते हैं मामले
कनाडा के रिसर्चर्स ने यह अध्ययन साउथ कोरिया में किया है। उनका कहना है, यह देखा गया है कि बच्चों में कोरोना का संक्रमण गुपचुप तरीके से फैल रहा है। रिसर्च में सामने आया कि 85 संक्रमित बच्चे टेस्टिंग से सिर्फ इसलिए दूर हो गए, क्योंकि उनमें लक्षण नहीं दिख रहे थे। कोविड-19 की जांच भी उनकी की गई जिनमें लक्षण दिखे। ऐसा आगे भी हुआ तो कम्युनिटी में एसिम्प्टोमैटिक बच्चों का दायरा बढ़ सकता है।
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