हडि्डयों की बीमारी रुमेटॉयड अर्थराइटिस में दी जाने वाली दवा एक्टेमरा कोरोना के मरीजों में भी असरदार साबित हुई है। संक्रमण के बाद बेहद नाजुक स्थिति से जूझ रहे 7 मरीजों को इसे दिया गया। मरीजों में सुधार दिखा। यह दावा जापान की ओसाका यूनिवर्सिटी ने अपनी रिसर्च में किया है।
7 मरीजों पर की रिसर्च
रिसर्चर्स का कहना है कोरोना के 7 मरीजों की हालत बेहद खराब थी। इन्हें वेंटिलेटर और ऑक्सीजन थैरेपी दी जानी थी। मरीज को यह दवा इंजेक्शन के रूप में दी गई। इससे संक्रमण के बाद शुरू हुए साइटोकाइन स्टॉर्म पर भी काबू पाया गया।
बेकाबू हुए इम्यून सिस्टम को कंट्रोल करती है दवा
रिसर्चर्स के मुताबिक, एक्टेमरा में एंटी-इंफ्लेमेट्री खूबी है। यह संक्रमण के कारण आई सूजन को भी दूर करती है। इसके साथ बेकाबू हुए इम्यून सिस्टम को भी कंट्रोल करती है। दवा देने के बाद कोरोना के गंभीर मरीजों की हालत में सुधार दिखा है।
क्या होता है साइटोकाइन स्टॉर्म
यह वह स्थिति है जब शरीर को बचाने वाला इम्यून सिस्टम (रोग प्रतिरोधी तंत्र) नुकसान पहुंचाने लगता है। यह या तो बहुत तेज काम करने लगता है या बहुत धीमा हो जाता है। नतीजा फेफड़ों में सूजन और पानी भर जाता है। सांस लेना मुश्किल होने लगता है। अगर समय पर कंट्रोल नहीं हुआ तो मरीज की मौत हो सकती है।
ओसाका यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर सुजिन कैंग कहते हैं, सायटोकाइन स्टॉर्म को कंट्रोल करने के लिए कोई खास तरह की इम्युनोथैरेपी उपलब्ध नहीं है। ऐसे में दवा का इसे कंट्रोल करना राहत की बात है।
क्यों बनती है इसकी स्थिति
साइटोकाइन स्टॉर्म की स्थिति में पूरे शरीर में PAI-1 प्रोटीन का स्तर बढ़ जाता है। इस प्रोटीन के कारण धमनियों और फेफड़ों में रक्त के थक्के जमने लगते हैं। निमोनिया की स्थिति इस प्रोटीन का स्तर और अधिक बढ़ जाता है। यह कोरोना के मरीजों में मौत की वजह भी बन सकता है।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3hQIsmF
via
No comments:
Post a Comment